जलालाबाद
जलाल आबाद- मशरक़ी अफ़ग़ानिस्तान का एक शहर (अंग्रेज़ी: Jalal Abad, पश्तो:جلال ابادजलाल अब्बाद) ये शहर अफ़ग़ानिस्तान में दरयाऐ काबुल और दरयाऐ किनार या कन्नड़ के संगम पर वाक़िअ है। वादी लग़मान में ये शहर अफ़ग़ानिस्तान के सूबा ननिग्रहअर का सदर मुक़ाम भी है। जलाल आबाद काबुल से मशरिक़ की जानिब 95 मेल के फ़ासले पर वाक़िअ है, इतना ही फासला पिशावर (पाकिस्तान) से जलाल आबाद की तरफ़ मग़रिब की जानिब है।
जलाल आबाद मशरक़ी अफ़ग़ानिस्तान में वाक़िअ सब से बड़ा शहर है और इसी लिहाज़ से इस इलाके का समाजी ओ- तिजारती मरकज़ भी है। काग़ज़ की सनअत, फलों की पैदावार, चावल और गिने की पैदावार के लिए ये शहर शौहरत रखता है। पाकिस्तान और भारत के साथ वुस़्त एशियाई रियासतों की तिजारत के लिए जलाल आबाद कलीदी एहमीयत रखता है।
तारीख़
630ए में मशहूर चीनी बुध मज़हब के रहनुमाए ज़वानग ीनग जलाल आबाद पहुंचे तो उन्होंने ख़्याल क्या कि वो हिंदूस्तान पहुंच चुके हैं। इस वक्त ये शहर गंधा रा तहज़ीब का एक बड़ा मरकज़ था और सातवें सदी में अरब हमला आवरों ने उसे फ़तह क्या। फ़तह के बाद भी यहां मुक़ामी आबादी के कुछ हिस्से ने इस्लाम क़बूल करने से इन्कार कर दिया। तारीख़ की एक किताब हदूद एलआलम जो कि 982ए में लिखी गई थी में तहरीर है कि जलाल आबाद के मुज़ाफ़ात में एक कस्बा था जहां इस वक्त के बादशाह की हिंदू, मुस्लमान और अफ़ग़ान बीवीयां रिहाइश पज़ीर थीं।
ये शहर दसवीं सदी में तर्क गज़नवी शहनशाहीत का हिस्सा बन गया, जब सुल्तान महमूद गज़नवी ने हिंदूस्तान पर हमला क्या। जदीद दूर हुकूमत में जलाल आबाद को शहंशाह बाबर के ज़माने में एहमीयत मिली। सल़्तनत मुग़लिया हिंदूस्तान के मुग़ल बादशाह बाबर ने इस शहर को मरकज़ी हैसीयत दिलाई और इस शहर ने तरक़्की की मनाज़ल शहंशाह बाबर के पोते जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर के दूर हुकूमत में तै कीं। जलाल आबाद का असल नाम आदीना पोर था लेकिन जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर के इस शहर पर एहसानात की बदौलत जलाल आबाद रखा गया।
इस शहर पर बर्तानवी अफ़वाज का पहला हमला अकबर ख़ान ने 1842ए में पुस्पा क्या, लेकिन दूसरी इंगलिस्तानी अफ़ग़ान जंग के दौरान बर्तानवी अफ़वाज 1878ए में इस शहर को रौंदती हुई आगे बढ़ीं।
1980ए और 1990ए के दरम्यानी अरसा में इस शहर को अफ़ग़ान जंग के दौरान मरकज़ी हैसीयत हासिल रही और ये शहर काबुल के बाद मरकज़ी हैसीयत इख़्तयार कर गया। ये शहर अफ़ग़ान तालिबान ने काबुल पर हमला के वक्त फ़तह कर लिया।
आज ये शहरनैटो और अक़वाम मुतहदा की मदद से दुबारा तामीर क्या जा रहा है और मतासरीन जंग जो पाकिस्तान मुंतकिल हो गए थे रफ़ता रफ़ता वापिस लौट रहे हैं। अफ़ग़ान तहज़ीब में जलाल आबाद को मरकज़ी हैसीयत हासिल है। यहां मुक़ामी अफ़ग़ान फ़ौज के अलावा अमरीकी फ़ौज के दस्ते बहुत बड़ी तादाद में मौजूद हैं और जलाल आबाद अिीरिपोर्ट पर अमरीकी फ़ौजी अड्डा अफ़ग़ानिस्तान में सब से बड़ा अमरीकी अड्डा तसव्वुर क्या जाता है।
तारीख़ी इमारात ओ- यादगारीं
1929ए में अमीर हबीब उल्लाह और शाह अमान उल्लाह की रिहाइश गाह जो जलाल आबाद में वाक़िअ थी, इस को तबाह कर दिया गया। इस महल का नाम सिराज एलइमारत था। दोनों हुक्मरानओ-ं के मज़ार सिराज एलइमारत से मलहक़ा बाग़ में कायम हैं।
खु़दाई ख़िदमतगार तहरीक के सरबराह ख़ान अब्दअलग़फ़्फ़ार ख़ान का मज़ार भी जलाल आबाद में वाक़िअ है और उन्हें इन की वसीत के मुताबिक यहां दफ़न क्या गया था।
तर्ज़ मा शर्त
जलाल आबाद की तक़रीबन आबादी पख़तूनों पर मुशतमिल है, एक अंदाज़े के मुताबिक %90 आबादी पख्तून है। इन के अलावा पाशी जो कि पख्तून ही तसव्वुर किए जाते हैं कि आबादी %7 है। बक़ीया %3 आबादी ताजकों, गुजरों पर मुशतमिल है। पश्तो यहां की अज़ीम तरीन ज़बान है और यही पूरे सूबा ननिग्रहअर में राइज है। फ़ारसी और उर्दू यहां की दूसरी ज़बानें हैं जो कि नज़दीकी शहरों के असरात ज़ाहिर करती हैं।
जदीद युति
हालीया मनसूबा बराए तरक़्की अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ग़ानिस्तान की पहली रेल की पटरी बिछाने का इरादा क्या गया है जो जलाल आबाद को पाकिस्तान के वसीअ रेलवे के निज़ाम से जोड़ दे गी। इस तरह दोनों मुमालिक के दरम्यान तिजारत और सफरी सहोलीअत की बिना पर तरक़्की की नई मनाज़ल तै हूं गी। जलाल आबाद से काबुल और पिशावर तक सड़कों की अज़ सर नौ तामीर ओ- कुशादगी का मनसूबा भी ज़ेर ग़ौर है। सयाहत और तिजारत के लिहाज़ से पिशावर और जलाल आबाद का आपस में राबिता बलअशबा इलाके में तरक़्की लाए गा, फ़ी इलहाल इस बात पर ग़ौर क्या जा रहा है कि किस तरह से रेलवे लाइन और सड़कों पर क़ाफ़िलों और तिजारती सामान को तहफ्फुज़ फ़राहम क्या जाए।
काबुल और जलाल आबाद के दरम्यान सड़क को पहले ही कुशादा क्या जा चुका है जिस की वजह से दूर अध्न्या सफ़र और मुश्किलात में ख़ातिर ख़ाह कमी वाक़िअ हुई है।
मज़ीद देखिए
हवाला जात
सूबा ननगर हार के शहर और मालूमात
वलीम ओ-विगसांग; दी अफ़ग़ानज़ (वली ब्लैक वील ने 2002ए में शाय की)
पिशावर का गज़िीटियर 1897ए सफाह 55