हिन्दू दर्शन में नास्तिकता

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नास्तिकता या निरेश्वरवाद या 'ईश्वर नहीं है' का सिद्धान्त अनेकों हिन्दू दर्शनों में तथा समय-समय पर देखने को मिलता है।

वैदिक दर्शनों में नास्तिकता का कोई स्थान नही है सांख्यदर्शन वेद से प्रभावित दर्शन है तथा वेद का ज्ञान स्वयं ईश्वर द्वारा दिया गया था

  • मीमांसा ये वेदांग का हिस्सा है ओर वेद ईश्वरीय ज्ञान है
  • सांख्य दर्शन मे केवल एक स्थान पर आक्षेप लगाया जाता है बाकी सारे स्थान मंत्र आदि में ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण दिया है
  • यह कहना सही नही है कि वीर सावरकर नास्तिक थे क्योकि उन्होने अनेको बाद दुर्गा भवानी तुलजा भवानी आदि देवीयों पर कवीताएं लिखते है ओर कई बार अपने संकल्पों की सिद्धी के लिए माँ भवानी के सामने शपत ली गई

'नास्तिक' या अवैदिक दर्शनों में नास्तिकता

जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन और चार्वाक दर्शन वेदों को अस्वीकार करते हैं। इस अर्थ में उन्हें नास्तिक कहा जाता है न कि ईश्वर के अस्तित्व को न मानने के कारण। वेदों को न मानने के साथ इन दर्शनों में 'सृजक ईश्वर' को भी अस्वीकार किया गया है।

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स्रोत

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