वनस्पति कोशिका

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वनस्पति कोशिका की संरचना

वनस्पति कोशिकाएं (plant cell) सुकेन्द्रिक कोशिकाएं हैं जो अन्य यूकार्योटिक जीवों की कोशिकाओं से कई महत्वपूर्ण तरीकों से भिन्न होती हैं। उनके विशिष्ट गुण निम्न प्रकार हैं - .


  • जन्तु कोशिकाओं के विरूद्ध, वनस्पति कोशिकाएं स्थिर होती हैं।

कोशिकाओं के प्रकार

  • पैरेनकाइमा कोशिकाएं वे जीवित कोशिकाएं हैं जो संग्रह और सहारे से लेकर प्रकाश संश्लेषण और फ्लोएम लोडिंग तक के विभिन्न कार्य करती हैं। जाइलेम और फ्लोएम के अलावा पत्तियां मुख्यतः पैरेन्काइमा कोशिकाओं से बनी होती हैं। बाह्यत्वचा की तरह कुछ पैरेन्काइमा कोशिकाएं प्रकाश भेद्यता और गैस विनिमय के नियंत्रण की निशिष्यता रखती हैं, पर अन्य पौधे के ऊतक की सबसे कम विशेषज्ञ कोशिकाएं होती हैं और टोटीपोटेंट बनी रहती हैं जो जीवनपर्यंत विभाजित होकर नई अविभेदित कोशिकाओं का उत्पादन करती हैं। पैरेन्काइमा कोशिकाओं की प्राथमिक भित्तियां पतली और पारगम्य होती हैं जिनमें से छोटे अणुओं का परिवहन हो सकता है और उनका साइटोप्लाज्म विभिन्न जैवरसायनिक कार्यकलापों जैसे नेक्टर के स्राव या पत्ते खाने की आदत को अनुत्साहित करने संश्लेषण का कार्य करते हैं उन्हें क्लोरेन्काइमा कोशिकाएं कहते हैं। आलू जैसे ट्यूबरों और फलियों के बीज कॉटीलीडॉनों का काम संग्रह करना होता है।
  • कोलेनकाइमा कोशिकाएं - कोलेनकाइमा कोशिकाएं परिपक्वता पर जीवित रहती हैं और उनमें केवल एक प्राथमिक और एक द्वितीयक भित्ति होती है। ये कोशिकाएं मेरिस्टेम से परिपक्व होती हैं जो प्रारंभ में पैरेन्काइमा जैसी दिखती हैं पर तुरंत ही भिन्नताएं नजर आने लगती हैं। इनमें प्लास्टिड विकसित नहीं होते और स्रावक उपकरण (ईआर और गॉल्जी) बढ़ कर अतिरिक्त प्राथमिक भित्ति का स्राव करता है। यह भित्ति कोनों पर सबसे मोटी होती है जहां तीन या अधिक कोशिकाएं संपर्क में आती हैं और सबसे पतली जहां केवल दो कोशिकाओं का संपर्क होता है, हालांकि भिन्न व्यवस्थाएं भी संभव हैं।[१३]

पेक्टिन और हेमीसेलूलोज डाइकोटीलीडान एंजियोस्पर्मों की कोलेन्काइमा कोशिका भित्तियों के मुख्य भाग होते हैं, जिनके पेटासाइटों में 20% तक सेलूलोज हो सकता है।[१४] कोलेन्काइमा कोशिकाएं काफी लंबी होती हैं और अनुप्रस्थ दशा मे विभाजित होकर सेप्टेट छवि देती हैं। इस कोशिका का काम पौधे को लंबाई में बढ़ने के समय अक्षीय दिशा में सहारा देना और ऊतकों को लचीलापन और तनी हुई शक्ति प्रदान करना होता है। प्राथमिक भित्ति में लिग्निन का अभाव होता है जो उसे मजबूत और कड़ा बनाता है, इसलिये यह कोशिका प्रकार प्लास्टिक सहारा देता है। यह सहारा युवा तने या पेटियोल को हवा में खड़े रहने की शक्ति देता है, लेकिन कोशिकाएं उस समय खींची जा सकती हैं जब उनके चारों ओर की कोशिकाएं लंबी हो रही होती हैं। कोलेन्काइमा के कार्य का एक उदाहरण खींचा जा सकने वाला सहारा है। सेलेरी की रस्सियों के हिस्से कोलेन्काइमा हैं।

