साँचा:आज का आलेख १५ सितंबर २०१०
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रामायण संस्कृत का सर्वप्रथम महाकाव्य है जिसकी रचना वाल्मीकि ऋषि ने की। प्रथम महाकाव्य की रचना करने के कारण ही उन्हें ‘आदिकवि’ की उपाधि मिली। उनकी यह रचना न केवल भारत में वरन, उन दिनों विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार का नगण्य साधन होने के बावजूद भी, विश्वप्रसिद्ध रचना बन गई तथा उनकी ये रचना सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रिय हो गई। विश्व के अधिकांश देशों में वाल्मीकि रामायण के आधार पर राम के चरित्र पर विभिन्न नामों से रचनायें की गईं।
आज हम यदि किसी विषय पर कुछ रचना करना चाहते हैं तो हम सर्वप्रथम यह देखते हैं कि उस विषय पर पहले किसने क्या लिखा है, और उन पूर्वलिखित रचनाओं से प्रेरणा लेकर हम अपना लेख लिखते हैं। महर्षि वाल्मीकि तो आदिकवि हैं अतएव उनके समक्ष प्रेरणा देने वाली कोई अन्य रचना नहीं थी। वास्तव में वे संस्कृत तथा हिंदी साहित्य के महान प्रेरक हैं।
आदिकवि वाल्मीकि की रचना से ही प्रभावित होकर सन्त श्री तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना की जो कि आज हिंदू परिवार का अंग बन गई हैं। अतः महाकवि वाल्मीकि के बाद राम के चरित्र का द्वितीय लोकप्रिय वर्णन करने वाले का श्रेय सन्त श्री तुलसीदास जी को जाता है। तुलसीदास जी के पश्चात् भी अन्य हज़ारों रचयिताओं ने राम के चरित्र पर अनेक भाषाओं में रचनायें कीं। संपूर्ण लेख पढ़ें...