बथुआ
बथुआ की पत्तियों में विटामिन ए की सर्वाधिक मात्रा 11300 IU ( international unit) पाई जाती है।
बथुआ scientific name - chenopodium album Family - amaranthaceae एक वनस्पति है जो भारत में रवि के फसलों के साथ उगता है। इसका शाक बनाकर खाने के काम आता है।
औषधीय गुणों से भरपूर बथुआ== बथुआ एक ऐसी सब्जी है जिसके गुणों से ज्यादातर लोग अपरिचित हैं। ये छोटा-सा दिखने वाला हराभरा पौधा काफी फायदेमंद होता है, सर्दियों में इसका सेवन कई बीमारियों को दूर रखने में मदद करता है। बथुए में आयरन प्रचुर मात्रा में होता है, बथुआ न सिर्फ पाचनशक्ति बढ़ाता बल्कि अन्य कई बीमारियों से भी छुटकारा दिलाता है। गुजरात में इसे चील भी कहते है। बथुआ एक ऐसी सब्जी या साग है, जो गुणों की खान होने पर भी बिना किसी विशेष परिश्रम और देखभाल के खेतों में स्वत: ही उग जाता है। एक डेढ़ फुट का यह हराभरा पौधा कितने ही गुणों से भरपूर है। बथुआ के परांठे और रायता तो लोग चटकारे लगाकर खाते हैं, लेकिन वे इसके औषधीय गुणों से ज्यादा परिचित नहीं है, बता रहे हैं वैद्य हरिकृष्ण पाण्डेय ‘हरीश’ इसकी पत्तियों में सुगंधित तैल, पोटाश तथा अलवयुमिनॉयड पाये जाते हैं। दोष कर्म की दृष्टि से यह त्रिदोष (वात, पित, कफ) को शांत करने वाला है। आयुर्वेदिक विद्वानों ने बथुआ को भूख बढ़ाने वाला पित्तशामक मलमूत्र को साफ और शुद्ध करने वाला माना है। यह आंखों के लिए उपयोगी तथा पेट के कीड़ों का नाश करने वाला है। यह पाचनशक्ति बढ़ाने वाला, भोजन में रुचि बढ़ाने वाला पेट की कब्ज मिटाने वाला और स्वर (गले) को मधुर बनाने वाला है। गुणों में हरे से ज्यादा लाल बथुआ अधिक उपयोगी होता है। इसके सेवन से वात, पित्त, कफ के प्रकोप का नाश होता है और बल-बुद्धि बढ़ती है। लाल बथुआ के सेवन से बूंद-बूंद पेशाब आने की तकलीफ में लाभ होता है। टीबी की खांसी में इसको बादाम के तेल में पकाकर खाने से लाभ होता है। नियमित कब्ज वालों को इसके पत्ते पानी में उबाल कर शक्कर (चीनी नहीं) मिला कर पीने से बहुत लाभ होता है। यही पानी गुर्दे तथा मसाने के लिए भी लाभकारी है। इस पानी से तिल्ली की सूजन में लाभ होता है। सूजन अधिक हो तो उबले पत्तों को पीसकर तिल्ली पर लेप लगाएं। लाल बथुआ हृदय को बल देने वाला, फोड़े-फुंसी, मिटाकर खून साफ करने में भी मददगार है। बथुआ लीवर के विकारों को मिटा कर पाचन शक्ति बढ़ाकर रक्त बढ़ाता है। शरीर की शिथिलता मिटाता है। लिवर के आसपास की जगह सख्त हो, उसके कारण पीलिया हो गया हो तो छह ग्राम बथुआ के बीज सवेरे शाम पानी से देने से लाभ होता है। बीजों को सिल पर पीस कर उबटन की तरह लगाने से शरीर का मैल साफ होता है, चेहरे के दाग धब्बे दूर होते हैं। तिल्ली की बीमारी और पित्त के प्रकोप में इसका साग खाना उपयोगी है। इसका रस जरा-सा नमक मिलाकर दो-दो चम्मच दिन में दो बार पिलाने से पेट के कीड़ों से छुटकारा मिलता है। पत्तों के रस में मिश्री मिला कर पिलाने से पेशाब खुल कर आता है। इसका साग खाने से बवासीर में लाभ होता है। पखाना खुलकर आता है। दर्द में आराम मिलता है। इसके काढ़े से रंगीन तथा रेशमी कपड़े धोने से दाग धब्बे छूट जाते हैं और रंग सुरक्षित रहते हैं। अरुचि, अर्जीण, भूख की कमी, कब्ज, लिवर की बीमारी पीलिया में इसका साग खाना बहुत लाभकारी है। सामान्य दुर्बलता बुखार के बाद की अरुचि और कमजोरी में इसका साग खाना हितकारी है। धातु दुर्बलता में भी बथुए का साग खाना लाभकारी है।
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