बनफ्शा

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बनफ्शा या नीलपुष्प

बनफ्शा (Viola odorata) सर्दी-खाँसी और कफ प्रकोप को दूर करने वाली जड़ी-बूटी है, जो आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा पद्धति में एक समान रूप से उपयोग में ली जाती है।

बनफ्शा की पैदावार कश्मीर और हिमालय की घाटियों में पाँच से छह हजार फीट की ऊँचाई पर होती है। इसका आयात ईरान से भी किया जाता है और ईरान की बनफ्शा बहुत उत्तम जाति की होती है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- नीलपुष्प, हिन्दी- बनफ्शा, मराठी- बनफ्शाहा, गुजराती- वनपशा, बंगला- बनोशा, तमिल- बयिलेट्टु, फारसी- बनफ्शा, इंग्लिश - वाइल्ड वायलेट, लैटिन - वायोला ओडोरेटा

गुण : बनफ्शा का पंचांग (पाँचों अंग) लघु, स्निग्ध, कटु, तिक्त, उष्ण और विपाक में कटु है। स्निग्ध, मधुर और शीतल होने से यह वातपित्त शामक और शोथहर है। यह जन्तुनाशक, पीड़ा शामक और शोथ दूर करने वाला है।

परिचय

यह द्रव्य ईरान से आता है और भारत में कश्मीर और पश्चिमी हिमालय के समशीतोष्ण प्रदेश में पाँच-छह हजार फीट की ऊँचाई पर पैदा होता है। उत्तरी भारत में बनफ्शा की जगह इसकी अन्य प्रजातियों का प्रयोग होता है, जिनके नाम हैं वायोला साइनेरिया और वायोला सर्पेन्स। इसके पत्ते अण्डाकार, हृदयाकार, नुकीले, कंगूरेदार, फूल बैंगनी रंग के और क्वचित सफेद होते हैं। इसमें छोटी-छोटी डोड़ी भी लगती है। इसके पंचांग और फूल, दोनों औषधियों के रूप में काम में आते हैं।

दोनों प्रजातियों के गुण-लाभ समान हैं और इनमें बनफ्शा से अधिक सुगन्ध होती है। इसकी जड़ विरेचन गुण वाली, ज्वर शामक, कफ निकालने वाली, पौष्टिक, पसीना लाने वाली, प्यास और जलन को शांत करने वाली होती है।

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