दृष्टांत अलंकार

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जहाँ उपमेय और उपमान तथा उनके साधारण धर्मों में बिंब प्रतिबिंब भाव होता है वहाँ दृष्टांत अलंकार की रचना होती है। यह एक अर्थालंकार है। जैसे- सुख-दुःख के मधुर मिलन से

यह जीवन हो परीपुरण

पिर घन में ओझल हो शशी

फिर शशी से ओझल हो घन।

यहाँ सुख-दुःख तथा शशी-घन में बिंब प्रतिबिंब का भाव है इसलिए यहाँ दृष्टांत अलंकार है।