जर्मन शेफर्ड
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जर्मन शेफर्ड कुत्तो की एक बड़ी नस्ल है जिसे की अल्सतियन के नाम से भी जाना जाता है और इसका जन्म जर्मनी में हुआ था। जर्मन शेफर्ड देखा जाये तो एक नयी नस्ल है जिसको १८९९ में विकसित क्या गया। यह नस्ल एक कामगारी कुत्तों की नस्ल है जिसे की भेड़ बकरियों को इकट्टा करने और उनकी रक्षा करने के काम में लिया जाता था और आज भी लिया जाता है। आज उनकी चतुराई, समझ, आज्ञाकारीपन और कई अन्य कारणों से उन्हें पूरे विश्व में पुलिस और सेना में काम में लिया जाता है। उनकी आज्ञाकारीपन की वजह से ही यह सबसे ज्यादा पाले जानी वाली कुत्तो की नस्ल बन गयी है।दुनिया भर में कुत्तों की एक से बढ़कर एक नस्लें हैं लेकिन इसके बावजूद जर्मन शेफर्ड का जो रुतबा है वो किसी और में नहीं है। यही वजह है कि आज भी यूरोप और एशिया के ग्रामीण इलाकों से लेकर बड़े शहरी इलाकों और खोजी दस्तों की पहली पसंद जर्मन शेफर्ड ही होता है।
इतिहास
मूल
यूरोप में सन १८०० में कुत्तो की नसल को मापदंड के अनुसार विकसित करने की शूरुआत की गयी। कुत्तो की उन लक्षणों का बचाव करते हुए पैदावार करायी गयी जो की उनको भेड़ बकरी की रक्षा करने व झुंड को काबू करने में मदद करते थे। इसकी शुरात जर्मनी के कई समुदायों में हुई जहा गढेरो ने उन चुनित कुत्तो को आपस में सम्भोग करने दिया जो की उनको लगा की जानवरों के झुंड की रक्षा करने में अन्यो से अधिक समर्थ गुण रखते हैं, जैसे की समजदारी, शक्ति और सूंघने के अच्छी क्षमता. इससे यह हुआ की जो कुत्ते इस चुनित मिलान से पैदा हुए वो इन सभी कामो को करने में ज्यादा अच्छे थे पर हर समुदाय में पैदा हुए कुत्ते अलग रंग रूप के थे।
जर्मन शेफर्ड: पुलिसिया कुत्तों के रूप में पहचान बना चुका जर्मन शेफर्ड दुनिया के 10 सबसे खतरनाक कुत्तों में से एक है. यह लोगों पर 108 किलो के दबाव से अटैक करता है, जिसके बाद बच पाना मुश्किल होता है. जबकि, इनका वजन 30 से 40 किलो के बीच होता है. कई देशों में इसे पालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया हैं।
इस अलगपन को दूर करने के लिए फिल्क्स संस्था की सन १८९१ में स्थपाना की गयी जिसका की मुख्य काम मानको पे खरे उतरने वाले कुत्तो की पैदावार बढाना था। पर सिर्फ तीन सालो के बाद ही इस संस्था का विघटन हो गया क्यों की इस बात पर काफी विआद हुआ की आखीर किस गुण वाली नसलो की पैदावार करनी चाहिए। कुछ लोग जहा कुत्तो को काम करने के लिए पैदा करवाना चाहते थे वही कुछ का मानना था की उनको दिखने में भी खूबसूरत लगना चाहिए। भले ही फिल्क्स संस्था अपने काम में असफल रही पर इसने सभी को कुत्तो की चुनित पैदावार कर नयी नयी नस्लों को बढाने का विचार दिया।
घुड़सवारो के एक पूर्व कप्तान मेक्स वों स्टेफनइट्ज़ जो की बर्लिन पशु चिकित्सा महाविद्यालय के विद्यार्थी भी थे इस संस्था के एक पूर्व सदस्य थे। उनका इस बारे में बड़े सख्त विचार थे की कुत्तो को सिर्फ काम की क्षमता के लिए पैदा करना चाहिए।
सन १८९९ में मेक्स वों स्टेफनइट्ज़ एक कुत्तो के पर्दर्शन को देखने गए जहा पर एक कुत्ता दिखाया गया जिसका की नाम हेक्टर लिंकसरहिन् था। हेक्टर ऐसे कई कुत्तो का वंशज था जिन्हें की चुनित पैदावार कर हासिल किया गया था और जिसे की वों स्टेफनइट्ज़ मानते थे की कामगारी कुत्तो को होना चाहिए। वोह इस बात से काफी खुश थे की यह जानवर कितना शक्तिशाली है और इसकी समजदारी और आज्ञाकारिपन ने भी उने इतना प्रभावित किया की उन्होंने इस तुंरत खरीद लिया। उसे खरीदने के बाद उन्होंने उसका नाम होरंड वों ग्राफ्राथ रखा और उन्होंने जर्मन शेफर्ड कुत्तो की संस्था की स्थापना की। होरंड को सबसे पहले जर्मन शेफर्ड कुत्ते के रूप में घोषणा की गयी और वोही संस्था के नसल प्रजनन पंजिका में सबसे पहले जोड़ा गया।
