केसर

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amrutam अमृतमपत्रिका, ग्वालियर द्वारा 25 प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रन्थों से खोजा गया केशर का यह ज्ञानवर्धक लेख...

केशर-कुमकुम के बारे में 40 बातें कम ही लोग जानते हैं। इस ब्लॉग को पढ़कर शुद्ध केशर की पहचान करना सीख जाओगे..


आयुर्वेद सहिंता के अनुसार शुद्ध केशर के 2 या 3 रेशे गुनगुने दूध में मिलाकर सुबह खाली पेट 3 महीने पीने से त्वचा में निखार आने लगता है।


केशर को amrutam एलोवेरा जेल को एक चम्मच जेल में 2 रेशे और हल्दी चुटकी भर मिलाकर नाभि ओर मुखः पर लगायें।

केशर अर्थात कुमकुम से बनने वाला कुंकुमादि तेल/सीरम बहुत ही कीमती है। इसीलिए ये अमीर लोगों की पसंद है। amrutam कुंकुमादि तेल 12 मिलीलीटर का मूल्य 1599/- रुपये है। लेकिन इस्तेमाल करने के बाद महंगा नहीं लगेगा...

वीडियो देखकर खरीदने को आकर्षित हो जाएंगे। जाने कुंकुमादि के चमत्कारी फायदे-

द्रव्यगुण विज्ञान, भावप्रकाश तथा आयुर्वेदिक निघण्टु आदि पुराने ग्रन्थों में केशर के बारे में बहुत विस्तार से लिखा है। संस्कृत में केशर को कुमकुम कहते हैं। !!कुङ्कुमम्-कुक्यते, आदीयते, 'कुक् आदाने'!! निघण्टु श्लोकनुसार। अर्थात- केशर का इस्तेमाल शिरःशूल आदि में लाखों वर्षों से प्रयोग किया जा रहा है। केशर तेरे नाम करोड़… हिंदी मराठी, गुजराती में केशर। बंगाली में -जाफरान । कन्नड़ में कुङ्कुम । तेलगु-कुङ्कुमपुव। तमिल में-कुङ्कुमपु। फारसी-करकीमास! अंग्रेजी- Saffron (सफ्रॉन)। अरबी में जाफरान, लेटिन Crocus sativus Linn. (क्रोकस् सेटाइवस्) । Fam. Iridaceae (इरिडॅसी)। कहते हैं।

केशर का नैसर्गिक उत्पत्ति स्थान कश्मीर, दक्षिण यूरोप है। यह स्पेन से बम्बई में बहुत आता है और भारतवर्ष के बाजारों में बिकता है। ईरान, स्पेन, फ्रान्स, इटली, ग्रीस, तुर्की, चीन और फारस आदि का केशर शुद्ध होता है।

अनेक ठंडे देशों में इसकी खेती की जाती है। हमारे देश के काश्मीर में पम्पूर वर्क केवल १५०० मी के दायरे में न तथा जम्मू के किश्तवाड़ में इसकी खेती की जाती है। यहाँ का उत्पन्न हुआ केसर भावप्रकाशकार की दृष्टि से सर्वोत्तम समझा गया है। प्याज की तरह होती है केशर की जड़- केशर का बहुवर्षायु क्षुप ४५ से.मी. तक ऊँचा होता है। जड़ के नीचे प्याज के समान गाँठदार कन्द (Corm) होता है। इसमें कांड नहीं होता।

केशर के पत्ते-घास के समान लम्बे, पतले, पनालीदार और जड़ ही से निकले हुए मूलपत्र (Radical leaf) रहते हैं। इनके किनारे पीछे की तरफ मुड़े हुए हैं। आश्विन कार्तिक यानी सितम्बर-अक्टूबर में इस पर फूल आते हैं। फूल-एकाकी या गुच्छों में, नीललोहित वर्ण के, पत्तों के साथ ही शरदऋतु में आते हैं। केशर में नीचे के पत्रकोश (Spathe), पुष्पध्वज (Scape) को घेरे रहते हैं तथा दो हिस्सों में विभक्त रहते हैं!

