कर्नाटक का इतिहास

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>Sanjeev bot द्वारा परिवर्तित १२:५२, ३० जनवरी २०१७ का अवतरण (बॉट: वर्तनी एकरूपता।)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

इतिहास

कर्नाटक के आदिम निवासी लौह धातु का प्रयोग उत्तर भारतीयों की अपेक्षा पहले से जानते थे, और ईसापूर्व १२०० इस्वी के औजार धारवाड़ जिले के हल्लूर में मिले हैं। ज्ञात इतिहास के आरंभ में इस प्रदेश पर उत्तर भारतीयों का शासन था। पहले यहाँ नन्दों तथा मौर्यों का शासन था। सातवाहनों का राज्य (ईसापूर्व ३० - २३० इस्वी) उत्तरी कर्नाटक में फैला था जिसके बाद कांची के पल्लवों का शासन आया। पल्लवों के प्रभुत्व को स्थानीय कदम्बों (बनवासी के) तथा कोलार के गंगा राजवंश ने खत्म किया।

कदम्ब राजवंश की स्थापना सन् ३४५ में मयूरशर्मन नामक ब्राह्मण ने की थी। पल्लवों की राजधानी में अपमान सहने के बाद उसने पल्लवों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। उसके परवर्तियों में से एक ककुस्थ वर्मन (४३५-५५) तो इतना शक्तिशाली हो गया था कि वकट तथा गुप्तों ने भी उनके साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापिक किया था। माना जाता है कि महाकवि कालिदास ने उसके दरबार की यात्रा की थी।

गंगा राजवंश ने सन् ३५० के आसपास कोलार से शासन आरंभ किया था और बाद में उन्होंने अपनी राजधानी मैसूर के पास तालकडु में स्थापित की। बदामी चालुक्यों के आने से पहले तक वे दक्षिणी कर्नाटक में एकक्षत्र राज्य करते रहे।

चालुक्य

बदामी के चालुक्यों के अन्दर ही सम्पूर्ण कर्नाटक एक शासन सूत्र में बंध पाया था। वे अपने शासनकाल में बनाई गई कलाकृतियों के लिए भी जाने जाते हैं। इसी कुल के पुलकेशिन द्वितीय (609-42) ने हर्षवर्धन को हराया था। पल्लवों के साथ युद्ध में वे धीरे-धीरे क्षीण होते गए।

बदामी के चालुक्यों की शक्ति क्षीण होने के बाद राष्ट्रकूटों का शासन आया पर वे अधिक दिन प्रभुत्व मे नहीं रह पाए। कल्याण के चालुक्यों ने सन् 973 में उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। सोमेश्वर प्रथम ने चोलों के आक्रमण से बचने की सफलतापूर्वक कोशिश की। उसने कल्याण में अपनी राजधानी स्थापित की और चोल राजा राजाधिराज की कोप्पर में सन् 1054 में हत्या कर दी। उसका बेटा विक्रमादित्य षष्टम तो इतना प्रसिद्ध हुआ कि कश्मीर के कवि दिल्हण ने अपनी संस्कृत रचना के लिए उसके नायक चुना और विक्रमदेव चरितम की रचना की। वो एक प्रसिद्ध कानूनविद विज्ञानेश्वर का भी संरक्षक था। उसने चोल राजधानी कांची को 1085 में जीत लिया।

चालुक्य साम्राज्य अपने महत्तम विस्तार पर - सातवीं सदी

यादवों (या सेवुना) ने देवगिरि (आधुनिक दौलताबाद, जो बाद में मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी बना) से शासन करना आरंभ किया। पर यादवों को दिल्ली सल्तनत की सेनाओं ने 1296 में हरा दिया। यादवों के समय भास्कराचार्य जैसे गणितज्ञों ने अपनी अमर रचनाए कीं। हेमाद्रि की रचनाए भी इसी काल में हुईं। चालुक्यों की एक शाखा इसी बीच शकितशाली हो रही थी - होयसल। उन्होंने बेलुरु, हेलेबिदु और सोमनाथपुरा में मन्दिरों की रचना करवाई। जब तमिल प्रदेश में चोलों और पाण्ड्यों में संघर्ष चल रहा था तब होयसलों ने पाण्ड्यों को पीछे की ओर खदेड़ दिया। बल्लाल तृतीय (मृत्यु 1343) को दिल्ली तथा मदुरै दोनों के शासकों से युद्ध कना पड़ा। उसके सैनिक हरिहर तथा बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी। होयसलों के शासनकाल में कन्नड़ भाषा का विकास हुआ।

विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के समय वो दक्षिण में एक हिन्दू शक्ति के रूप में देखा गया जो दिल्ली और उत्तरी भारत पर सत्तारूढ़ मुस्लिम शासकों के विरूद्ध एक लोकप्रिय शासक बना। हरिहर तथा बुक्का ने न केवल दिल्ली सल्तनत का सामना किया बल्कि मदुरै के सुल्तान को भी हराया। कृष्णदेव राय इस काल का सबसे महान शासक हुआ। विजयनगर के पतन (1565) के बाद बहमनी सल्तनत के परवर्ती राज्यों का छिटपुत शासन हुआ। इन राज्यों को मुगलों ने हरा दिया और इसी बीच बीजापुर के सूबेदार शाहजी के पुत्र शिवाजी के नेतृत्व में मराठों की शक्ति का उदय हुआ। मराठों की शक्ति अठारहवीं सदी के अन्त तक क्षीण होने लगी थी। दक्षिण में हैदर अली ने मैसूर के वोड्यार राजाओं की शक्ति हथिया ली। चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान को मात देकर अंग्रेजों ने मैसूर का शासन अपने हाथों में ले लिया। सन् 1818 में पेशवाओं को हरा दिया गया और लगभग सम्पूर्ण राज्य पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। सन् 1956 में कर्नाटक राज्य बना।