मधुसूदन दास

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मधुसूदन दास
Madhusudan Das.jpg
उत्कल-गौरव मधुसूदन दास
स्थानीय नामଉତ୍କଳ ଗୌରବ କୁଳବୃଦ୍ଧ ମଧୁସୂଦନ ଦାସ
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मृत्यु स्थान/समाधिसाँचा:br separated entries
व्यवसायLawyer, social reformer, minister, industrialist
राष्ट्रीयताIndian
शिक्षाM.A, B.L.
उच्च शिक्षाCalcutta University
अवधि/काल1848–1934
जीवनसाथीSoudamini Devi
सन्तानSailabala Das, Sudhanshubala Hazra

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मधुसूदन दास की प्रतिमा

मधुसूदन दास (२८ अप्रैल १८४८ - ४ फ़रवरी १९३४) ओड़िया साहित्यकार एवं ओडिया-आन्दोलन के जनक थे। उन्हें उत्कल-गौरव कहा जाता है। उन्होने ही सबसे पहले 'स्वतंत्र ओड़िशा' की संकल्पना की थी। वे 'मधुबाबु' नाम से सर्वत्र जाने जाते थे।

परिचय

मधुबाबू का जन्म वर्तमान ओड़िशा के कटक जिला के सत्यभामापुर गांव में २८ अप्रैल १८४८ को हुआ था। उनके पिता रघुनाथ दास चौधरी और माता पार्वती देवी थी। अंग्रेज शासन में पराधीन अंचलों में ओड़िआ भाषा का अस्तित्व जब संकट में था, उसी समय कुछ व्यक्तियों की निःस्वार्थ कोशिशों से ओड़िसा राज्य को स्वतंत्र रूप से अपना स्वरूप प्राप्त हुआ। अंग्रेज शासन में बंगाल, बिहार, केन्द्र प्रदेश और मद्रास के भीतर खण्ड-विखण्डित होकर ओड़िसा टूटी-फूटी अवस्था में था। ओड़िआ भाषा लोगों को एकत्र करके एक स्वतंत्र प्रदेश निर्माण के लिये अनेक चिंतक, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक एवं देशभक्त व्यक्तियों ने बहुत प्रयत्न किये। उन महान व्यक्तियों में उत्कल गौरव मधुसूदन दास सबसे पहले व प्रमुख व्यक्ति थे। ओड़िआ माटी के ये सुपुत्र मधुबाबु जिनके प्रयासों से १ अप्रैल १९३६ को स्वतंत्र ओडिसा प्रदेश गठित हुआ था। वे प्रदेश गठन देखने जीवित नहीं थे।

ओड़िआ भाषा की सुरक्षा एवं स्वतंत्र ओड़िसा प्रदेश गठन हेतु मधुबाबु ने 'उत्कल सम्मिलनी' की स्थापना की। इसमें खल्लिकोट राजा हरिहर मर्दराज, पारला महाराज कृष्णचंद्र गजपति, कर्मवीर गौरीशकर राय, कविवर राधानाथ राय, भक्तकवि मधुसूदन राव, पल्लीकवि नन्दकिशर बल, स्वभावकवि गंगाधर मेहेर और कई विशिष्ट व्यक्तिगणों का सक्रिय योगदान सतत स्मरणीय रहेगा। मधुबाबु ने उत्कल सम्मिलनी में योगदान दिये अपनी कविताओं से लोगों का आह्‌वान किया था। उस समय कुछ क्रांतिकारी बंगाली लोग कहते थे- 'उड़िया एक स्वतंत्र भाषा नहीं, बांग्ला की एक उप भाषा है', परंतु मधुबाबु की सफल चेष्टा से ओड़िआ को एक स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। फलस्वरूप भारत में भाषा आधारित सर्वप्रथम प्रदेश बनकर ओड़िसा उभर आयी।

मधुबाबू का घर

१९०३ में मधुबाबु द्वारा प्रतिष्ठित उत्कल सम्मिलनी से ओड़िआ आंदोलन आगे बढा। उसी वर्ष वे कांग्रेस छोड़ कर ओड़िआ आंदोलन में स्वयं को नियोजित किया। मधुबाबु स्वाभिमान एवं आत्ममर्यादा को विशेष प्राधान्य देते थे। धन-सम्पत्ति भले ही नष्ट हो जाये, परवाह नहीं, परंतु आत्म-सम्मान सदा अक्षुण्ण बना रहे। मधुबाबु बहुत दयालु तथा दानवीर थे। उन्होंने अपनी कमाई तथा सम्पत्ति को पूरे का पूरा जनता की सेवा में लगा दिया था। यहां तक वे दिवालिया भी हो गये। वे पहले ओड़िआ नेता बने जिन्होंने विदेश यात्रा की और अंग्रेजों के सामने ओड़िसा का पक्ष रखा। मधुबाबु कलकत्ता से एम.ए. डिग्री और बी.एल. प्राप्त करने वाले प्रथम ओड़िआ हैं। वे विधान परिषद के भी प्रथम ओड़िआ सदस्य हैं। वे अपनी वकालत (बैरिष्टरी) के कारण ओड़िसा में 'मधु बारिष्टर' के नाम से सुपरिचित हैं।

अपनी देशभक्ति, सच्चे नीति, संपन्न नेतृत्व एवं स्वाभिमानी मर्यादा सम्पन्न गुणों के कारण बारिष्टर श्री मधुसूदन दास सदैव स्मरणीय हैं। कटक स्थित मधुसूदन आइन महाविद्यालय उनके नाम से नामित है। उनकी जन्मतिथि २८ अप्रैल को समग्र ओड़िसा राज्य में 'वकील दिवस' और 'स्वाभिमान दिवस' के रूप में मनाई जाती है।

ओड़िशा सचिवालय के सामने उत्कल मणि मधुसूदन दास की प्रतिमा

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