बायोम

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>Amherst99 द्वारा परिवर्तित ०७:५६, १० फ़रवरी २०२२ का अवतरण
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
दुनिया के मुख्य प्रकार के जैवक्षेत्र

जैवक्षेत्र या जीवोम (साँचा:lang-en: बायोम) धरती या समुद्र के किसी ऐसे बड़े क्षेत्र को बोलते हैं जिसके सभी भागों में मौसम, भूगोल और निवासी जीवों (विशेषकर पौधों और प्राणी) की समानता हो।[१] किसी बायोम में एक ही तरह का परितंत्र (ईकोसिस्टम) होता है, जिसके पौधे एक ही प्रकार की परिस्थितियों में पनपने के लिए एक जैसे तरीक़े अपनाते हैं।[२]जैवक्षेत्र के अन्तर्गत प्रायः स्थलीय भाग के समग्र वनस्पति और जन्तु समुदायों को ही सम्मिलित करते हैं क्योंकि सागरीय जैवक्षेत्र का निर्धारण कठिन होता है। हालांकि इस दिशा में शोधकर्ताओं द्वारा प्रयास किये गये हैं। यद्यपि जैवक्षेत्र में वनस्पति तथा जन्तु दोनों को सम्मिलित करते हैं, तथापि हरे पौधों का ही प्रभुत्व होता है क्योंकि इनका कुल जीवभार जन्तुओं की तुलना में बहुत अधिक होता है।[३]

बायोम के प्रकार

रेगिस्तानी बायोम

किसी रेगिस्तानी बायोम में पौधों में अक्सर मोटे पत्ते होते हैं (ताकि उनका जल अन्दर ही बंद रहे) और उनके ऊपर कांटे होते हैं (ताकि जानवर उन्हें आसानी से खा न पाएँ)। उनकी जड़ें भी रेत में उगने और पानी बटोरने के लिए विस्तृत होती हैं। बहुत से रेगिस्तानी पौधे धरती में ऐसे रसायन छोड़ते हैं जिनसे नए पौधे उनके समीप जड़ नहीं पकड़ पाते। इस से उस पूरे क्षेत्र में पड़ने वाला हल्का पानी या पिघलती बर्फ़ उन्ही को मिलती है और यह एक वजह है कि रेगिस्तान में झाड़-पौधे एक-दूसरे से दूर-दूर उगते दिखाई देते हैं। यह सभी लक्षण रेगिस्तानी पौधे में एक-समान होने से जीव-वैज्ञानिक इस परितंत्र को एक 'बायोम' का ख़िताब देते हैं।[४]

उष्णकटिबंधीय सदाबहार वर्षावन बायोम

सदाबहार वर्षावन बायोम जीवन की उत्पत्ति तथा विकास के लिए अनुकूलतम दशायें प्रदान करता है, क्योंकि इसमें वर्ष भर उच्च वर्षा तथा तापमान बना रहता है। इसी कारण इसे अनुकूलतम बायोम कहते हैं, जिसका जीवभार सर्वाधिक होता है। इस बायोम का विस्तार सामान्यतः १०° उत्तर तथा १०° दक्षिण अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। इसका सर्वाधिक विकास तथा विस्तार अमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, तथा इण्डोनेशियाई क्षेत्रों ख़ासकर बोर्नियो तथा सुमात्रा आदि में हुआ है।[५]

सवाना बायोम

(घास का मैदान) सवाना बायोम से आशय उस वनस्पति समुदाय से है जिसमें धरातल पर आंशिक रूप से शु्ष्कानुकूलित शाकीय पौधों (partially xeromorphic herbaceous plants) का (मुख्यतः घासें) प्राधान्य होता है, साथ ही विरल से लेकर सघन वृक्षों का ऊपरी आवरण होता तथा मध्य स्तर में झाड़ियाँ होती हैं। इस बायोम का विस्तार भूमध्यरेखा के दोनों ओर १०° से २०° अक्षांशों के मध्य (कोलम्बिया तथा वेनेजुएला के लानोज, दक्षिण मध्य ब्राजील, गयाना, परागुवे, अफ्रीका में विषुवतरेखीय जलवायु प्रदेश के उत्तर तथा दक्षिण मुख्य रूप से मध्य तथा पूर्वी अफ्रीका- सर्वाधिक विस्तार सूडान में, मध्य अमेरिका के पहाड़ी क्षेत्रों, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और भारत में) पाया जाता है। सवाना की उत्पति तथा विकास के संबंध में अधिकांश मतों के अनुसार इसका प्रादुर्भाव प्राकृतिक पर्यावरण में मानव द्वारा अत्यधिक हस्तक्षेप के फलस्वरूप हुआ है। भारत में पर्णपाती वनों के चतुर्दिक तथा उनके बीच में विस्तृत सवाना क्षेत्र का विकास हुआ है, परन्तु भारतीय सवाना में घासों की अपेक्षा झाड़ियों का प्राधान्य अधिक है।[६]

