सत्यशरण रतूड़ी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>InternetArchiveBot द्वारा परिवर्तित १९:४०, १० मार्च २०२२ का अवतरण (Rescuing 0 sources and tagging 1 as dead.) #IABot (v2.0.8.6)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सत्यशरण रतूड़ी 'चंचरोक' का जन्म गोदी (टिहरी) में हुआ। आप द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवियों में माने जाते हैं। उनकी कविताएँ प्राय: "सरस्वती" में प्रकाशित होती थीं। वे अत्यंत भावुक और सहृदय कवि थे। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने अपने एक पत्र में (2 मार्च 1938 को म्यामचंद नेगी को लिखित) इन शब्दों में उनकी प्रतिभा को स्वीकार किया था : "स्वर्गवासी पं॰ सत्यशरण जी रतूड़ी सुकवि थे। भाषा पर उनका अच्छा अधिकार था। उनकी वाणी में रस था। उनकी कविताएँ सरस, सरल और भावमयी होती थीं। इससे मैं उन्हें सरस्वती में स्थान देता था।" उनकी कविताएँ विश्वरंदत्त उनियाल द्वारा संपादित "सत्य कुसुमांजलि" में संगृहीत हैं। उनकी "शांतिमयी शैय्या" कविता रामनरेश त्रिपाठी की "कवितावली" में मिलती है।

बाहरी कड़ियाँ