केशर परिपुष्प (Perianth) निवापसम (Funnel-shaped), नाल (Tube) पतला, दल ६ खण्डों में विभक्त दो श्रेणियों में एवं नाल का कण्ठ श्मश्रुल (बालों से युक्त) रहता है।

केशर कण्ठ पर ३ पुंकेशर (Stamen) रहते हैं एवं परागाशय (Anther) पीतवर्ण का रहता है। केशर कुक्षिवृन्त (Style) परिपुष्प के बाहर निकले हुए (Exserted), नारंगरक्त रंग के, मुद्राकार, अखण्ड या खण्डित रहते हैं। फल-सामान्य स्फोटी फल (Capsule) आयताकार एवं बीज गोल होते हैं। केशर के फूलों में स्त्री केशर के सूखे हुए अग्रभाग जिन्हें कुक्षि (Stigma) कहा जाता है उन्हें ही केशर कहते हैं। कुक्षि (Stigma) ३, कुक्षिवृन्त के ऊपर लगी हुई या अलग, करीब २.५ से.मी. लम्बी गहरे लाल से लेकर हल्के रक्ताभ भूरे रंग की एवं सामान्य दन्तुर या लहरदार होती है।

कुक्षिवृन्त (Styles) करीब १ से.मी. लम्बे, करीब-करीब रम्भाकार, ठोस, पीताभ भूरे से लेकर पीताभ नारंगी रंग के रहते हैं। इसमें विशिष्ट प्रकार की तीव्र सुगन्ध रहती है तथा इसका स्वाद सुगन्धित तथा कड़वापन लिये हुए होता है। केशर के पौधे को बीज या उसके कन्द द्वारा लगाया जा सकता है। साधारणत: १ एकड़ भूमि से करीब ५०-५५ पौंड ताजा केशर प्राप्त होता है जो सूखने पर १०-११ पौंड रह जाता है। केशर की खेती तथा माल के तैयार करने में बहुत सावधानी की आवश्यकता रहती है। सूर्योदय के पहले जब फूल लगभग खिलने को होते हैं तब उनको तोड़ लेते हैं। उसमें से केशर को तोड़कर चलनी में डालकर मन्द आंच पर सुखाते हैं। केशर को हमेशा प्रकाशहीन बन्द पात्र में रखना चाहिये । केशर के रासायनिक संगठन—केशर में एक स्नेहीय तैल ८-१३%, करीब १% उड़नशील तैल, एक रंगहीन कड़वा पिक्रोक्रोसिन (Picrocrocin) नामक ग्लाइकोसाइड् एवं क्रोसेटिन (Crocetin) नामक रंजक द्रव्य का क्रोसिन (Crocin) ग्लाइकोसाइड् ये पदार्थ पाये जाते हैं। क्रोसेटिन नामक रवेदार रंजक द्रव्य ३ प्रकार का होता है। अॅल्फा क्रोसेटिन (a-crocetin, C HO) ०.७%, बीटा क्रोसेटिन (B-crocetin, C, H, 0.) ०.७%, एवं गामा क्रोसेटिन (V-crocetin, C_H,, 0.) ०.३% रहता है। क्रोसिन (Crocin) यह लाल रंग का चूर्ण होता है जो जल तथा मद्यसार में आसानी से घुल जाता है। संकेन्द्रित गन्धक के तेजाब में इसका गहरे नीले रंग का घोल बनता है जो रखने पर नील लोहित, रक्त तथा अन्त में भूरे रंग का हो जाता है। शोरे के तेजाब से यह हरे रंग का हो जाता है।

केशर के गुण और प्रयोग-केशर उष्ण, सुगन्धित, दीपन, पाचन, उद्वेष्टन-निरोधि, मनःप्रसादकर, रुचिकर, वर्ण्य, बल्य, कामोत्तेजक, विषघ्न, आर्तवजनक, मूत्रल एवं अल्प वेदनाहर है।

