पावन धाम

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>Sanjeev bot द्वारा परिवर्तित १३:५४, ३ फ़रवरी २०१८ का अवतरण (बॉट: आंशिक वर्तनी सुधार।)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

पावन धाम (पंच्खंड पीठ) पावन धाम : जयपुर से पहले विराटनगर (पुराना नाम बैराठ) नामक एक क़स्बा आता है। यह वही स्थान है जहाँ पांड्वो ने अज्ञातवास के दौरान अपना जीवन व्यतीत किया था। यहीं पंचखंड पर्वत पर भारत वर्ष का सबसे अनोखा और एकमात्र हनुमान मंदिर है जहाँ हनुमान जी की बिना बन्दर और पूछ वाली मूर्ति स्थापित है। इसका नाम वज्रांग मंदिर है और इसकी स्थापना अमर हुतात्मा गोभक्त, महान स्वतंत्रता सेनानी, यशश्वी लेखक, हिन्दू संत, हिन्दू नेता श्रीमन महात्मा रामचन्द्र वीर जी ने की थी।

== वज्रांग प्रभु का भीमगिरी पर्वत पर अवतरण == समर्थ गुरु रामदास महाराज की पवित्र पादुकाओ को गुरु मानकर दिव्य दीक्षा ग्रहण करने वाले श्रीमन महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज ने भक्तवत्सल भगवान श्री वज्रांग देव हनुमान प्रभु की प्रेरणा से, अपनी जन्मभूमि विराटनगर (राजस्थान) के पवित्र भीमगीरी पर्वत के पंचखंड शिखर पर उनके श्री विग्रह की प्रतिष्ठापना की तो न केवल पापाचारो से सूख गए भीमलता कुण्ड के पाषाणी तल से जलधारा फूट पड़ी, वरन महाप्रतापी श्री भीमसेन महाराज का पर्वत परमपावन तीर्थधाम बन गया। सत्य तो यह है की अपने अनुज पवनपुत्र कुंती नंदन भीमसेन के प्रिय पर्वत का उद्धार करने के लिए पवन सपुत्र अन्जनानंदन श्री वज्रांग देव हनुमान महाप्रभु भीमगीरी पर्वत के शिखर पर आकर विराजमान हुए. विश्व में यही एकमात्र तीर्थ है जहाँ दोनों पवन सुपुत्रों की पूजा होती है, संवत १९९३ विक्रमी में पर्वत सिखर पर लघु रूप में विराजे भगवान श्री वज्रांग देव का विक्रमी संवत २००१ में एक सौ मन के विशाल श्रीविग्रह में पर्वतारोहन ऐसा अविश्वसनीय, विसमय्जनक, चमत्कारपूर्ण प्रसंग है जो स्वयं महाप्रभु की इच्छा और इनके लाडले भक्त महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज के महान संकल्प के बिना संभव नहीं था। महात्मा रामचन्द्र वीर जी ने अपने जीवन काल में ही अपने यशस्वी पुत्र आचार्य धर्मेन्द्र जी को पावन धाम विराट नगर का सं १९७८ में पंचखंड पिठादिश्वर नियुक्त कर दिया था। वज्रांग मंदिर से जब पहाड़ पर से निचे आते है तो वहा पर भीम तालाब स्थित है।

यह भीम के पैर के पंजे के आकर का है। अग्यात्वास के दौरान पांडव विराटनगर में महाराज विराट के यहाँ रुके थे।