सागरीय बायोम

सागरीय बायोम अन्य बायोम से इस दृष्टि से विशिष्ट है कि इसकी परिस्थितियाँ (जो प्रायः स्थलीय बायोम में नहीं होती हैं) पादप और जन्तु दोनों समुदायों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। महासागरीय जल का तापमान प्रायः 0° से ३0° सेण्टीग्रेट के बीच रहता है, जिसमें घुले लवण तत्वों की अधिकता होती है। इस बायोम में जीवन और आहार श्रृंखला का चक्र सूर्य का प्रकाश, जल, कार्बन डाई ऑक्साइड, ऑक्सीजन की सुलभता पर आधारित होता है। ये समस्त कारक मुख्य रूप से सागर की ऊपरी सतह में ही आदर्श अवस्था में सुलभ होते हैं, क्योंकि प्रकाश नीचे जाने पर कम होता जाता है तथा २०० मीटर से अधिक गहरायी तक जाने पर पूर्णतया समाप्त हो जाता है। ऊपरी प्रकाशित मण्डल सतह में ही प्राथमिक उत्पादक पौधे (हरे पौधे, पादप प्लवक (फाइटोप्लैंकटन) प्रकाश संश्लेषण द्वारा आहार उत्पन्न करते हैं) तथा प्राथमिक उपभोक्ता -जन्तुप्लवक (जूप्लैंकटन)- भी इसी मण्डल में रहते हैं तथा पादप प्लवक का सेवन करते हैं।[७]

टुण्ड्रा बायोम

टुण्ड्रा वे मैदान हैं, जो हिम तथा बर्फ़ से ढँके रहते हैं तथा जहाँ मिट्टी वर्ष भर हिमशीतित रहती है। अत्यधिक कम तापमान और प्रकाश, इस बायोम में जीवन को सीमित करने वाले कारक हैं। वनस्पतियाँ इतनी बिखरी हुईं होती हैं कि इसे आर्कटिक मरूस्थल भी कहते हैं। यह बायोम वास्तव में वृक्षविहीन है। इसमें मुख्यतः लाइकेन, काई, हीथ, घास तथा बौने विलो-वृक्ष शामिल हैं। हिमशीतित मृदा का मौसमी पिघलाव भूमि की कुछ सेंटीमीटर गहराई तक कारगर रहता है, जिससे यहाँ केवल उथली जड़ों वाले पौधे ही उग सकते हैं। इस क्षेत्र में कैरीबू, आर्कटिक खरगोश, आर्कटिक लोमड़ी, रेंडियर, हिमउल्लू तथा प्रवासी पक्षी सामान्य रूप से पाए जाते हैं।[८]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:reflist

  1. Life: The Science of Biology, David Sadava, H. Craig Heller, David M. Hillis, May Berenbaum, Macmillan, 2009, ISBN 978-1-4292-1962-4, ... A biome is an environment that is defined by its climatic and geographic attributes and characterized by ecologically similar organisms, particularly its dominant plants ...
  2. Toward a Unified Ecology, Timothy F. H. Allen, Thomas W. Hoekstra, Columbia University Press, 1992, ISBN 978-0-231-06919-9, ... What makes a biotic collection a biome is the manner in which all members are pressed against certain constraints that dictate plant architecture of the dominant. The same vegetation can be seen as either an exemplar of a community or a biome ...
  3. भौतिक भूगोल का स्वरूप, सविन्द्र सिंह, प्रयाग पुस्तक भवन, prayagraj, २०१२, पृष्ठ ६६४, ISBN: ८१-८६५३९-७४-३
  4. Environmental Science, Daniel D. Chiras, pp. 83, Jones & Bartlett Publishers, 2012, ISBN 978-1-4496-1486-7, ... The Desert Biome ... often widely spaced on the desert floor, which reduces competition for water and ensures an adequate supply. How do plants space themselves? Some plants release growth-inhibiting chemicals into the soil that deter competitors from taking root in a region around them ...
  5. भौतिक भूगोल का स्वरूप, सविन्द्र सिंह, प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद, २०१२, पृष्ठ ६६६-६७, ISBN: ८१-८६५३९-७४-३
  6. भौतिक भूगोल का स्वरूप, सविन्द्र सिंह, प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद, २०१२, पृष्ठ ६७१, ISBN: ८१-८६५३९-७४-३
  7. भौतिक भूगोल का स्वरूप, सविन्द्र सिंह, प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद, २०१२, पृष्ठ ६८१, ISBN: ८१-८६५३९-७४-३
  8. भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत, (कक्षा ११ के लिए पाठ्यपुस्तक- सत्र १), राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, २00२, पृष्ठ- १३७, ISBN:81-7450-075-8