लोकोक्ति

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बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँहचढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है। इनकी उत्पत्ति एवं रचनाकार ज्ञात नहीं होते।

लोकोक्तियाँ आम जनमानस द्वारा स्थानीय बोलियों में हर दिन की परिस्थितियों एवं संदर्भों से उपजे वैसे पद एवं वाक्य होते हैं जो किसी खास समूह, उम्र वर्ग या क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। इसमें स्थान विशेष के भूगोल, संस्कृति, भाषाओं का मिश्रण इत्यादि की झलक मिलती है। लोकोक्ति वाक्यांश न होकर स्वतंत्र वाक्य होते हैं। जैसे- भागते भूत को लंगोटी भली ; आम के आम गुठलियों के दाम ; सौ सोनार की, एक लोहार की ; धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।

लोकोक्ति और मुहवरों में अन्तर है। मुहावरा पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है। लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है।

लोकोक्ति का वाक्य में ज्यों का त्यों उपयोग होता है। मुहावरे का उपयोग क्रिया के अनुसार बदल जाता है लेकिन लोकोक्ति का प्रयोग करते समय इसे बिना बदलाव के रखा जाता है। हाँ, कभी-कभी काल के अनुसार परिवर्तन सम्भव है।

लोकोक्ति की विशेषताएँ
  • समाज का सही मार्गदर्शन
  • धार्मिक एवं नैतिक उपदेश
  • हास्य और मनोरंजन में प्रयोग
  • सर्वव्यापी एवं सर्वग्राही ( लोकोक्तियों के अर्थ प्रत्येक समाज में एक से रहते हैं।)
  • प्राचीन परम्परा से चलती आने वालीं
  • जीवन के सभी पहलुओं को स्पर्श करती हैं
  • अनुभव पर आधारित एवं जीवनोपयोगी बातों के बारे में सुझाव देती हैं
  • सरल एवं समास शैली ( इसमें गहरी से गहरी बात को सूक्ष्म से सूक्ष्म शब्दों में कह दिया जाता है।)

लोकोक्ति की परिभाषा

डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, “विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों एवं लोक विश्वास आदि पर आधारित चुटीला, सरगर्भित, सजीव, संक्षिप्त लोक प्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं जिनका प्रयोग बात की पुष्टि या विरोध, सीख तथा भविष्य कथन आदि के लिए किया जाता है।”

धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार, “लोकोक्तियां ग्रामीण जनता की नीति शास्त्र है। यह मानवीय ज्ञान के घनीभूत रत्न हैं।”

डॉ. सत्येंद्र के अनुसार, “लोकोक्तियों में लय और तान या ताल न होकर संतुलित स्पंदनशीलता ही होती है।”

टेनिसन के अनुसार, “लोकोक्ति वे रत्न हैं जो लघु आकार होने पर भी अनन्त काल से चली आ रही हैं।”

