नंददुलारे वाजपेयी
आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी | |
---|---|
चित्र:Nand Dulare Bajpai.jpg | |
जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
व्यवसाय | समालोचक |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
साँचा:template otherसाँचा:main other
नन्ददुलारे वाजपेयी (४ सितम्बर १९०६ - २१ अगस्त, १९६७ उज्जैन) हिन्दी के साहित्यकार, पत्रकार, सम्पादक, आलोचक और अंत में प्रशासक भी रहे। इनको छायावादी कविता के शीर्षस्थ आलोचक के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिंदी साहित्य: बींसवीं शताब्दी, जयशंकर प्रसाद, प्रेमचन्द : साहित्यिक विवेचन, आधुनिक साहित्य, नया साहित्य: नये प्रश्न आदि इनकी प्रमुख आलोचना पुस्तकें हैं। वे शुक्लोत्तर युग के प्रख्यात समालोचक थे।
जीवनी
नंददुलारे वाजपेयी का जन्म उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले के मगरायर नामक ग्राम में 4 सितंबर सन् 1906 ई॰ को हुआ था।[१][२] उनके पिता का नाम गोवर्धनलाल वाजपेयी तथा माता का नाम जनकदुलारी था। विद्यारंभ पिता की देखरेख में हुआ। आर्यसमाज विश्वास रखने वाले पिता ने बालक नंददुलारे को सात वर्ष की अवस्था में पाणिनि की 'अष्टाध्यायी' कंठस्थ करा दी थी और फिर अमरकोश के मुख्य अंश भी याद करा दिये थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हजारीबाग में संपन्न हुई। सातवें वर्ष में वे हजारीबाग के मिशन हाई स्कूल में नियमित शिक्षा के लिए भर्ती हुए थे और पन्द्रहवें वर्ष में वहीं से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा अच्छे अंको से उत्तीर्ण की थी। सन 1922 में हजारीबाग के संत कोलंबस कॉलेज में विज्ञान के विद्यार्थी के रूप में प्रवेश लिया और साल भर पढ़ने के बाद अपनी रोटियों को देखते हुए कला के विषयों को भी समन्वित कर लिया 1925 में वहीं से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय आ गये। 1927 में बी॰ए॰ की परीक्षा में संपूर्ण विश्वविद्यालय में चौथे स्थान पर आये लेकिन एम॰ए॰ की परीक्षा में, 1929 में, द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्णता प्राप्त की।[३][४]
उनका विवाह श्रीमती सावित्री देवी से 1925 के जनवरी माह में हुआ था। सन् 1936 में उनके प्रथम पुत्र स्वस्ति कुमार वाजपेयी का जन्म हुआ। इसके बाद 1941 में पुत्री पद्मा व 1945 में दूसरे पुत्र सुनृत कुमार का जन्म हुआ।[५][६]
वे 1930-1932 में दो वर्षों से कुछ अधिक समय तक "भारत", के संपादक रहे। इसके बाद लगभग चार वर्षों तक उन्होंने काशी नागरीप्रचारिणी सभा में "सूरसागर" का तथा बाद में गीता प्रेस, गोरखपुर में रामचरितमानस का संपादन किया। वाजपेयी जी जुलाई 1941 से फरवरी 1947 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहे तथा मार्च 1947 से सितंबर 1965 तक सागर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे।[५][६] 1 अक्टूबर 1965 से वे विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के उपकुलपति नियुक्त हुए। 21 अगस्त 1967 को उज्जैन में हिन्दी के इस वरिष्ठ आलोचक का हृदयाघात के कारण अचानक निधन हो गया।
लेखन-कार्य
वाजपेयी जी ने अनेक आलोचनात्मक कृतियों की रचना की है; हालाँकि उन्होंने एकमात्र प्रेमचन्द पर केंद्रित पुस्तक 'प्रेमचन्द : साहित्यिक विवेचन', जो कि छात्रोपयोगी लेखन है,[७] को छोड़कर व्यवस्थित रूप से अन्य किसी पुस्तक का लेखन नहीं किया है।[८] उनके लेखन में निबंधों की प्रधानता है जिन्हें संकलित कर उन्होंने पुस्तकों का रूप दिया है।[९] विभिन्न समय में स्वतंत्र रूप से लिखे गये जो निबंध किन्ही विशिष्ट साहित्यकार पर केंद्रित थे उन्हें बाद में एकत्र कर उस साहित्यकार के नाम से पुस्तक रूप में प्रकाशित किये गये। 'जयशंकर प्रसाद', 'महाकवि सूरदास', 'कवि निराला' एवं 'सुमित्रानंदन पंत' आदि पुस्तकें इसी तरह के संकलन हैं। 'महाकवि सूरदास' नामक पुस्तक में तो आरंभिक तीन निबंध उनके ही निर्देशानुसार उनके प्रिय छात्र श्री मधुसूदन वाखले के द्वारा लिखे गये थे ताकि वाजपेयी जी लिखित अन्य निबंधों के साथ उन्हें मिलाकर एक उचित पुस्तकीय रूप दिया जा सके।[१०][११] इसके अतिरिक्त विभिन्न साहित्यकारों पर समय-समय पर लिखे गये कुछ निबंध तथा विभिन्न मुद्दों पर लिखे गये निबंधों के संकलन आरंभ में 'हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दी' के नाम से और बाद में 'आधुनिक साहित्य', 'नया साहित्य : नये प्रश्न' आदि नामों से पुस्तक रूप में संकलित किये गये हैं। १९६७ में उनके निधन के उपरांत भी इसी ढंग पर उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकांश का संपादन डॉ॰ शिवकुमार मिश्र ने किया है। प्रायः इन सबमें कुछ अप्रकाशित सामग्री है और कुछ पूर्व प्रकाशित। सबको मिलाकर पुस्तक को एक नया व्यक्तित्व देने का प्रयत्न किया गया है।[१२]