आमाशयोत्तेजक एवं उद्वेष्टननिरोधि गुणों के लिये यह बहुत प्रसिद्ध है तथा यह श्रेष्ठ उत्तेजक एवं वृष्य औषध मानी जाती है। यह वातनाड़ियों के लिये शामक है। सुगन्धित रञ्जक द्रव्य के रूप में इसका बहुत व्यवहार किया जाता है। इसके उड़नशील तैल में अन्य उड़नशील तैलों की तरह ही गुण होते हैं। भावप्रकाशनिघण्टुः से साभार… केशर का उपयोग अतिसार, शूल, मूत्रकृच्छ्र, अनार्तव, पीडितार्तव, कास, श्वास, कण्ठरोग, यकृतविकार, आमवात, नाड़ीशूल एवं शिरोरोगों में किया जाता है।

केशर पीडितार्तव यानि दर्द के साथ होने वाली माहवारी में इसको पूर्ण मात्रा में देने से शूल कम होता है तथा आर्तव स्राव (सोमरोग या पीसीओडी) ठीक होने लगता है। केशर को गर्भाशय के पीड़ा युक्त विकारों में इसकी गोली योनि में धारण कराई जाती है। केशर को स्तनों पर इसके लेप से दूध बढ़ता है।

केशर मूत्राघात में 25 मिलीग्राम केशर मधुयुक्त जल में रात में भिगोकर सुबह उसे पिलाने से लाभ होता है। (सु. उ. अ. ५८-३०) बच्चों की सरदी में गरम दूध में केशर खिलाते हैं तथा ललाट एवं छाती पर लगाते हैं।

केसर तथा शर्करा को घृत में भूनकर उसके नस्य से सूर्यावर्त एवं अर्धावभेदक आदि में लाभ होता है। शिरःशूल में इसे मस्तक पर लगाते हैं। चेहरे पर प्रकट मसूरिका (कील-मुहांसे, मस्से) तथा रोमान्तिका झाइयां, झुर्रियां, काले निशानआदि में दाने बाहर निकालने के लिये इसे देते हैं।

केशर को बच्चों के अतिसार, आध्मान तथा उदरशूल में इसे खिलाते हैं तथा पेट पर लगाते हैं। प्रमाप तथा परीक्षा-केशर बहुमूल्य होने के कारण इसमें अनेक चीजों की मिलावट रहती है, इसलिये इसको अच्छी तरह परीक्षा कर खरीदना चाहिये!

शुद्ध केशर की पहचान ऐसे करें- भावप्रकाश में केशर परखने की कुछ परीक्षाएँ यहाँ दी जा रही हैं। स्पिरिट में केशर डालने पर यद्यपि स्पिरिट रंगीन हो जाता है तथापि केशर के तन्तु अपने प्राकृतिक रंग में ही रहते हैं।

केशर गन्धक के तेजाब (Sulphuric acid) में डालने से गहरा नीला रंग उत्पन्न होता है। शुद्ध केशर जल में घुलनशील पदार्थ ५८% से कम न हों। केशर मद्यसार (९०%) में घुलनशील पदार्थ ६०% से कम न हों। राख ७.५०% से अधिक न हो। केशर १००° उष्णता पर सुखाने से १४% से अधिक वजन कम न हो कुक्षिवृन्त (Styles) १०% से अधिक न हों। इतर ऑर्गेनिक् द्रव्य २% से अधिक न हों!

