सरफरोशी की तमन्ना
सरफरोशी की तमन्ना भारतीय क्रान्तिकारी बिस्मिल अज़ीमाबादी[१] द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध देशभक्तिपूर्ण ग़ज़ल है जिसमें उन्होंने आत्मोत्सर्ग की भावना को व्यक्त किया था।[२] उनकी यह तमन्ना क्रान्तिकारियों का मन्त्र बन गयी थी[३] यह ग़ज़ल उर्दू छ्न्द बहरे-रमल में लिखी गई है जिसका अर्कान (छन्द-सूत्र) है: "फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलुन"।[४] हिन्दी में यदि इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाये तो यह परिवर्तित अष्टपदीय गीतिका छन्द के अन्तर्गत आती है इस छन्द का सूत्र है: "राजभा गा, राजभा गा, राजभा गा, राजभा"[५]।
बिस्मिल अज़ीमाबादी »
अक्सर लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल जी की रचना बताते हैं लेकिन वास्तव में ये अज़ीमाबाद (अब पटना) के मशहूर शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी की हैं और रामप्रसाद बिस्मिल ने उनका शे'र फांसी के फंदे पर झूलने के समय कहा था। चूँकि अधिकाँश लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल की रचना मानते है इसलिए इस रचना को बिस्मिल के पन्ने पर भी रखा गया है। -- कविता कोश टीम
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है
एक से करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान, हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को क़त्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-क़ातिल में है
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित वन्दे मातरम जैसे सुप्रसिद्ध गीत के बाद बिस्मिल अज़ीमाबादी की यह अमर रचना, जिसे गाते हुए न जाने कितने ही देशभक्त फाँसी के तख़्ते पर झूल गये, उसके वास्तविक इतिहास सहित नीचे दी जा रही है।
इतिहास
बिस्मिल अज़िमाबादी (1901 - 1978) पटना, बिहार से एक उर्दू कवि थे। 1921 में उन्होंने "सरफरोशी की तमन्ना" नामक देशभक्ति कविता लिखी थी।यह कविता राम प्रसाद बिस्मिल, एक भारतीय महान क्रान्तिकारी नेता ने मुकदमे के दौरान अदालत में अपने साथियों के साथ सामूहिक रूप से गाकर लोकप्रिय भी बनाया। बिस्मिल' अज़ीमाबादी ने इसे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के नौजवान स्वतन्त्रता सेनानियों के लिये सम्बोधि-गीत के रूप में लिखा था। 'बिस्मिल' की शहादत के बाद इसे स्वतन्त्रता सेनानियों की नौजवान पीढ़ी जैसे शहीद भगत सिंह तथा चन्द्रशेखर आजाद आदि के साथ भी जोड़ा जाता रहा है। [1] यह पहली एक जर्नल् "सबाह्" मै दिल्ली से प्रकाशित हुई ।
पाठ
उर्दू पाठ | देवनागरी पाठ | ||
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سرفروشی کی تمنا اب ہمارے دل میں ہے |
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है। |
उर्दू लिपि यहाँ एक आधार की तरह उपयोग की गयी है, जो किसी भारतीय (अब पाकिस्तानी) कवि के हाथों लिखी गयी, फिलहाल संशोधित तथा विस्तृत की गयी है।[८]
पॉप संस्कृति में
इस कविता का प्रयोग मनोज कुमार की भगत सिंह के जीवन पर सन् १९६५ में बनी फिल्म शहीद में किया गया था। एक बार फिर इसका उपयोग (कुछ पंक्तियों में फेरबदल सहित) २००२ की हिन्दी फिल्म द लीजेण्ड ऑफ भगतसिंह के एक गीत के बोलों हेतु किया गया। कविता का उपयोग २००६ की फिल्म रँग दे बसन्ती में भी हुआ। इसके अतिरिक्त सन् २००९ में बनी अनुराग कश्यप की फिल्म गुलाल में काट-छाँट के साथ पैरोडी के रूप में किया गया।
गुलाल में पीयूष मिश्रा द्वारा जो पंक्तियाँ सुनायी गयीं थीं उनमें तब के हिन्दुस्तान और आज के भारत दैट इज इण्डिया की स्थिति पर करारा कटाक्ष साफ झलकता है:
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है?
वक़्त आने दे बता, देंगे तुझे ऐ आसमाँ!
हम अभी से क्या बतायें, क्या हमारे दिल में है?
काश बिस्मिल आज आते, तुम भी हिन्दोस्तान में;
देखते यह मुल्क कितना, टेन्शन औ' थ्रिल में है।
आज का लड़का ये कहता' हम तो बिस्मिल थक गये;
अपनी आज़ादी तो भैया! लौंडिया के तिल में है।
आज के जलसों में बिस्मिल, एक गूँगा गा रहा;
और बहरों का वो रेला, नाचता महफ़िल में है।
हाथ की खादी बनाने, का ज़माना लद गया;
आज तो चड्ढी भी सिलती, इंग्लिशों की मिल में है।
वक़्त आने दे बता, देंगे तुझे ऐ आसमाँ!
हम अभी से क्या बतायें, क्या हमारे दिल में है?
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-क़ातिल में है?
सन्दर्भ
- आशारानी व्होरा स्वाधीनता सेनानी लेखक-पत्रकार २००४ प्रतिभा प्रतिष्ठान १६६१ नेताजी सुभाष मार्ग नई दिल्ली ११०००२ ISBN 81-88266-23-X
- आजादी की लडाई के जब्तशुदा तराने १९९८ प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली भारत
- मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' सरफरोशी की तमन्ना (४ खण्डों में) १९९७ प्रवीण प्रकाशन १/१०७९ ई महरौली नई दिल्ली-११००३० भारत
- रामप्रसाद 'बिस्मिल' क्रान्ति गीतांजलि (संकलन, शोध एवं सम्पादन:मदनलाल वर्मा 'क्रान्त') २००६ प्रवीण प्रकाशन नई दिल्ली ISBN 81-7783-128-3
- डॉ॰ मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास (३ खण्डों में) २००६ प्रवीण प्रकाशन ४७६०/६१ (दूसरी मंजिल) २३ अंसारी रोड दरियागंज नई दिल्ली-११०००२ ISBN 81-7783-122-4
- विद्यार्णव शर्मा युग के देवता-बिस्मिल और अशफाक २००४ प्रवीण प्रकाशन १/१०७९ ई महरौली नई दिल्ली-११००३० ISBN 81-7783-078-3
इन्हें भी देखें
- भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
- काकोरी काण्ड
- राम प्रसाद 'बिस्मिल'
- सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
बाहरी कड़ियाँ
- गीत सरफरोशी की तमन्ना (यू ट्यूब पर)
- साहित्य शिल्पी - बहर और छन्द (उर्दू गज़ल बनाम हिन्दी गज़ल-2) प्राण शर्मा
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ ज़ब्तशुदा तराने (भूमिका)
- ↑ आशारानी वोहरा पृष्ठ-१८
- ↑ Article #9 - Progressive Movement and Urdu Poetry स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। सरफरोशी की तमन्ना (खण्ड-२) पृष्ठ-६४
- ↑ सरफरोशी की तमन्ना (खण्ड-२) पृष्ठ-६४
- ↑ Masterpieces of Patriotic Urdu Poetry. K. C. Kanda. नई दिल्ली, Sterling, 2005.
- ↑ A. G. Noorani, Urdu and Indian nationalism. Frontline 22(25) 2005. See http://www.flonnet.com/fl2225/stories/20051216001407800.htm स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।. Accessed March 22, 2008.
- ↑ साँचा:cite webसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]