रोगनिरोधन
रोगनिरोधन (Prophylaxis) का आशय है 'रोग से बचने के लिए उपाय करना'। रोगनिरोधी उपाय संक्रामक रोगों के प्रति सबसे अधिक सफल सिद्ध हुए हैं। संक्रामक रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को होते हैं और सूक्ष्म जीवों से उत्पन्न होते हैं।
विधियाँ
रोगनिरोधन की दो प्रमुख विधियाँ हैं :
- (१) प्रतिरक्षा रोगनिरोधन (immuno prophylaxis) और
- (२) रसायन रोगनिरोधन (chemo prophylaxis)।
प्रतिरक्षा रोगनिरोधन
यदि हम किसी व्यक्ति के रुधिर में संदिग्ध रोगजनक के प्रतिरक्षियों (antibodies) की मात्रा किसी प्रकार बढ़ा दें, तो व्यक्ति की रोग-प्रतिरोध-क्षमता बढ़ जाती है। संभाव्य व्यक्तियों के शरीर में प्रतिरक्षियों का अनुमापनांक (titre) बढ़ाने की दो विधियाँ हैं :
सक्रिय प्रतिरक्षण
तंत्र में संबद्ध रोगजनक जीवाणु के उपयुक्त प्रतिजन (antigen) इस प्रकार प्रविष्ट कर दिए जाते हैं कि रोग तो न उत्पन्न हो किंतु आवश्यक प्रतिरक्षी बन जाएँ। ऐसा टीका लगाकर किया जाता है (देखें टीका)। कुछ जीवाणु, जैसे डिपथीरिया (diphteria), धनुस्तंभ आदि के जीवाणु, अपने शरीर से जीवविष (exotoxin) निकालते हैं, जो शरीर पर दुष्प्रभाव उत्पन्न करते हैं। ऐसे रोगों में सुधारे हुए जीवविष (toxin) की, जिसे जीवविषाभ (toxoid) कहते हैं, सूई दी जाती है। इनका प्रभाव हानिकारक नहीं होता पर इनमें प्रतिरक्षी उत्पन्न करने की क्षमता होती है। ये जीवविष के प्रभाव का निराकरण कर देते हैं।
सक्रिय प्रतिरक्षण का दोष यह है कि प्रतिरक्षा के प्रेरण में अधिक समय लगता है और कभी कभी एक एक महीने के अंतर पर कई बार सुई लगानी पड़ती है। परंतु इसमें लाभ यह है कि यह प्रतिरक्षा दीर्घकालिक होती है। चेचक, डिपथीरिया, धनुस्तंभ, कुक्कुरखाँसी (whooping cough) और पोलियो (Poliomyelitis) आदि से बचाने के लिए शिशुओं को इस विधि से प्रतिरक्षित किया जाता है। इसके अभाव में वे किसी न किसी संक्रमण के शिकार हो सकते हैं। इसी प्रकार सैनिकों को धनुस्तंभ और गैस गैंग्रीन (gas gangrene) से, जिनसे वे युद्धक्षेत्र में अरक्षित रहते हैं, प्रतिरक्षित किया जाता है। जब भी कभी हैजा, या प्लेग जैसी महामारी फैलती है, तब जनसाधारण को प्रतिरक्षित कर दिया जाता है।
निष्क्रिय प्रतिरक्षण
जब तात्कालिक प्रतिरक्षण अपेक्षित हो, जैसे रोग के प्रभाव में आ चुके व्यक्तियों के तंत्र में, तब बने बनाए प्रतिरक्षी प्रविष्ट कराए जाते हैं। ये विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किए जाते हैं :
