वक्रोक्ति अलंकार
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वक्रोक्ति एक काव्यालंकार है जिसमें काकु या श्लेष से वाक्य का और अर्थ किया जाता है। जहाँ किसी उक्ति का अर्थ जान-बूझकर वक्ता के अभिप्राय से अलग लिया जाता है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण-
- (१)
- कौ तुम? हैं घनश्याम हम ।
- तो बरसों कित जाई॥
- (२)
- मैं सुकमारि नाथ बन जोगू।
- तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू ॥
भाषा में वक्रोक्ति निम्नलिखित छः स्तरों पर कार्य करती है-
- वर्णविन्यास
- पदपूर्वार्ध
- पदपरार्ध
- वाक्य
- प्रकरण
वक्रोक्ति अलंकार के दो भेद हैं-
- श्लेषमूला - चिपका अर्थ
- काकुमूला - ध्वनि-विकार/आवाज में परिवर्तन
- श्लेषमूला -
- एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है ?
- कहा अपर कैसा ? वह उड़ गया सपर है ॥
यहाँ जहाँगीर ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिये "अपर" (दूसरा) उपयोग किया है जबकि उत्तर में नूरजहाँ ने 'अपर' का अर्थ 'अ-पर' अर्थात 'बिना पंख वाला' किया है।
- काकुमूला-
- आप जाइए तो। -(आप जाइए)
- आप जाइए तो?-(आप नहीं जाइए)
इसी तरह,
- जाओ मत, बैठो।
- जाओ, मत बैठो ।