लज्जा (पुस्तक)

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लुआ त्रुटि: expandTemplate: template "italic title" does not exist।साँचा:template other लज्जा तसलीमा नसरीन द्वारा रचित एक बंगला उपन्यास है। यह उपन्यास पहली बार १९९३ में प्रकाशित हुआ था और कट्टरपन्थी मुसलमानों के विरोध के कारण बांगलादेश में लगभग छः महीने के बाद ही इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस अवधि में इसकी लगभग पचास हजार प्रतियाँ बिक गयीं।

परिचय

बांग्लादेश की विवादित लेखिका तसलीमा नसरीन का बाँग्ला भाषा में लिखा गया यह पाँचवाँ उपन्यास सांप्रदायिक उन्माद के नृशंस रूप को रेखांकित करता है। धार्मिक कट्टरपन को उसकी पूरी बर्बरता से सामने लाने के कारण उन्हें इस्लाम की छवी को नुकसान पहुँचाने वाला बताकर उनके खिलाफ मौलवियों द्वारा सज़ा-ए-मौत के फतवे जारी किए गए। बाँग्लादेश की सरकार ने भी उन्हें देश निकाला दे दिया जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।।

“लज्जा” का आरम्भ होता है ६ दिसम्बर १९९२ को बाबरी मस्जिद तोड़े जाने पर बांग्लादेश के मुसलमानों की आक्रामक प्रतिक्रया से। वे अपने हिन्दू भाई-बहनों पर टूट पड़ते है और उनके सैकडों धर्मस्थलों को नष्ट कर देते हैं। इस कृति के संबंध में तसलीमा लिखती हैे कि- "'लज्जा' को विरोध के प्रतीक के तौर पर देखा जा सकता है। यह विरोध है उस हिंसा, नफरत और मार-पीट के खिलाफ जो धर्म के नाम पर पूरी दुनिया में जारी है।"[१]

पात्र

  • सुरंजन दत्त
  • सुधामय दत्त- सुरंजन के पिता
  • किरणमयी दत्त- सुरंजन की माँ
  • माया (नीलांजना दत्त)- सुरंजन की बहन

संदर्भ श्रोत

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हरी कड़ियाँ==

संदर्भ