बार्कहाउजेन कसौटी
बार्कहाउजेन कसौटी (Barkhausen criterion) एक शर्त या सम्बन्ध है जो बताती है कि कोई एलेक्ट्रानिक परिपथ किस स्थिति में दोलन कर सकेगा (और किस स्थिति में नहीं)। इसे जर्मनी के भौतिकशास्त्री एच जी बार्कहाउजेन () ने सन् १९२१ में प्रतिपादित किया था। एलेक्ट्रानिक आसिलेटरों के डिजाइन में इसका बहुतायत से प्रयोग होता है। इसके साथ ही ऋणात्मक पुनर्निवेशयुक्त परिपथों (negative feedback) की डिजाइन में भी इसका खूब इस्तेमाल होता है। (जैसे आप-एम्प)
बार्कहाउजेन की कसौटी उन परिपथों पर लागू होती है जिनमें फीडबैक लूप उपस्थित हो। इसके अनुसार,
- यदि किसी परिपथ में <math>A \,</math> किसी प्रवर्धक अवयव की लब्धि (gain) हो तथा <math>\beta(j\omega)\,</math> फीडबैक पथ का ट्रान्सफर फंक्शन हो तो और इस प्रकार <math>\beta A\,</math> लूप-लब्धि (loop gain) है तो यह परिपथ केवल उन आवृत्तियों पर ही दोलन कर सकती है जिनके लिये -
- (1) लूप-लब्धि का मान १ हो, अर्थात, <math>|\beta A| = 1\,;</math>
- (2) पूरे लूप में कलान्तर (phase shift) शून्य हो या 2π का पूर्ण गुणक हो: <math>\angle \beta A = 2 \pi n, n \in 0, 1, 2,\dots\,.</math>
ध्यातब्य है कि बार्कहाउजेन कसौटी दोलन के लिये केवल आवश्यक शर्त है किन्तु यह पर्याप्त शर्त नहीं है। अर्थात कुछ ऐसे परिपथ भी हो सकते हैं जो इस कसौटी पर खरे उतरते हैं किन्तु दोलन नहीं करते। इसके विपरीत नाइक्विस्ट की कसौटी किसी लूप के स्थायित्व/अस्थायित्व के लिये आवश्यक एवं पर्याप्त शर्त की व्याख्या करती है।