उदयसुंदरी कथा

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उदयसुंदरी कथा सोड्ढल कृत एक कथात्मक गद्यकाव्य। कुछ विद्वानों ने इसे चंपूकाव्य कहा है लेकिन लेखक ने स्वयं अपनी कृति को गद्यकाव्य माना है तथा बाणभट्ट के गद्य को अपने लिए आदर्श बताया है। यह ठीक है, लेकिन एक तो उनकी संख्या उतनी नहीं जितनी चंपूकाव्य में अपेक्षित होती है, दूसरे बाद के साहित्याचार्यो द्वारा निर्धारित कथा के समस्त लक्षण भी उक्त कृति पर पूरी तरह घट जाते हैं।

संपूर्ण रचना आठ उच्छ्‌वासों में रची गई है इसमें नागराज शिखंडतिलक की आत्मजा उदयसुंदरी के साथ प्रतिष्ठान नरेश मलयवाहन के प्रेम ओर विवाह की काल्पनिक कथा का आलंकारिक एवं अतिशयोक्ति पूर्ण समायोजन किया गया है।

उदयसुंदरी कथा के प्रथम उच्छ्‌वास में लेखक ने अपना और अपने परिवार का परिचय दिया है जिसके अनुसार वह गुजरात के वालभ कायस्थकुलोत्पन्न सूर का पुत्र था और उसकी माता का नाम पद्यावती था। उसे कोंकण के चित्तराज, नागर्जुन तथा मुंमणिराज इत्यादि नरेशों का संरक्षण मिला था जिनकी राजधानी स्थानक (बंबई के समीप आधुनिक थाना नामक स्थान) थी। उदयसुंदरी कथा का रचनाकाल विद्वानों ने सन्‌ १००० ई निश्चित किया है, परंतु लेखक ने कृति के प्रथम उच्छ्‌वास में चूँकि गुजरात के लाट नरेश वत्सराज के संरक्षण में रहने का उल्लेख भी किया है, इसलिए हो सकता है कि उक्त कृति की रचना सन्‌ १०२६-१०५० ई के बीच हुई हो। इस रचना का विशेष महत्व इसलिए भी है कि कवि ने अपने और अपने वंश के परिचय के साथ साथ बाण, कुमारदास, भास आदि अपने पूर्वकवियों तथा लेखकों के संबंध में भी २५ छंद दिए हैं।

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