दक्खन की रानी
दक्खन की रानी (अंग्रेज़ी: Deccan Queen (डॅकन क्वीन) साँचा:langWithNameNoItals), मुम्बई और पुणे के बीच चलने वाली एक प्रमुख सवारी गाड़ी है। इस रेलगाड़ी को पूना (पुणे), जिसे 'डेक्कन क्वीन' या 'दक्खन की रानी' कहकर पुकारा जाता है के नाम पर नामित किया गया था। स्थानीय लोग आज भी इसे प्यार से 'दक्खन की रानी' या स्थानीय भाषा मराठी में 'दक्खन ची राणी' ही कहते हैं। यह रेलगाड़ी कई लोगों के लिए इन दो शहरों के बीच प्रतिदिन प्रवास करने का एक प्रमुख साधन है।
इतिहास
1 जून 1930 का दिन भारतीय रेल के इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है, जब तत्कालीन ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे (GIPR, अब मध्य रेलवे) ने, भारत की पहली डीलक्स रेलगाड़ी डेक्कन क्वीन को झंडी दिखाकर भारत की वाणिज्यिक राजधानी बंबई (अब मुंबई) से महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पूना (अब पुणे) के लिए रवाना किया था। इस रेलगाड़ी का संचालन इन दोनों शहरों के बीच होना निर्धारित हुआ था।
डेक्कन क्वीन के खाते में कई 'प्रथम' या 'पहली बार' दर्ज है:-
- यह भारत की पहली सुपरफास्ट गाड़ी थी,
- यह पहली लंबी दूरी की यात्री रेलगाड़ी थी जिसे विद्युतशक्ति चालित इंजन खींचता था,
- यह भारत की पहली बरोठेदार गाड़ियों में से एक थी,
- डेक्कन क्वीन में सिर्फ महिलाओं के लिए पहली बार विशेष डिब्बा जोड़ा गया था,
- और यह उन पहली रेलगाड़ियों में से एक थी जिनमें भोजन सुविधा (भोजन यान) उपलब्ध करायी गयी थी।
रेलगाड़ी की दिखावट
डेक्कन क्वीन की शुरुआत दो रेलगाड़ियों के सेट (समुच्चय) से हुयी थी: एक का रंग रुपहला था जबकि उसकी सजावटी धारियों को गहरे लाल रंग से रंगा गया था दूसरी का रंग राजसी नीला और सजावट सुनहरी थी। इन यानों के निचले ढांचों को मेट्रोपोलिटन कैमेल सी एंड डब्ल्यू वर्क्स, इंग्लैंड द्वारा बनाया गया था, जबकि यान निकायों और डिब्बों को जोड़ने का काम माटुंगा कैरिज एण्ड वैगन वर्क्स, बंबई में किया गया था। गाड़ी की अभिजात्य छवि और इसमें सफर करने वाले संभावित यात्रियों के स्तर को देखते हुये इसमें उपलब्ध सुविधायों के स्तर को एक स्पष्ट औपनिवेशिक रंग दिया गया था। प्रत्येक रेलगाड़ी में प्रथम श्रेणी में 61 और द्वितीय श्रेणी में 156 यात्री, यात्रा कर सकते थे। गाड़ी में 19 परिचारक भी नियुक्त किये गये थे। उस समय तृतीय श्रेणी के यात्रियों को डेक्कन क्वीन पर यात्रा की अनुमति नहीं थी।
अन्य रेलगाड़ियों से तुलना
डेक्कन क्वीन ने इस मार्ग पर पहले से चल रही, प्रतिष्ठित पूना मेल को लोकप्रियता और प्रसिद्धि में बहुत पीछे छोड़ दिया। विलासितापूर्ण सफर प्रदान करने के साथ ही इसने यात्रा समय को 6 घंटे से घटाकर सिर्फ 2 घंटे 45 मिनट कर दिया। समय में हुई इस कटौती का कारण विद्युतचालित इंजन था। जहाँ अन्य रेलगाड़ियां भाप के इंजन द्वारा खींची जाती थीं वहीं डेक्कन क्वीन में इसकी शुरुआत से ही विद्युतचालित इंजन लगाया गया था। Mandeep yadav Rj21
भारतीयों को यात्रा अनुमति
डेक्कन क्वीन को मूल रूप से सिर्फ औपनिवेशिक अधिपतियों (अंग्रेजों) के लिए ही शुरु किया गया था। इस कारण शुरु शुरु में इसे 'गोरा साहिब' के लिए एक सप्ताहांत विशेष रेलगाड़ी के रूप में चलाया जाता था। एक दशक से अधिक समय तक यह इसी प्रकार संचालित होती रही, लेकिन यात्रियों की घटती संख्या के कारण यह धीरे धीरे घाटे का सौदा साबित होने लगी। इसके संचालन को लाभप्रद बनाने के उद्देश्य से 1943 में भारतीयों को भी इसके द्वारा यात्रा करने की अनुमति प्रदान की गई। इस कदम से यात्रियों की संख्या इतनी बढ़ गयी की इसे सप्ताहांत विशेष से बदल कर एक दैनिक रेलगाड़ी बना दिया गया। डेक्कन क्वीन को अक्सर 'पति विशेष' रेलगाड़ी भी बुलाया जाता था, क्योंकि मुंबई में काम करने वाले पुरुष स्प्ताहांत में अपने परिवार से मिलने पूना जाया करते थे। बहरहाल, कामकाजी महिलाओं की बढ़ती हुई संख्या भी डेक्कन क्वीन के यात्री प्रोफ़ाइल का हिस्सा बन गयी थी।
समय
डेक्कन क्वीन, पुणे रेलवे स्टेशन से सुबह 07:15 बजे प्रस्थान करती है और सवा तीन घंटे बाद सुबह 10:30 को मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर इसका आगमन होता है। छ्त्रपति शिवाजी टर्मिनस से फिर यह रेलगाड़ी शाम 17:10 बजे प्रस्थान करती है और रात 20:25 को पुणे रेलवे स्टेशन पर इसका आगमन होता है।
घटनाएँ
- 30 नवंबर 2006: 6000 लोगों की उग्र भीड़ ने यात्रियों को उतार कर उल्हासनगर के पास रेलगाड़ी के 7 डिब्बे जला दिए।[१]