होरंड जल्द ही संस्था के प्रजनन कार्यकर्मो का जरूरी हिस्सा बन गया और उसका अन्य मादा कुत्तो के साथ प्रजनन कराया गया जोकि ख़ास लक्षण रखती थी। होरंड के कई पिल्लै पैदा हुए पर सब से कामयाब पिल्ला हेक्टर वों सक्वाबैन था। हेक्टर को होरंड के ही अन्य वंशजो के साथ प्रजनन कराने से उत्तपन हुआ बियोवोल्फ, जिसके की बाद में ८४ पिल्लै हुए, वह जिनकी माए भी हेक्टर की ही वंशज थी।
बिओवोल्फ़ के वंशजो का भी अन्य आपसी वंशजो के साथ प्रजनन कराया गया और इन्ही से आज के जर्मन शेफर्ड कुत्ते पैदा हुए और इन्ही से यह सभी वंश गुणो में समानता रखते हैं। यह माना जाता है कि संस्था अपने सभी उदेश्यों को इसलिए पूरा कर पाई क्यों की वों एक द्रर्ड, समझोता नहीं करने वाले इंसान थे और इसी लिए उनको जर्मन शेफर्ड कुत्तो का जनक माना जाता है।[१]
लोकप्रियता
जब युके केंनल क्लब ने सन १९१९ में इस नसल के कुत्तो को पंजीकृत करना चालू किया तब ५४ कुत्तो को पंजीकृत कराया गया और सन १९२६ तक यह आकडा ८००० तक पहुच गया। इस नसल की लोकप्रियता पूरी दुनिया में उस समय फैली जब पहले विश्व युद्घ की समाप्ति पे घर आने वाले सैनिको ने इन कुत्तो के बारे में सबको बताया। इसमें जानवरों के कलाकार रिन टिन टिन और बहादुर दिल ने भी योगदान दिया। स्विट्जरलैंड की रानी नामक कुत्ता संयुक्त राज्य में इस नसल का पंजीकृत होने वाला पहला कुत्ता बना, हालाकि उसके वंशजो के सही प्रजनन नहीं कराने के कारण इस नसल की वहाँ लोक्प्रोयता में सन १९२० में गिरावट आई. जर्मन शेफर्ड की लोकप्रियता एक बार फिर बड़ी जब सेजर प्फेफ्फेर वों बर्न कुत्ते ने सन १९३७ और १९३८ में अमेरिकन केंनल क्लब में जीत हासिल की।
बाद में दित्य विश्व युद्घ में जर्मनी के खिलाफ आक्रोश के कारण इस नसल की लोकप्रियता को काफी नुक्सान हुआ। जैसे जैसे समय बढता गया यह वापस बड़ी और सन १९९३ तक बदती ही गयी जब यह संयुक्त राज्य में तीसरी सबसे अधिक लोकप्रिय कुत्ते की नसल बन गयी, जो यह आज तक है।[२]
नाम
इस नसल का नाम वों स्टेफनइट्ज़ द्वारा देउतस्चेर स्चाफेरहुण्ड (जर्मन:Deutscher Schäferhund) रखा गया था। इसका मतलब हुआ जर्मन शेफर्ड कुत्ता. इस नसल का यह नाम इसलिए पड़ा क्योकि इसे असलियत में शेफर्ड यानि की चरवाहों की मदद करने व भेड़ बकरियों की रक्षा करने के लिए विकसित किया गया था। उस समय जर्मनी में सभी चरवाहों की मदद करने वाले कुत्तो को जर्मन शेफर्ड कुत्ता कहा जाता था, बाद में उन्हें अल्टदयूत्स्चे स्चाफेरहुण्ड (जर्मन:Altdeutsche Schäferhunde) या पुराने जर्मन शेफर्ड के नाम से बुलाये जाने लगा। शेफर्ड कुत्तो को सबसे पहले ब्रिटेन में सन १९०८ में लाया गया और यूके केंनल क्लब ने इस नसल को सन १९१९ में मान्यता दे दी।
इस नसल के जर्मन भाषा से सीधे अनुवाद हुए नाम को आधिकारिक रूप से काम में लिया जाने लगा व इसे ही नसल पंजीकरण में काम में लिया गया, हालाकि प्रथम विश्व युद्घ के बाद माना गया की इसके नाम में जर्मन शब्द इस नसल की लोकप्रियता को नुकसान पहूचा सकता है क्यों की उस समय जर्मनी के खिलाफ वेग था। इस नसल को आधिकारिक रूप से यूके केंनल क्लब ने अलसेशियन भेड़िया कुत्ता नाम दिया गया जिसे की बाद में कई अंतर्राष्ट्रीय केंनल क्लबों ने आपना लिया। बाद में भेड़िया कुत्ता इसके नाम से हटा दिया गया। पर इनका नाम अलसेशियन पाच दशको तक रहा जब तक की सन १९७७ में कुत्ते प्रेमियों द्वारा दबाव के करना ब्रिटिश केंनल क्लब को इस दुबारा जर्मन शेफर्ड के नाम से पंजीकृत करना पड़ा
