बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण

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बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण
बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण सम्पादन
बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण सम्पादन

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इरडा से जुड़े हुए संसथान

बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority / IRDA) भारत सरकार का एक प्राधिकरण (एजेंसी) है। इसका उद्देश्य बीमा की पालसी धारकों के हितों कि रक्षा करना, बीमा उद्योग का क्रमबद्ध विनियमन, संवर्धन तथा संबधित व आकस्मिक मामलों पर कार्य करना है। इसका मुख्यालय हैदराबाद में है। इसकी स्‍थापना संसद के अधिनियम आईआरडीए अधिनियम, 1999 द्वारा की गई थी।

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यह प्राधिकरण विनियमों को जारी कर रही है जिसमें बीमा एजेंटों, विलेयता लाभ, पुन: बीमा, बीमाकर्ताओं का पंजीकरण, ग्रामीण और सामाजिक क्षेत्र के बीमाकर्ताओं के दायित्‍व, लेखांकन की प्रक्रियाओं आदि सहित बीमा उद्योग को लगभग सम्‍पूर्ण भाग शामिल है।

बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) उपभोक्ता के हितों को सुनिश्चित करने के लिए बीमा कंपनियों का निरीक्षण करती है। वह आईआरडीए अधिनियम, 1999 की धारा 14(2) (ज) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार, सभी कंपनियों का मौके पर और मौके के अलावा निरीक्षण करता है। आईआरडीए मौके के अलावा निरीक्षणों के माध्यम से उनके शोध क्षमता मामलों और वित्तीय रिर्पोटिंग मानदडों की नियमित निगरानी करता है।

आईआरडीए ने बीमा कंपनियों के कार्यालयों का स्थल पर निरीक्षण करने के लिए एक निरीक्षण विभाग की अलग से स्थापना की है। स्थल पर निरीक्षणों के दौरान, आईआरडीए, बीमा कंपनियों के माकिर्ट संचालन, परिचालन के तरीके और अभिशासन के मानदंडों सहित उनके सांविधिक प्रावधानों और विनियामक निर्देशों के अनुपालन की सीमा का निरीक्षण करता है।

आईआरडीए पर बीमा पॉलिसी धारकों के हितों की रक्षा करने की ज़िम्‍मेदारी है। इस उद्देश्‍य को हासिल करने के लिए, प्राधिकरण ने निम्‍नलिखित उपाय किए हैं :-

  • आईआरडीए ने पॉलिसीधारक हित संरक्षण विनियम 2001 को अधिसूचित किया है ताकि इन बातों की व्‍यवस्‍था की जा सके :- पॉलिसी प्रस्‍ताव दस्‍तावेज़ आसानी से समझी जाने वाली भाषा में हो; जीवन और गैर जीवन दोनों से संबं‍धी दावा-प्रक्रिया; शिकायत निवारण तंत्र की स्‍थापना; दावों का शीघ्र निपटान; और पॉलिसीधारकों की सेवा आदि। इन विनियमों में दावों के निपटान में होने वाली देश के लिए बीमाकर्ता द्वारा ब्‍याज की अदायगी का भी प्रावधान किया गया है।
  • बीमाकर्ताओं से शोधन-क्षमता मार्जिन रखने की अपेक्षा की जाती है ताकि वे दावों के भुगतान के संबंध में पॉलिसीधारकों के प्रति अपने दायित्‍व को पूरा करने की स्थिति में हो।
  • बीमा कम्‍पनियों के लिए यह अनिवार्य है कि वे पॉलिसी के अंतर्गत लाभ, निबंधन एवं शर्तों का खुलासा करें। बीमाकर्ता द्वारा निकाले गए विज्ञापनों से बीमा कराने वाली जनता भ्रमित नहीं होनी चाहिए।
  • सभी बीमाकर्ताओं को अपने मुख्‍य कार्यालयों में तथा अन्‍य कार्यालयों में उपयुक्‍त शिकायत निवारण तंत्र स्‍थापित करना चाहिए।
  • प्राधिकरण बीमाकर्ताओं द्वारा बीमा संविदा के तहत प्रदान की गई सेवाओं के संबंध में पॉलिसीधारकों से प्राप्‍त किसी शिकायत का मामला बीमकर्ता के समक्ष रखता है।