(क) विशिष्ट चिकित्सीय सीरम (Specific Therapeutic Serum) - विशिष्ट रोग के प्रति सक्रिय रूप से प्रतिरक्षित घोड़े से यह सीरम प्राय: प्राप्त किया जाता है, यद्यपि अन्य पशुओं के सीरम भी काम में लाए जा सकते हैं। ऐसे सीरम से लाभ यह है कि उसमें प्रतिरक्षी अंश अधिक होता है। ऐसा सीरम किसी भी आवश्यक मात्रा में प्राप्त हो सकता है। इस सीरम के दोष यह है कि इसका प्रोटीन मानव शरीर के प्रोटीन से भिन्न होता है। अत: इन प्रोटीनों के प्रति ऐलर्जिक (allergic) मनुष्यों में सीरम प्रतिक्रियाएँ देता है। ऐसे सीरम के महत्वपूर्ण उदाहरण ऐंटीडिपथीरिया सीरम, ऐंटी टिटनस सीरम, ऐंटीगैसगैंग्रीन सीरम हैं।
(ख) अति प्रतिरक्षित सीरम (Hyperimmune serum) - इसमें और उपर्युक्त चिकित्सीय सीरम में अंतर यह है कि इसे मनुष्यों से प्राप्त किया जाता है, न कि अन्य पशुओं से। यह ऐसे मनुष्यों के रुधिर से बनाया जाता है जिनमें बार बार उपयुक्त प्रतिजन की सुई लगाकर असाधारण प्रतिरोध उत्पन्न किया गया है।
(ग) उपशमी सीरम (Convalescent serum) - यह मद्य: रोगयुक्त मनुष्य से प्राप्त किया जाता है। किसी विशिष्ट संक्रमण से मुक्त होने पर व्यक्ति में जो प्रतिरक्षी उत्पन्न होता है उसी के कारण उसमें प्रभावोत्पादक गुण होता है। पर्याप्त मात्रा में प्राप्त न होने के कारण इसकी उपयोगिता बहुत सीमित है।
(घ) गामा ग्लोब्यूलिन (Gamma Gobulin) - मानवी सीरम में पाए जानेवाले अधिकतर प्रतिरक्षी गामा ग्लोब्यूलिन अंश में सीमित होते हैं। जिन बच्चों में मसूरिका (measles) के संक्रमण की आशंका होती है उन्हें गामा ग्लोब्यूलिन की सुई द्वारा, प्रतिरक्षण प्रदान किया जा सकता है। पोलियो महामारी में रोगनिरोधी उपाय के रूप में भी गामा ग्लोब्यूलिन का उत्साहवर्धक योग पाया गया है। ग्लोब्यूलिन का प्रधान स्रोत, रेडक्रॉस रक्तदान कार्यक्रम के अंतर्गत व्यक्तियों द्वारा प्रदत्त रुधिर है। व्यापार का ग्लोब्यूलिन प्लेसेंटा (placenta) से प्राप्त होता है।
रसायन रोगनिरोधन
जब मनुष्य किसी संचारी रोग के क्षेत्र में कुछ समय रह चुका होता है, तब वह रोगनिरोधन के लिए कुछ प्रतिजैविकी (antibiotics) और रसायन चिकित्सीय ओषधियों का प्रयोग कभी कभी करता है। विशेष रूप से प्रतिजैविकी आमवातिक ज्वर (Rheumatic fever), मैनिंगोकोकल तानिकाशोथ (Meningococcal meningitis), मलेरिया और कुछ योनिरोगों, जैसे सुजाक (Gonorrhoea) तथा सिफ़लिस (Syphilis) में लाभप्रद होता है।
इन सबके बावजूद समुचित व्यक्तिगत और पर्यावरण की स्वच्छता के साथ पृथक्करण और संगरोधन (quarantine) ही सर्वोत्तम रोगनिरोधक उपाय हैं और ये किसी भी जनस्वास्थ्य कार्यक्रम के अनिवार्य तत्व हैं।
बाहरी कड़ियाँ
- US Preventive Medicine Task Force
- Association of Preventive Medicine Residents
- US Preventive Medicine
- The Prevention Plan
- American College of Preventive Medicine
- American Board of Medical Specialties
- American Board of Preventive Medicine
- American College of Veterinary Preventive Medicine
- Association for Prevention Teaching and Research
- Health-EU Portal Prevention and Promotion