बैरामजी जीजाभाई
बैरामजी जीजाभाई (1822 - 1890) भारत के एक धनी व्यवसायी एवं जनसेवी व्यक्ति थे जिन्होने मुम्बई में अनेक शैक्षिक संस्थान स्थापित किया।
जीजाभाई परिवार के संस्थापक, जो जनसेवा तथा विश्वप्रेम के लिए प्रसिद्ध थे, सूरत जिले के इलाव गाँव से सन् 1729 में बंबई आए थे। आपकी सबसे प्रसिद्ध संतति बैरामजी जीजाभाई थे। बैंकों, रेलवे संस्थाओं और रूई के स्पिनिंग और वीविंग मिल के डाइरेक्टर होने के साथ ही आप बंबई प्रांत के वाणिज्य जीवन के प्रधान प्रेरक थे।
उन दिनों न्यायाधीशों की बेंच ही म्युनिसपल सरकार की देखरेख और और नियंत्रण के लिए उत्तरदायी थी। बैरामजी 1855 में न्यायाधीश नियुक्त हुए। 1867 में आप मुंबई विश्वविद्यालय के फेलो रूप में नियुक्त हुए और बंबई की लेजिस्लेटिव कौंसिल के अतिरिक्त सदस्य बनाए गए। यहाँ आपने जनता की रुचि के अनुकूल पथप्रदर्शक के रूप में सम्मान प्राप्त किया। उस समय जो बिल विचार विमर्श के लिए आए उनमें एक था अन्नों पर नगरकर लगाना। बैरामजी ने उसक घोर विरोध किया और जनता की भावनाओं को उत्साहपूर्वक सबके सम्मुख पेश किया। उनका कहना था कि यदि अतिरिक्त रेवन्यू लगाने की आवश्यकता ही है तो स्पिरिट तथा उत्तेजक पेय पदार्थों कर लगाया जाए बनिस्पत इसके कि आधा पेट भोजन मात्र करनेवाली जनसंख्या के भोजन पर लगाया जाए।
वाणिज्य और राजनीतिक जीवन से संबंधित उनके कार्य और प्रयास जैसे ध्यान देने योग्य हैं वैसे ही बैरामजी के अनेक उपकार तथा दान दक्षिणाएँ भी महत्वपूर्ण हैं। आपकी आर्थिक सहायताओं और दानों में सबसे महत्वपूर्ण है, गरीब पारसी बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा के लिए एक संस्था की स्थापना हेतु 3,50,000 के मूल्य के सरकारी कागजों का दान। आप से पर्याप्त में दान प्राप्त करनेवाले जातीय पक्षपात रहित संस्थाओं में प्रमुख हैं अहमदाबाद और पूना का सरकारी मेडिकल स्कूल, थाना का हाईस्कूल और भिवण्डी का ऐंग्लोवर्नाक्यूलर स्कूल। बंबई का नेटिव जेनरल पुस्तकालय, अलेक्जांडरा नेटिव गर्ल्स इंग्लिश इंस्टीट्यूशन और विक्टोरिया व एडवर्ड म्यूजियम तथा पिंजरापोल आपकी उदारता व अनुग्रह के भागी थे।