ओतावियो क्वात्रोची

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ओत्तावियो क्वात्रोकी
जन्म Ottavio Quattrocchi
इटली
मृत्यु July 13, 2013 (आयु 74 वर्ष)[१]
मिलानो, इटली
राष्ट्रीयता इतालवी
अन्य नाम ओतावियो क्वात्रोची
व्यवसाय इतालवी व्यापारी
प्रसिद्धि कारण बोफोर्स सौदे में दलाली

ओतावियो क्वात्रोकी (Ottavio Quattrocchi) एक इतालवी व्यवासायी थे जिसकी वर्ष 2009 के शुरुआती महीनों तक भारत को आपराधिक मामलों में तलाश थी। क्वात्रोची पर बोफोर्स घाटाले में दलाली के जरिए घूस खाने का आरोप था। 28 अप्रैल 2009 को सीबीआई ने क्वोत्रोची को क्लीनचिट देते हुए इंटरपोल से उस जारी रेडकॉर्नर नोटिस को हटा लेने की अपील की। सीबीआई की अपील पर इंटरपोल ने क्वात्रोची पर से रेडकॉर्नर हटा लिया गया। 13 जुलाई 2013 को मिलानो, इटली में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।[१][२]

क्वात्रोची की बोफोर्स कांड में भूमिका और गांधी-नेहरू परिवार से कथित संबंध 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार का कारण बना। दस वर्ष बाद 1999 में सीबीआई ने बोफोर्स मामले में क्वात्रोची के खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया। 2003 में उसके विरुद्ध मामला उस समय और गंभीर हो गया, जब इंटरपोल ने लंदन के एक बैंक में क्वात्रोकी और उसकी पत्नी के खाते में जमा चालीस लाख पाउंड यूरो का खुलासा किया। एक नौकरी-पेशा व्यक्ति के खाते में इतनी राशि बहुत अधिक मानी जाती है। 2003 क्वात्रोची के दोनों बैंक खातों से लेन-देन पर रोक लगा दी गई। लेकिन 2006 में सीबीआई को जानकारी दिए बिना विधि मंत्रालय ने क्वात्रोची के खातों पर लगी रोक को हटा दी।

6 फ़रवरी 2007 को अर्जेंटीना पुलिस ने इंटरपोल के वारंट पर क्वात्रोची को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन सीबीआई पूरे घटनाक्रम के प्रति उदासीन बना रहा और क्वात्रोची का प्रत्यर्पण नहीं हो सका। अदालत ने उचित दस्तावेज के अभाव में क्वात्रोची को बरी कर दिया। साथ ही, क्वात्रोची की कानूनी खर्च भी भारत को ही उठाना पड़ा। इस पूरे प्रकरण में सीबीआई की काफी किरकिरी हुई।

क्वात्रोची का पुत्र मासिमो क्वात्रोची, सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ बड़ा हुआ। मासिमो इस समय लक्जमबर्ग स्थित कंपनी क्लबइनवेस्ट का सलाहकार है, जो भारत में कंपनी के लिए संभावित अवसरों सलाह देता है। वह बार-बार भारत के दौरे पर आता है। उसका बैंगलोर में ऑफिस भी है। जब अर्जेटीना में क्वात्रोची गिरफ्तार हुआ, तब मोसिमो भारत में ही था। कयास लगाए जा रहे हैं कि उस समय उसने प्रियंका गांधी से मुलाकात की थी।

क्वात्रोची का गांधी-नेहरू परिवार से संबंध

क्वात्रोची का जन्म सिसली के कातानिया राज्य के मासकली में हुआ। क्वात्रोची सत्तर के दशक में इतालवी तेल और गैस कंपनी इनी का प्रतिनिधि बनकर भारत आया था। सोनिया गांधी के इतालवी मूल के होने के कारण वो और उसका परिवार गांधी-नेहरू परिवार से जुड़ा रहा। 14 नवम्बर 2002, को विशेष न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा, "1974 में मोलीनरी ने क्वात्रोची का परिचय राजीव गांधी और सोनिया गांधी से करावाया। बाद में दोनों के बच्चे भी मिलने-जुलने लगे। उस समय राजीव गांधी इंडियन एयरलाइन्स में पायलट थे। दोनों के बीच खान-पान और उपहारों का लेन-देन भी होता था। इस तरह क्वात्रोची राजीव गांधी और उनकी पत्नी के बिल्कुल करीब हो गए।”

इस दोस्ती के कारण प्रधानमंत्री कार्यालय में भी क्वात्रोची का अच्छा-खासा प्रभाव हो गया। इस प्रभाव के बारे में पायोनियर अखबार में अशोक मलिक ने लिखा कि जब क्वात्रोची प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचता था, तब वहां के नौकरशाह खड़े हो जाते हैं।