केशर की रंग की तीव्रता-इसको ०.०२ ग्राम की मात्रा में १०० मि.ली. जल में मिलाने पर पीत वर्ण का घोल बनता है जिसके रंग की तीव्रता ०.१% पोटैशियम् डाइक्रोमेट (Potassium dichromate) के घोल के समान या उससे कम नहीं होनी चाहिये । व्यामिश्रण-इसमें केशर पुष्प के ही कुक्षिवृन्त, पुंकेशर, आभ्यन्तर कोश एवं गेंदा (कॅलेण्डुला ऑफिसिनेलिस्) के मेथिल् आरेञ्ज के द्वारा रंगे हुये पुष्प, कुसुम पुष्प के केशर तथा एकबीजपत्रीय पुष्प आदि मिलाये रहते हैं। बाजार में कभी-कभी सत्त्व निकाला हुआ केसर रंग करके बेचा जाता है। नकली केसर का वजन बढ़ाने के लिये जल, तैल, शर्करा, ग्लूकोज, ग्लिसरीन तथा पोटैशियम् या अमोनियम नाइट्रेट के घोल आदि का उपयोग करते हैं। Amrutam कुंकुमादि तेल/सीरम इसीलिए केशर से निर्मित होता है और केशर युक्त होने से ये बहुत महंगा बनता है। 12 ML का मूल्य 1599/- रुपये है। केशर फायदे जानने के लिए ये वीडियो देखें-


कुंकुमादि तेल चेहरे को चमकाकर सुन्दरता प्रदान करता है। देखें कैसे?. फायदे सुनकर हैरान हो जाएंगे।

5000 साल पुराने भोजपत्रों में भी उल्लेख है-केशर का। आप भी समझें..

केशर नाम गुणाः अथ पञ्चभृङ्गगुणा:

देवदाली शमी भृङ्गी निर्गुण्डी शमकं तथा।

रोगाते स्नानपानाहे पञ्चमृमिति स्मृतम्॥१॥

पञ्चभृङ्ग के लक्षण और गुण-देवदाली (वन्दाल), शमी, भृङ्गी ( भांग ) निर्गुण्डी (सेन्हुआर) और शमक यानि तालिसपत्र के मिश्रण को 'पञ्चभृङ्ग' कहते हैं ।

पन्चभृङ्ग शब्द रोगियों के स्नान और पान के लिये कहा गया है ॥ १ ॥

अथाऽम्लपञ्चकम्

बीजपूरं च जम्बीरं नारि साम्लवेतसम् ।

फल पञ्चामलकं ख्यातं तित्तिडीसहितं परम् । पञ्चामलकं समुद्दिष्टं तथोकं चाम्लपञ्चकम् ॥१॥

अर्थात-अम्लपञ्चक के लक्षण और गुण-बिजौरा नीबू , जम्बीरी नीबू, नारङ्गी, अम्लवेत और इमिली के फलों के मिश्रण को 'अम्लपञ्चक' कहते हैं अथवा 'पञ्चाम्ल' कहते हैं ॥१॥

अथ पञ्चाङ्गानि

स्वकपत्रफलमूलानि पुष्पाण्येकस्य शाखिनः । पञ्चाङ्गमिति बोब्धं प्राज्ञैरेकत्र मिश्रितम॥१॥

पञ्चाङ्ग के लक्षण-औषधियों के त्वचा ( छाल ), पत्ता, फल, मूल और पुष्प इन पांचो [एक वृक्ष की पांचो वस्तु ] के मिश्रण को बुद्धिमान् ‘पञ्चाङ्ग' कहते हैं ॥ १ ॥

अथ संतर्पणगुणाः!

दावादाडिमखरैमदिताम्बु सशकरम् ।

लाजचूर्ण सुमध्वायं सन्तर्पणमुदाहृतम् ॥2॥

तर्पणं शीतलं पाने नेत्ररोगबिनाशनम् ।

बल्यं रसायनं हृधं वीर्यवृद्धिकरं परम् ॥२॥

सन्तर्पण के लक्षण और गुण-द्राक्षा, अनार, खजूर इनके निकाले हुए रस में चीनी, लाजा ( धान की खील) चूर्ण और मधु को मिश्रित किए योग को 'सन्तर्पण' कहते हैं। पीने से सन्तर्पणतृप्तिकर्ता और शीतल, नेत्र रोग नाशक, बलकारक, रसायन, हृद्य और वीर्यवर्धक है ॥ १-२॥ -