हिन्दी की कुछ लोकोतियाँ

  • अन्धों में काना राजा = मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति
  • अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता = अकेला आदमी बिना दूसरों के सहयोग के कोई बड़ा काम नहीं कर सकता।
  • अधजल गगरी छलकत जाय = जिसके पास थोड़ा ज्ञान होता हैं, वह उसका प्रदर्शन या आडम्बर करता है।
  • अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत = समय निकल जाने के पश्चात् पछताना व्यर्थ होता है।
  • अन्धा क्या चाहे दो आँखें = मनचाही बात हो जाना।
  • अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना = मूर्खों को सदुपदेश देना या अच्छी बात बताना व्यर्थ है।
  • अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा = जहाँ मालिक मूर्ख हो वहाँ सद्गुणों का आदर नहीं होता।
  • अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग = कोई काम नियम-कायदे से न करना।
  • अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है = अपने घर या गली-मोहल्ले में बहादुरी दिखाना।
  • अपनी पगड़ी अपने हाथ = अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।
  • अस्सी की आमद, चौरासी खर्च = आमदनी से अधिक खर्च
  • ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर = काम करने पर उतारू होना
  • आम के आम गुठलियों के दाम = अधिक लाभ
  • आये थे हरि-भजन को, ओटन लगे कपास = आवश्यक कार्य को छोड़कर अनावश्यक कार्य में लग जाना।
  • ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया = ईश्वर की बातें विचित्र हैं।
  • उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे = अपराधी निरपराध को डाँटेे
  • उसी का जूता उसी का सिर = किसी को उसी की युक्ति या चाल से बेवकूफ बनाना।
  • ऊँची दुकान फीके पकवान = जिसका नाम अधिक हो, पर गुण कम हो।
  • ऊँट के मुँह में जीरा = जरूरत के अनुसार चीज न होना।
  • एक पन्थ दो काज = एक काम से दूसरा काम हो जाना
  • एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा = कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य बुरी संगत में पड़ कर और बिगड़ जाते है।
  • एक तो चोरी, दूसरे सीनाज़ोरी = गलत काम करके आँख दिखाना।
  • एक अनार सौ बीमार = जिस चीज के बहुत चाहने वाले हों।
  • एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती = एक वस्तु के दो समान अधिकारी नहीं हो सकते।
  • ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती = किसी को इतनी कम चीज मिलना कि उससे उसकी तृप्ति न हो।
  • कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली = उच्च और साधारण की तुलना कैसी
  • कंगाली में आटा गीला = परेशानी पर परेशानी आना
  • कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा = बेमेल वस्तुओं को एक जगह एकत्र करना।
  • कागा चले हंस की चाल = गुणहीन व्यक्ति का गुणवान व्यक्ति की भांति व्यवहार करना।
  • काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती = चालाकी से एक ही बार काम निकलता है।
  • कहे से धोबी गधे पर नहीं चढ़ता = मूर्ख पर समझाने का असर नहीं होता।
  • काम का न काज का, दुश्मन अनाज का = किसी मतलब का न होना।
  • खोदा पहाड़ निकली चुहिया = बहुत कठिन परिश्रम का थोड़ा लाभ
  • खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे = किसी बात पर लज्जित होकर क्रोध करना।
  • खाली दिमाग शैतान का घर = बेकार बैठने से तरह-तरह की खुराफातें सूझती हैं।
  • खग जाने खग ही की भाषा = साथी की बात साथी समझ लेता है।
  • गया वक्त फिर हाथ नहीं आता = जो समय बीत जाता है, वह वापस नहीं आता।
  • गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं = जो बहुत बढ़-बढ़ कर बातें करते हैं, वे काम कम करते हैं।
  • गीदड़ की शामत आए तो वह शहर की तरफ भागता है = जब विपत्ति आती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।
  • गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है = अपराधियों के साथ निर्दोष व्यक्ति भी दण्ड पाते हैं।
  • गरीब की जोरू, सबकी भाभी = कमजोर पर सब अधिकार जताते हैं।
  • घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध = जो मनुष्य बहुत निकटस्थ या परिचित होता है, उसकी योग्यता को न देखकर बाहर वाले की योग्यता देखना।