  • स्क्लेरेनकाइमा कोशिकाएं - स्क्लेरेन्काइमा कोशिकाएं (ग्रीक स्क्लेरास से, कड़ा) कड़ी और सख्त कोशिकाएं होती हैं जिनका काम मेकेनिकल सहारा देना होता है। ये दो प्रकार की होती हैं – स्क्लेरीड या पाषाण कोशिकाएं और रेशे. इन कोशिकाओं में एक बड़ी द्वितीयक भित्ति का निर्माण होता है जो प्राथमिक कोशिका भित्ति के भीतर बनती है। द्वितीयक भित्ति में लिग्निन होता है जो उसे कड़ा और पानी के लिये अपारगम्य बनाता है। ये कोशिकाएं अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकती क्यौंकि वे सक्रिय चयापचय के लिये पर्याप्त पदार्थों का विनिमय नहीं कर सकती हैं। स्क्लेरेन्काइमा कोशिकाएं कार्यात्मक परिपक्वता पर मर जाती हैं और इनमें बिना साइटोप्लाज्म के, खाली केन्द्रीय गुहा होती है।

स्क्लेरिड कोशिकाओँ (कड़ी कोशिकाएं जो पत्तियों या फलों को कुरकुरापन देती हैं) का काम छोटे कीटों के लारवा के पाचन तंत्र को हानि पहुंचाकर हर्बीवोरी को अनुत्साहित करना और भौतिक सुरक्षा (पीच और कई अन्य फलों में कड़ी स्क्लेरिड कोशिकाओं का ठोस ऊतक पिट भित्ति बनाता है) करना है। रेशों का काम पत्तीदार पौधों की पत्तियों और तनों को वजन संभालने का सहारा और तनावयुक्त शक्ति देना होता है।[१३] स्क्ल्रेन्काइमा रेशे पानी और पोषजों (जैसे जाइलेम में) या कार्बन यौगिकों (जैसे फ्लोएम में) के संवहन का काम नहीं करते, लेकिन यह संभव है कि वे प्रारंभिक भूमि के पौधों में जाइलेम और फ्लोएम के शंशोधनों के रूप में विकसित हुए हों.

ऊतक प्रकार

अरबीडोप्सिस एपिडर्मिस की कोशिकाएं

कोशिकाओं के मुख्य वर्ग अभेदित मेरिस्मेटिक कोशिकाओं (जन्तुओं की स्टेम कोशिकाओं के समान) से उत्पन्न होकर जड़ों, तनों,पत्तियों, फूलों की ऊतक संरचनाएं और प्रजनन रचना का निर्माण करते हैं।

जाइलेम कोशिकाएं[१५] कोशिका भित्तियों की लिग्निकृत द्वितीयक मोटेपन वाली लंबायमान कोशिकाएं हैं। जाइलेम कोशिकाएं पानी के संवहन में विशेषज्ञ होती हैं और सबसे पहले सिल्यूरियन काल में 425 मिलियन से अधिक वर्ष पहले जमीन पर पहुचने के समय पौधों में वे प्रकट हुई थीं। (देखिये कुकसोनिया). वैस्कुलार पौधों या ट्रेकियोफाइटों में जाइलेम पाया जाता है। जाइलेम ट्रेकीड नुकीले, लंबायमान कोशिकाएं होती हैं, जिनमें सबसे सरल कोशिका में लगातार प्राथमिक भित्तियां और लिग्निकृत द्वितीयक मोटी भित्तियां होती हैं जो छल्ले, हुप या जालीदार जालों के रूप में होती हैं। जिम्नोस्पर्मों में अधिक जटिल ट्रेकीड होते हैं जिनमें वाल्व जैसे छिद्र होते हैं जिन्हें किनारेदार गड्ढे कहा जाता है। फर्न और अन्य ट्रिडोफाइटों तथा जिम्नोस्पर्मों में केवल जाइलेम ट्रेकीड होते हैं, जबकि एंजियोस्पर्मों में जाइलेम नलिकाएं भी होती हैं। नलिकाएं खोखली जाइलेम कोशिकाएं होती हैं जो बिना अंत भित्तियों के सिरे से सिरे तक सटी रहती हैं और लंबी लगातार नलियों में जमी रहती हैं। ब्रयोफाइटों में सच्ची जाइलेम कोशिकाएं नहीं होतीं, पर उनके स्पोरोफाइटों में पानी का संवहन करने वाला एक ऊतक होता है जिसे हाइड्रोम कहते हैं, जो सरलतर संरचना वाली लंबी कोशिकाओं से बना होता है।

