कैलकुलस का इतिहास

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कैलकुलस में भारत का योगदान

भारत के गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने पाँचवीं शती में अनंतांशों (infinitesimals) का प्रयोग करते हुए खगोलीय समस्याओं को अवकल समीकरणों के आरम्भिक रूप (basic differential equation) में अभिव्यक्त किया था। मंजुला ने दसवीं शती में अपने भाष्य में इस समीकरण की विस्तार से व्याख्या की। अनन्तः भास्कर द्वितीय ने १२वीं शती में अनन्तांश परिवर्तन (infinitesimal change) को निरुपित करते हुए 'अवकल' का कांसेप्ट दिया। उन्होने 'रोल के प्रमेय' के आरम्भिक स्वरूप का भी वर्णन किया है।

पन्द्रहवीं शती में केरलीय गणित सम्प्रदाय के परमेश्वर (1370–1460) ने गोविन्दस्वामी एवं भास्कर द्वितीय पर लिखे भाष्य में मध्य मान प्रमेय (mean value theorem) का आरम्भिक संस्करण प्रस्तुत किया।

न्यूटन एवं लैब्नीज

सत्रहवीं शती में आइसक बारो, पियरी द फर्मत, पास्कल, जॉन वालिस एवं अन्य कइयों ने अवकल (derivative) के सिन्द्धान्त पर विचार दिये। सत्रहवीं शती के अन्तिम भाग में आइजक न्यूटन एवं लैब्नीज ने स्वतंत्र रूप से अनन्तांश पर आधारित आधुनिक कलन का विकास किया।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