सत्यकाम जाबाल

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>सौरभ तिवारी 05 द्वारा परिवर्तित १७:११, २ जनवरी २०२२ का अवतरण (103.173.20.72 (Talk) के संपादनों को हटाकर रोहित साव27 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सत्यकाम जाबाल, महर्षि गौतम के शिष्य थे जिनकी माता जबाला थीं और जिनकी कथा छांदोग्य उपनिषद् में दी गई है। सत्यकाम जब गुरु के पास गए तो नियमानुसार गौतम ने उनसे उनका गोत्र पूछा। सत्यकाम ने स्पष्ट कह दिया कि मुझे अपने गोत्र का पता नहीं, मेरी माता का नाम जबाला और मेरा नाम सत्यकाम है। मेरे पिता युवावस्था में ही मर गए और घर में नित्य अतिथियों के आधिक्य से माता को बहुत काम करना पड़ता था जिससे उन्हें इतना भी समय नहीं मिलता था कि वे पिता जी से उनका गोत्र पूछ सकतीं। गौतम ने शिष्य की इस सीधी सच्ची बात पर विश्वास करके सत्यकाम को ब्राह्मणपुत्र मान लिया और उसे शीघ्र ही पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हो गई।

बाहरी कड़ियाँ