आधुनिक नसल
आज की आधुनिक जर्मन शेफर्ड कुत्तो की नसल पे यह आरोप लगता है कि वो वों स्टेफनइट्ज़ की वास्तविक विचारधारा से अलग हो गयी है। उनका यह मानना था की इस नसल को सिर्फ कार्य करने के लिए पैदा करवाना चाहिए और वंशगत कोई भी गलती पाए जाने पर उसे तुरंत दूर करना चाहिए और पैदावार पर भी नियंतरण होना चाहिए। आलोचकों का मानना है कि बेपरवाह पैदावार के कारण नसल में कई त्रुटिया व वंशागत रोग उत्तपन हो गए हैं। वों स्टेफनइट्ज़ के समय में किसी भी त्रुटी को पाए जाने में उसमे में तुरंत सुधार कर दिए जाते थे जब की आजकल नसल की पैदावार पे कोई नियंतरण व एक केंद्रीय पंजीकरण इकाई न होने से ऐसी त्रुटियों पर, जैसे की रंग उड़ना, कुल्हे की हड्डी का खिसकाना, स्वभाव की कमजोरी और एक दो दांत कम होना आम बात बन गई है यहाँ तक की बचपन में मुड़े हुए कान होना जो की बड़े होने पर भी सीधे नहीं होते.देखा जाए तो जर्मन शेफर्ड एक क्रासब्रीड(संकर नस्ल) है,जो कई अलग अलग नस्ल के कुत्तों से विकसित की गई है। और संकर नस्ल में आगे चलकर कई तरह की त्रुटियां दिखाई देने लगती हैं, जिनको लगातार सुधारने की आवश्यकता होती है। इसलिए जर्मन शेफर्ड जैसी उपयोगी और बहतरीन गुणवत्ता वाली नस्ल को नस्ल सुधार करके इसके अस्तित्व को बनाए रखने की जरूरत है।
विवरण
जर्मन शेफर्ड कुत्तो की एक बड़ी नसल है जो की उचाई में २२ से २६ इंच और वजन में २२ से ४० किलोग्राम के बीच होती है। इनकी आदर्श उचाई, केंनल क्लब के मनको के अनुरूप २५ इच है। इनका माथा गुंबददार होता है और लंबी चौड़ी थूथन होती है। इनकी नाक काली व इनका जबड़ा मजबूत होता है जो की किसी केची की तरह काटता है। इनकी आँखें मध्यम आकार व भूरे रंग की होती है जिनमे की जिन्दादली, समझदारी और स्वाभिमानी झलक दिखती है। इनके कान लम्बे और सीधे खड़े होते हैं जो की आगे से खुले हुए दीखते हैं, खेल कूद के समय यह अक्सर पीछे भी हो जाते हैं। इनकी लम्बी गर्दन होती है जो की जब यह उत्तेजित होते हैं तो उप्पर की और तन जाती है व तेज दोड़ने पर या निराश होने पर निचे हो जाती है। इनकी पूछ बालदार और मुड़ी हुई होती है जो की ओल तक जाती है।
जर्मन शेफर्ड कई रंग के होते हैं, जिनमे से की सब से आम और प्रचिलित रंग टैन व काला या लाल व कला होता है। दोनों ही तरहों में बड़े काले धब्बे और काले निशान होते हैं। यह छोटे से पूरे शारीर तक को ढक सकते हैं। कुछ दुर्लभ रंग में भी यह नसल मिल सकती है, जैसे की पूरा काला, पूरा सफ़ेद, नीला, सेबल या जिगर के रंग की। पूरे काले रंग की नसल को ज्यादातर मनको पर सही समझा जाता है जबकि नीले और जिगर के रंग के कुत्तो को नसल की घम्भीर त्रुटी माना जाता है और पूरे सफ़ेद रंग के को कई मानक तुरंत ही ख़ारिज कर देते हैं। यह इसिलए क्यों की सफ़ेद रंग होने से यह ज्यादा आसानी सी दीखते हैं इसी कारण एक अपर्याप्त सुरक्षक कुत्ता बन जाते हैं, साथ ही दुर्गम इलाको में जैसे की जहा बर्फ पड़ती हो या जहा इन्हें भेड़ बकरियों के साथ रहना हो वहाँ इन्हें देखा मुश्किल हो जाता है।
जर्मन शेफर्ड के बाल दो परतो में होते हैं। उप्परी जो की साल भर झडती रहती है और भीतरी जो की काफी घनी और खाल के करीब होती है। इनके बाल लम्बे और मध्य आकार, दोनों तरह के हो सकते हैं। लम्बे बालो वाले कुत्तो की मान्यता अलग अलग कलबो के अनुसार है। जहा जर्मन और यूके केंनल क्लब में यह मान्य है वही अमेरिकन केंनल क्लब इसे खराब मानता है।[३]