नंददुलारे वाजपेयी शुक्लोत्तर समीक्षा को संचालित करने वाले प्रमुख आलोचक माने जाते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल अपने युग की मुख्य काव्य-धारा 'छायावाद' को अपेक्षित सहानुभूति नहीं दे सके थे। अनेक पुराणपंथी लेखक भी छायावाद के खिलाफ थे। ऐसे समय में वाजपेयी जी ने आगे बढ़कर छायावाद को प्रतिष्ठित करने में अग्रणी भूमिका निभायी। प्रसाद-निराला-पंत को उन्होंने हिन्दी कवियों की वृहत्त्रयी के रूप में स्थापित किया।[१३]
उनका सर्वाधिक महत्त्व आधुनिक साहित्य के मूल्यांकन के लिए दृष्टि के नवोन्मेष के कारण है। इस दृष्टि से उनकी सुप्रसिद्ध पुस्तक 'हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दी' को युगान्तरकारी पुस्तक के रूप में स्मरण किया जाता है।[१४][१५] बाद के समय में विवेच्य सामग्री की दृष्टि से 'आधुनिक साहित्य' नामक पुस्तक भरी-पूरी थी, परंतु पूर्वोक्त दृष्टि के अनुरूप 'नया साहित्य : नये प्रश्न' को उसकी भूमिका 'निकष' के साथ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समीक्षा-पुस्तक के रूप में स्वीकार किया गया है।[१६][१७]
इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन किया है। इन संपादित ग्रंथों की भूमिका मात्र से उनकी सूक्ष्म एवं तार्किक दृष्टि का सहज ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
प्रकाशित कृतियाँ
- जयशंकर प्रसाद - १९३९[१८][५][६]
- हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दी - १९४२
- आधुनिक साहित्य - १९५०
- महाकवि सूरदास - १९५३
- प्रेमचंद : साहित्यिक विवेचन - १९५४
- नया साहित्य : नये प्रश्न - १९५५
- राष्ट्रभाषा की कुछ समस्याएँ - १९६१
- कवि निराला - १९६५
- राष्ट्रीय साहित्य तथा अन्य निबंध- १९६५
- प्रकीर्णिका - १९६५
- हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास
- आधुनिक काव्य : रचना और विचार
- नई कविता - १९७६
- कवि सुमित्रानन्दन पंत - १९७६
- रस सिद्धांत : नये संदर्भ - १९७७
- आधुनिक साहित्य : सृजन और समीक्षा - १९७८
- हिन्दी साहित्य का आधुनिक युग - १९७९
- रीति और शैली - १९७९
- नंददुलारे वाजपेयी रचनावली (आठ खंडों में, संपादक- विजयबहादुर सिंह) - २००८ (अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली से प्रकाशित)
वाजपेयी जी पर केन्द्रित कृतियाँ
- नन्ददुलारे वाजपेयी (विनिबन्ध) - प्रेमशंकर (१९८३) [साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से प्रकाशित]
- आलोचक का स्वदेश (जीवनी) - विजयबहादुर सिंह (२००८) [अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली से प्रकाशित; यह जीवनी 'नंददुलारे वाजपेयी रचनावली' के प्रथम खंड में भी यथावत् संकलित है।]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ आलोचक का स्वदेश, विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-289.
- ↑ नंददुलारे वाजपेयी रचनावली, प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-43.
- ↑ आलोचक का स्वदेश, विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-290.
- ↑ नंददुलारे वाजपेयी रचनावली, प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-44.
- ↑ अ आ इ आलोचक का स्वदेश, विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-292-293.
- ↑ अ आ इ नंददुलारे वाजपेयी रचनावली, प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-46-47.
- ↑ आलोचक का स्वदेश, विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-205.
- ↑ नन्ददुलारे वाजपेयी, प्रेमशंकर, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण-1983, पृष्ठ-26.
- ↑ नन्ददुलारे वाजपेयी, प्रेमशंकर, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण-1983, पृष्ठ-34.
- ↑ महाकवि सूरदास, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण-2003, पृष्ठ-19.
- ↑ आलोचक का स्वदेश, विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-204.
- ↑ नन्ददुलारे वाजपेयी, प्रेमशंकर, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण-1983, पृष्ठ-28.
- ↑ नंददुलारे वाजपेयी रचनावली, प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, अंतिम आवरण पृष्ठ पर उल्लिखित।
- ↑ आलोचक का स्वदेश, विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-144.
- ↑ नंददुलारे वाजपेयी रचनावली, प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-186.
- ↑ आलोचक का स्वदेश, विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-229.
- ↑ नंददुलारे वाजपेयी रचनावली, प्रथम खंड, सं॰ विजयबहादुर सिंह, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-271.
- ↑ जयशंकर प्रसाद, नन्ददुलारे वाजपेयी, कमल प्रकाशन, जबलपुर, संस्करण-1996, अंतिम आवरण पृष्ठ पर उल्लिखित।