इतिहास

बीमा उद्योग में पहले २६% विदेशी निवेश (एफडीआई) था इसे बढ़ा कर ४९% किया गया था। वर्तमान में विदेशी निवेश का प्रावधान १००% कर दिया गया है।

  • १९९१- भारत सरकार ने आर्थिक सुधार कार्यक्रम और वित्तीय क्षेत्र में सुधार शुरू किया।
  • १९९३- श्री आर एन मल्होत्रा के नेतृत्व में एक समिति बीमा क्षेत्र में सुधार करने के लिए सेटअप किया गया था।
  • १९९४- मल्होत्रा ​​समिति क्षेत्र का अध्ययन किया और हितधारकों के बाहर सुनवाई कुछ सुधारों की सिफारिश की।

संगठनात्मक संरचना

आईआरडीए अधिनियम ' 1999 की धारा 4 के अनुसार,बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण सम्पादन(आईआरडीए , जो संसद के एक अधिनियम द्वारा गठित किया गया था प्राधिकरण की संरचना निर्दिष्ट दस लोगों के हाथ में होगी। वे इस प्रकार में है:

  • एक अध्यक्ष - [subhas chandra khutiya]।
  • पांच पूर्णकालिक सदस्यों - यर , एम राम प्रसाद , एस रॉय चौधरी, डी.डी. सिंह।
  • चार अंशकालिक सदस्यों - अनूप वाधवान , एस.बी. माथुर , प्रो वि.के.गुप्ता , सीए सुबोध केआर.अग्रवाल

अध्यक्ष और अन्य सदस्यों का कार्यकाल

  1. अध्यक्ष और अन्य पूर्णकालिक सदस्यों का कार्यकाल ५ वर्ष है और वे पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र हैं, मगर उनकी आयु ६५ से ज्यादा नहीं होनी चाहिये।
  2. अंशकालिक सदस्यों का कार्यकाल ५ वर्ष है, लेकिन वह पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है।
  3. सदस्य अपने कार्यालय त्याग सकता है किन्तु उसे केन्द्रीया सरकार को ३ महिने पहले सुचित करना होगा।

हटाने या कार्यालय से बर्खास्त

  1. अगर सदस्य दिवालिया घोषित किया जाते है।
  2. अगर किसी भी अपराध का दोषी पाया गया हो।
  3. अगर उसने जनता के हित के खिलाफ अपने पद का दुरुपयोग किया हो।
  4. अगर उसने वित्तीय स्थिति किसी कंपनी में अधिग्रहण किया हो।

भूमिका और कार्य

  • पंजीकरण को संशोधित करने, नवीनीकृत, वापस लेने, निलंबित या किसी भी तरह के पंजीकरण कि अयोग्य समझा जाता है तो पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार भी है।
  • बीमा पॉलिसी के बताए से संबंधित मामलों में पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा करता है, बीमा दावे का निपटारा,बीमा योग्य ब्याज इत्यादि।
  • यह सर्वे करनेवालो और नुकसान मूल्यांकनकर्ताओं के लिए आचार संहिता देता है।
  • यह बीमा कारोबार में दक्षता को बढ़ावा देता है।
  • जीवन बीमा कारोबार और सामान्य (या गैर - जीवन) बीमा कारोबार का प्रतिशत को निर्दिष्ट ग्रामीण या सामाजिक क्षेत्र में बीमा कंपनी द्वारा किए जा सके।
  • प्रभावी ढंग से टैरिफ सलाहकार समिति के कामकाज की निगरानी रखता है।
  • शोधन क्षमता के मार्जिन के रखरखाव के विनियमन करना।
  • बीमा कंपनी और बीमा (ग्राहक) के बीच विवादों का निपटारा करता है।
  • बीमा कंपनियों द्वारा धन के निवेश को नियंत्रण और औरविनियमित रखना।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