अथ यक्षकर्दमः।

कुडमागुरुकर्पूकरस्तूरीचन्दनानि च।

महासुगन्ध इत्युक्तो नाम तो यक्षकदमः॥१॥

यक्षकर्दम एवं स्याच्छीतस्त्वग्दोषहृच सः।

सुगन्धिः कान्तिदश्चैव शिरोतिविषनाशनः ॥२॥

यक्षकर्दम ( महासुगन्ध ) के लक्षण और गुण-केसर, अगर, कपूर, कस्तूरी, और चन्दन के मिश्रित योग को 'महा सुगन्ध' वा 'यक्षकर्दम' कहते हैं इस प्रकार का ‘यक्षकर्दम' शीतल, वग्दोष नाशक, सुगन्धि, कान्तिकारक, सिर की पीडा और विष का नाशक होता है।

॥ १-२ ।। अथ केशरनामगुणाः। -

ज्ञेयं कुङ्कुममग्निशेखरममुक्काश्मीरजं पीतकं,

काश्मीरं रुचिर वरंच पिशुनं रक्तं शठं शोणितम् । बाह्रीकंधुसणं वरेण्यमसृर्ण कालेयकं जागुडं, कान्तं वह्निशिखं च केशरवरं गौरीवराक्षीरितम्॥१॥

राजनिघण्टु के मत से केशर का नाम और गुण-कुडुम, अग्निशेखर, असृक्, काश्मीरज, पीतक, काश्मीर, रुचिर, वर, पिशुन, रक्त, शठ, शोणित, बाह्रोक, घुसूण, वरेण्य, मसृण, कालेयक, जागुड, कान्त, वह्निशिख, केशर वर, गौरीवराक्षि ये सब केसर के नाम हैं, अर्थात् पर्यायवाची शब्द है ।। १ ।।

कुङ्कुमं सुरभि तिक्तकटूष्णं कासवातक फकण्ठरुजानम् मूर्धशूकविषदोषविहन्त रोखनं च तनुकान्तिकरं न ॥२॥

योगरत्नाकरः के मुताबिक..

सुगन्धि युक्त केशर, तिक्त, कटु, उष्ण, कास-वात-कफ और कण्ठ की पीड़ाका नाश करनेवाला और शिरःशूल, विषदोष का नाशक, रुचिकारक, शरीर में सुन्दरता देने वाला होता है ॥ २ ॥

वसन्तकाले घुसणेन युक्तः कस्तूरिकाचन्दनचारुलेपः । आवासितश्चेनवमल्लिकाभिस्त्रिदोषजिन्मन्मथजन्मभूमिः ॥ ३॥ वसन्त ऋतु में केसर से युक्त कस्तूरी, चन्दन का सुन्दर लेप करना और सुन्दर माला धारण करना त्रिदोष नाशक और कामदेव की जन्मभूमि अर्थात् कामोद्दीपक है ॥ ३ ॥

केसर साँचा:taxobox

Iran saffron threads.jpg
केसर का पुष्प

केसर (saffron) एक सुगंध देनेवाला पौधा है। इसके पुष्प की वर्तिकाग्र (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल की क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) नामक क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है, यद्यपि इसकी खेती स्पेन, इटली, ग्रीस, तुर्किस्तान, ईरान, चीन तथा भारत में होती है। भारत में यह केवल जम्मू (किस्तवार) तथा कश्मीर (पामपुर) के सीमित क्षेत्रों में पैदा होती हैं। प्याज तुल्य इसकी गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर में रोपी जाती हैं और अक्टूबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं।

केसर का क्षुप 1.4-2 सेंटीमीटर ऊँचा, परंतु कांडहीन होता है। पत्तियाँ मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिसपर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। पंखुडि़याँ तीन तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं। कुक्षिवृंत (style) नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनकी ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है।

इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं। चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, उत्तेजक, आर्तवजनक, दीपक, पाचक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक माना गया है। अत: पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है।

केसर का वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) है। अंग्रेज़ी में इसे सैफरन (saffron) नाम से जाना जाता है। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल का क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है। 'आइरिस' परिवार का यह सदस्य लगभग 80 प्रजातियों में विश्व के विभिन्न भू-भागों में पाया जाता है। विश्व में केसर उगाने वाले प्रमुख देश हैं - फ्रांस, स्पेन, भारत, ईरान, इटली, ग्रीस, जर्मनी, जापान, रूस, आस्ट्रिया, तुर्किस्तान, चीन, पाकिस्तान के क्वेटा एवं स्विटज़रलैंड। आज सबसे अधिक केसर उगाने का श्रेय स्पेन को जाता है, इसके बाद ईरान को। कुल उत्पादन का 80% इन दोनों देशों में उगाया जा रहा है, जो लगभग 300 टन प्रतिवर्ष है। भारत में केसर

केसर विश्व का सबसे कीमती पौधा है। केसर की खेती भारत में जम्मू के किश्तवाड़ तथा जन्नत-ए-कश्मीर के पामपुर (पंपोर) के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है। केसर यहां के लोगों के लिए वरदान है। क्योंकि केसर के फूलों से निकाला जाता सोने जैसा कीमती केसर जिसकी कीमत बाज़ार में तीन से साढ़े तीन लाख रुपये किलो है। परंतु कुछ राजनीतिक कारणों से आज उसकी खेती बुरी तरह प्रभावित है। यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है। असली केसर बहुत महंगी होती है। कश्मीरी मोंगरा सर्वोतम मानी गई है। एक समय था जब कश्मीर का केसर विश्व बाज़ार में श्रेष्ठतम माना जाता था। उत्तर प्रदेश के चौबटिया ज़िले में भी केसर उगाने के प्रयास चल रहे हैं। विदेशों में भी इसकी पैदावार बहुत होती है और भारत में इसकी आयात होती है।

जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे शहर पंपोर के खेतों में शरद ऋतु के आते ही खुशबूदार और कीमती जड़ी-बूटी ‘केसर’ की बहार आ जाती है। वर्ष के अधिकतर समय ये खेत बंजर रहते हैं क्योंकि ‘केसर’ के कंद सूखी ज़मीन के भीतर पनप रहे होते हैं, लेकिन बर्फ़ से ढकी चोटियों से घिरे भूरी मिट्टी के मैदानों में शरद ऋतु के अलसाये सूर्य की रोशनी में शरद ऋतु के अंत तक ये खेत बैंगनी रंग के फूलों से सज जाते हैं। और इस रंग की खुशबू सारे वातावरण में बसी रहती है। इन केसर के बैंगनी रंग के फूलों को हौले-हौले चुनते हुए कश्मीरी लोग इन्हें सावधानी से तोड़ कर अपने थैलों में इक्ट्ठा करते हैं। केसर की सिर्फ 450 ग्राम मात्रा बनाने के लिए क़रीब 75 हज़ार फूल लगते हैं। केसर का पौधा

'केसर' को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहता है। यह पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है। मध्य एवं पश्चिमी एशिया के स्थानीय पौधे केसर को कंद (बल्ब) द्वारा उगाया जाता है।

केसर का पौधा सुगंध देनेवाला बहुवर्षीय होता है और क्षुप 15 से 25 सेमी (आधा गज) ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है। इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। जो मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिस पर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं। प्याज तुल्य केसर के कंद / गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर माह में बोए जाते हैं, जो दो-तीन महीने बाद अर्थात नवंबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं। इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। इसमें अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है। ये फूल कीपनुमा आकार के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा भाग को वर्तिका (तन्तु) एवं वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है। प्रत्येक फूल में केवल तीन केसर ही पाए जाते हैं। लाल-नारंगी रंग के आग की तरह दमकते हुए केसर को संस्कृत में 'अग्निशाखा' नाम से भी जाना जाता है।