  • घर की मुर्गी दाल बराबर = घर की वस्तु या व्यक्ति को कोई महत्व न देना।
  • घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या = मेहनताना या पारिश्रमिक माँगने में संकोच नहीं करना चाहिए।
  • चिराग तले अँधेरा = अपनी बुराई नहीं दिखती
  • चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात = सुख के कुछ दिनों के बाद दुख का आना।
  • चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय = अत्यधिक कंजूसी करना।
  • चोर-चोर मौसेरे भाई = एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्दी मेल हो जाता है।
  • जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ = परिश्रम का फल अवश्य मिलता है।
  • जैसी करनी वैसी भरनी = कर्म के अनुसार फल मिलता है।
  • जिसकी लाठी उसकी भैंस = बलवान की ही जीत होती है।
  • जहाँ चाह, वहाँ राह = जब किसी काम को करने की व्यक्ति की इच्छा होती है, तो उसे उसका साधन भी मिल ही जाता है।
  • जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई = जिस मनुष्य पर कभी दुःख न पड़ा हो, वह दूसरों का दुःख क्या समझे।
  • जागेगा सो पावेगा, सोवेगा सो खोवेगा = जो हर क्षण सावधान रहता है, उसे ही लाभ होता है।
  • जान है तो जहान है = संसार में जान सबसे प्यारी वस्तु है।
  • जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा = जितना अधिक रुपया खर्च करेंगे, उतनी ही अच्छी वस्तु मिलेगी।
  • जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाओ = आदमी को अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार ही कोई काम करना चाहिए।
  • जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना = जिस व्यक्ति के आश्रय में रहना, उसी को हानि पहुँचाना।
  • जिसका काम उसी को छाजै, और करे तो डंडा बाजै = जिसको जिस काम का अभ्यास और अनुभव होता है, वह उसे सरलता से कर लेता है। गैर-अनुभवी आदमी उसे नहीं कर सकता।
  • जैसा देश, वैसा वेश = जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों-नीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए।
  • जल में रहकर मगरमच्छ से बैर = जिसके सहारे रहे, उसी से दुश्मनी करना।
  • डरा सो मरा = डरने वाला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता।
  • डूबते को तिनके का सहारा = विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।
  • ढाक के वही तीन पात = परिणाम कुछ नहीं निकलना, बात वहीं की वहीं रहना।
  • तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले = जब एक व्यक्ति कुछ खर्च कर रहा हो और दूसरा उसे देख कर ईर्ष्या करे।
  • थोथा चना, बाजे घना = वह व्यक्ति जो गुण और विद्या कम होने पर भी आडम्बर करे।
  • दीवारों के भी कान होते हैं = गुप्त परामर्श एकांत में धीरे बोलकर करना चाहिए।
  • दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है = एक बार धोखा खाने के बाद बहुत सोच-विचार कर काम करना।
  • दूध का दूध और पानी का पानी = सच्चा न्याय
  • दूर के ढोल सुहावने लगते हैं = दूर के व्यक्ति अथवा वस्तुएँ अच्छी मालूम पड़ती हैं।
  • देखे ऊँट किस करवट बैठता है? = देखें क्या फैसला होता है?
  • धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का = जिसके रहने का कोई पक्का ठिकाना न हो।
  • नाच न जाने आँगन टेढ़ा = काम न जानना और बहाना बनाना।
  • न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी = झगड़े को जड़ से नष्ट कर देना।
  • न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी = असंभव शर्ते रखना।
  • नौ नगद, न तेरह उधार = उधार की अपेक्षा नगद चीजें बेचना अच्छा होता है।
  • नंगा क्या पहनेगा, क्या निचोड़ेगा = एक दरिद्र किसी को क्या दे सकता है।
  • नया नौ दिन पुराना सौ दिन = नई चीजों की अपेक्षा पुरानी चीजों का अधिक महत्व होता है।
  • नाम बड़ा और दर्शन छोटे = नाम बहुत हो परन्तु गुण कम या बिल्कुल नहीं हों।
  • नेकी और पूछ-पूछ = भलाई करने में संकोच कैसा।
  • नौ दिन चले अढ़ाई कोस = बहुत सुस्ती से काम करना
  • नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली = पूरी जिंदगी पाप करके अंत में धर्मात्मा बनना।
  • पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती = सब मनुष्य एक जैसे नहीं होते।
  • पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं = बच्चे की प्रतिभा बचपन में ज्ञात हो जाती है।
  • पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं = परतंत्रता में कभी सुख नहीं।
  • पर उपदेश कुशल बहुतेरे = दूसरों को उपदेश देने में सब चतुर होते हैं।
  • बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद = वह व्यक्ति जो किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति की कद्र न जानता हो।
  • बहती गंगा में हाथ धोना = अवसर का लाभ उठाना।
  • मुँह में राम, बगल में छुरी = मुँह से मीठी-मीठी बातें करना और हृदय में शत्रुता रखना।
  • बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख = यदि भाग्य प्रतिकूल हो तो माँगने पर भीख भी नहीं मिलती।
  • बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम = बेमेल बात
  • बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी = अपराधी किसी-न-किसी दिन पकड़ा ही जाएगा।
  • बारह वर्षों में तो घूरे के दिन भी बदलते हैं = एक न एक दिन अच्छा समय आता ही है।
  • बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले = पिछली बातों को भुलाकर आगे की चिन्ता करनी चाहिए।
  • बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ ते होय = बुरे कर्मो से अच्छा फल नहीं मिलता।
  • भैंस के आगे बीन बजाना = मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।
  • भरी मुट्ठी सवा लाख की = भेद न खुलने पर इज्जत बनी रहती है।
  • भेड़ की खाल में भेड़िया = जो देखने में भोला-भाला हो, परन्तु वास्तव में खतरनाक हो।
  • मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी = जब दो व्यक्ति आपस में मिल जाएँ जो किसी अन्य के दखल देने की जरूरत नहीं होती।
  • मन के हारे हार है, मन के जीते जीत = भारी से भारी विपत्ति पड़ने पर भी साहस नहीं छोड़ना चाहिए।
  • मन चंगा तो कठौती में गंगा = यदि मन शुद्ध हो तो तीर्थाटन का फल घर में ही मिल सकता है।
  • मरता क्या न करता = विपत्ति में फंसा हुआ मनुष्य अनुचित काम करने को भी तैयार हो जाता है।
  • मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक = जहाँ तक किसी मनुष्य की पहुँच होती है, वह वहीं तक जाता है।
  • मेरे मन कछु और है, दाता के कछु और = किसी की आकांक्षाएँ सदैव पूरी नहीं होती।
  • माँ के पेट से कोई सीख कर नहीं आता = काम, सीखने से ही आता है।
  • माने तो देवता, नहीं तो पत्थर = विश्वास में सब कुछ होता है।
  • यथा राजा, तथा प्रजा = जैसा स्वामी वैसा ही सेवक।
  • रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी = बुरी हालत में पड़कर भी अभियान न त्यागना।
  • लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का = काम बन जाए तो अच्छा है, नहीं बने तो कोई बात नहीं।
  • लातों के भूत बातों से नहीं मानते = दुष्ट प्रकृति के लोग समझाने से नहीं मानते।
  • विनाशकाले विपरीत बुद्धि = विपत्ति पड़ने पर बुद्धि का काम न करना।
  • विपत्ति कभी अकेली नहीं आती = मनुष्य के ऊपर विपत्तियाँ एक साथ आती हैं।
  • शठे शाठ्यमाचरेत् = दुष्टों के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए।
  • शुभस्य शीघ्रम् = शुभ काम को जल्द कर लेना चाहिए।
  • शेर भूखा रहता है पर घास नहीं खाता = सज्जन लोग कष्ट पड़ने पर भी नीच कर्म नहीं करते।
  • साँच को आँच नहीं = जो मनुष्य सच्चा होता है, उसे डर नहीं होता।
  • सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता = सीधेपन से काम नहीं चलता।
  • संतोषी सदा सुखी = संतोष रखने वाला व्यक्ति सदा सुखी रहता है।
  • सयाना कौआ गलीज खाता है = चालाक लोग बुरी तरह से धोखा खाते हैं।
  • सावन के अंधे को हरा-ही-हरा सूझता है = अमीर या सुखी व्यक्ति समझता है कि सब लोग आनन्द में हैं।
  • सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते = यदि कोई व्यक्ति शुरू में गलती करे और बाद में सुधर जाए तो उसकी गलती क्षमा योग्य होती है।
  • हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और = कहना कुछ और करना कुछ और
  • हाथ कंगन को आरसी क्या = जो वस्तु सामने हो उसे सिद्ध करने के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
  • हथेली पर सरसों नहीं जमती = हर काम में समय लगता है, कहते ही काम नहीं हो जाता।


संदर्भ

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