फ्लोएम उच्चतर पौधों में आहार का संवहन करने वाला विशेष ऊतक होता है। आहार का संवहन एक जटिल प्रक्रिया है, जो पौधे में फ्लोएम कोशिकाओं नामक विशेषज्ञ कोशिकाओं द्वारा संपन्न की जाती है। ये कोशिकाएं आसमोसिस की क्रिया द्वारा कोशिकाओं के बीच और उनके भीतर द्रवों (आहार – पौधे के लिये चयापचय के लिये आवश्यक प्रोटीन और अन्य जरूरी तत्व) का संवहन करती हैं। इस क्रिया को पौधों में सैप का चढ़ना कहते हैं। फ्लोएम दो प्रकार की कोशिकाओं से युक्त होता है, चलनी नलियां और पास-पास स्थित साथी कोशिकाएं. चलनी नलिका तत्वों में केन्द्रक और रिबोसोम नहीं होते और उनका चयापचय और कार्यों का नियंत्रण पास में स्थित केन्द्रकयुक्त साथी कोशिकाओं द्वारा किया जाता है। चलनी नलियां सिरे से सिरे तक छिद्रयुक्त प्लेटों जिन्हें चलनी प्लेट कहा जाता है, द्वारा जुड़ी होती हैं, जो चलनी तत्वों के बीच प्रकाशसंश्लेष का परिवहन होने देते हैं। चलनी नलियों से प्लाज्मोडेस्माटा द्वारा जुड़ी साथी कोशिकाएं फ्लोएम में शक्कर चढ़ाने का कार्य करती हैं। ब्रयोफाइटों में फ्लोएम नहीं होता, पर मॉस स्पोरोफाइटों में लेप्टोम नामक समान कार्य करने वाला एक अधिक सरल ऊतक पाया जाता है।

पौधे की बाह्यत्वचा कोशिकाएं विशिष्ट पैरेन्काइमा कोशिकाएं होती हैं जो पत्तियों, तनों और जड़ों की बाहरी सतह को ढंकती हैं। हवाई अवयवों की बाह्यत्वचा कोशिकाएं ट्युनिका (एल1 और एल2 पर्त) नामक बाहरी पर्त से उत्पन्न होती हैं जो पौधे के शूट एपेक्स तो ढकती है,[१३] जबकि कोर्टेक्स और नलिका ऊतक कार्पस नामक शूट एपेक्स की लबले भीतरी पर्त (एल3 पर्त) से उत्पन्न होती हैं। जड़ों की बाह्यत्वचा जड़ की टोपी के ठीक नीचे स्थित कोशिकाओं की पर्त से उत्पन्न होती है।

सभी हवाई अवयवों की बाह्यत्वचा, जड़ों को छोड़कर, वैक्स और पालियेस्टर क्यूटिन से बनी एक क्यटिकल से ढंकी होती है। बाह्यत्वचा में कई कोशिका-प्रकार मौजूद हो सकते हैं। इनमें मुख्य हैं, स्टोमेटल गार्ड कोशिकाएं, ग्लैंडुलार और क्लोदिंग केश या ट्राइकोम और प्राथमिक जड़ों के मूल केश. अधिकांश पौधों की शूट बाह्यत्वचा में केवल गार्ड कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होते हैं। प्राथमिक शूट की बाह्यत्वचा की कोशिकाएं एक मात्र वनस्पति कोशिकाएं हैं जिनमें क्यटिन का संश्लेषण करने की जैवरसायनिक क्षमता होती है।[१६]

भागों

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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