इन फूलों में पंखुडि़याँ तीन-तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं। कुक्षिवृंत (style) नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनके ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं।

इन फूलों की इतनी तेज़ खुशबू होती है कि आसपास का क्षेत्र महक उठता है। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है। इसके बीज आयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं जिनमें से गोलकार मींगी निकलती है। 'केसर को निकालने के लिए पहले फूलों को चुनकर किसी छायादार स्थान में बिछा देते हैं। सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानि केसर को अलग कर लेते हैं। रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें - मागरा, लच्छी, गुच्छी आदि श्रेणियों में वर्गीकत करते हैं। 150000 फूलों से लगभग 1 किलो सूखा केसर प्राप्त होता है।


'केसर' खाने में कड़वा होता है, लेकिन खुशबू के कारण विभिन्न व्यंजनों एवं पकवानों में डाला जाता है। इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं। गर्म पानी में डालने पर यह गहरा पीला रंग देता है। यह रंग कैरेटिनॉयड वर्णक की वजह से होता है। यह घुलनशील होता है, साथ ही अत्यंत पीला भी। प्रमुख वर्णको में कैरोटिन, लाइकोपिन, जियाजैंथिन, क्रोसिन, पिकेक्रोसिन आदि पाए जाते हैं। इसमें ईस्टर कीटोन एवं वाष्पशील सुगंध तेल भी कुछ मात्रा में मिलते हैं। अन्य रासायनिक यौगिकों में तारपीन एल्डिहाइड एवं तारपीन एल्कोहल भी पाए जाते हैं। इन रासायनिक एवं कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति केसर को अनमोल औषधि बनाती है। केसर की रासायनिक बनावट का विश्लेषण करने पर पता चला हैं कि इसमें तेल 1.37 प्रतिशत, आर्द्रता 12 प्रतिशत, पिक्रोसीन नामक तिक्त द्रव्य, शर्करा, मोम, प्रटीन, भस्म और तीन रंग द्रव्य पाएं जाते हैं। अनेक खाद्य पदार्थो में केसर का उपयोग रंजन पदार्थ के रूप में किया जाता है।

आयुर्वेद में केसर

केसर का उपयोग आयुर्वेदिक नुस्खों में, खाद्य व्यंजनों में और देव पूजा आदि में तो केसर का उपयोग होता ही था पर अब पान मसालों और गुटकों में भी इसका उपयोग होने लगा है। केसर बहुत ही उपयोगी गुणों से युक्त होती है। यह कफ नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी, तथा खाद्य पदार्थ और पेय को रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।

चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, आर्तवजनक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक माना गया है। अत: पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है। यह उत्तेजक, वाजीकारक, यौनशक्ति बनाए रखने वाली, कामोत्तेजक, त्रिदोष नाशक, आक्षेपहर, वातशूल शामक, दीपक, पाचक, रुचिकर, मासिक धर्म साफ़ लाने वाली, गर्भाशय व योनि संकोचन, त्वचा का रंग उज्ज्वल करने वाली, रक्तशोधक, धातु पौष्टिक, प्रदर और निम्न रक्तचाप को ठीक करने वाली, कफ नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली, वातनाड़ियों के लिए शामक, बल्य, वृष्य, मूत्रल, स्तन (दूध) वर्द्धक, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी, तथा खाद्य पदार्थ और पेय (जैसे दूध) को रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।

आयुर्वेदों के अनुसार केसर उत्तेजक होती है और कामशक्ति को बढ़ाती है। यह मूत्राशय, तिल्ली, यकृत (लीवर), मस्तिष्क व नेत्रों की तकलीफों में भी लाभकारी होती है। प्रदाह को दूर करने का गुण भी इसमें पाया जाता है।

सन्दर्भ




बाहरी कड़ियाँ