क्वात्रोची का प्रभाव सिर्फ नौकरशाहों तक ही सीमित रहा, बल्कि मंत्रियों पर भी दिखने लगा, जो बोफोर्स घाटाले के रूप में सामने आया। अदालत के एक जजमेंट में इसे इस प्रकार व्यक्त किया गया है। "राजीव गांधी के कैबिनेट में खाद्यमंत्री वीपी सिंह का कहना है कि क्वात्रोची ने कई बार राजीव गांधी से मिलने के लिए अप्वाइंटमेंट मांगा, लेकिन उन्होंने उन्हें अप्वाइंटमेंट नहीं दिया। तब राजीव गांधी ने कहा कि उन्हें क्वात्रोची से मिलना है। नौकरशाहों, राजनेताओं और क्वात्रोची के बीच का संबंधों ने इस सौदेबाजी की पृष्ठभूमि तैयार की। जगदीशपुर खाद कारखाना पहले एसपीआईसी को दिया गया था, लेकिन उसे रद्द कर बाद में क्वात्रोची को दिया गया, यह इन घोटाले की कहानी कहता है। ”

इतना ही नहीं, क्वात्रोची ने स्नमप्रोगेटी के लिए साठ सरकारी परियोजनाओं पर कब्जा किया। उल्लेखनीय है कि हाजिरा-बीजापुर-जगदीशपुर पाइपलाइन परियोजना में स्पाइ-कैपैग कंपनी ने एक सौ करोड़ कम की बोली लगाई और जब उसे टेंडर नहीं मिला तो नवल किशोर शर्मा को पेट्रोलियम मंत्रालय खोना पड़ा, पीके कौल को कैबिनेट सचिवालय छोड़कर वाशिंग्टन रवाना कर दिया गया। गैल के अध्यक्ष एचएस चीमा को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी।

बोफोर्स घोटाला

1984 में भारतीय सेना ने हविट्जर तोप की खरीदी के लिए टेंडर निकाला। अवमूल्यांकन के बाद, फ्रांस के सोफमा तोप को हर दृष्टि से उत्तम पाया गया। सेना को तीस किलोमीटर रेंज वाले तोप की जरूरत थी तो सोफमा 29.2 किलोमीटर की रेंज में सटीक था, जबकि बोफोर्स महज 21.5 किलोमीटर की रेंज में सटीक था। सेना प्रमुख कृष्णास्वामी सुंदरजी ने सोफमा का समर्थन किया। बाद में खुलासा हुआ कि गैर-कानूनी रूप से बगैर पुर्निविदा के बोफोर्स को फिर से बोली लगाने की छूट दी गई। सेना और अन्य लोगों के विरोध के बावजूद ठेका बोफोर्स को मिला।

बोफोर्स कांड का खुलासा 1987 में स्वीडिश रेडियो ने किया। रेडियो ने दावा किया कि बोफोर्स ने ठेका सुनिश्चित करने के लिए घूस दिया। अंग्रेजी अखबार द हिंदू के संवाददाता चित्रा सुब्रह्मण्यम ने बोफोर्स के प्रबंध निदेशक की निजी डायरी प्राप्त कर ली। इस डायरी से खुलासा हुआ, “क्यू का शामिल होना समस्या पैदा कर सकता है क्योंकि वह आर का करीबी है”

स्वीस बैंक के खातों की छानबीन से पता चला कि वह क्यू नाम का व्यक्ति ओतावियो क्वात्रोची है। इस दावे की पुष्टि सीबीआई के उन दस्तावेजों से भी हुई, जिन्हें स्वीटजरलैंड से लाया गया था, लेकिन मूल दस्तावेज की प्रतिलिपि होने के कारण अदालत ने इसे मामने से इनकार कर दिया। इस घोटाले से सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के सामने गंभीर संकट उत्पन्न हो गया और पार्टी 1989 में लोकसभा चुनाव हार गई। जुलाई 1993 में स्वीस कोर्ट ने खाता संचालक बैंक को क्यू नामक खातेदार का नाम बताने को कहा और इस तरह क्वात्रोची के नाम का खुलासा हुआ। इसके बाद सीबीआई ने क्वात्रोची से पूछताछ की योजना बनाई और कोर्ट से उसके पासपोर्ट जब्त करने की अनुमति मांगी। लेकिन क्वात्रोची को गिरफ्तार किया जाता, वह उनतीस जुलाई की रात दिल्ली से कुआलालांपुर भाग गया। ऐसा माना जाता है कि सोनिया गांधी और तात्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सांठगांठ से ऐसा संभव हुआ।

मार्च 1999 में एक साक्षात्कार में क्वात्रोची ने दावा किया कि उसे बोफोर्स से कोई पैसा नहीं मिला और ये भी कि ए आई सर्विसेज, जिसने उसके नाम स्वीस बैंक में पैसा जमा करवाया था, से उसका कोई भी संबंध है। 22 नवम्बर 1999 को भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के शासनकाल में सीबीआई क्वात्रोची के नाम से आरोपपत्र दायर किया। उसमें एई सर्विसेज का भी नाम था, जिसे क्वात्रोची और उनकी पत्नी मारिया चलाती है। स्वीस बैंक द्वारा जारी पांच दस्तावेजों के आधार पर सीबीआई ने क्वात्रोची और उसकी पत्नी मारिया, डब्ल्यू एन चड्ढा और पत्नी कांता के खिलाफ आरोपपत्र तैयार किया। षडयंत्रकारियों में राजीव गांधी और पार्टी के कुछ अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। चित्रा सुब्रह्मण्यम ने दिखाया कि क्वात्रोची को एई सर्विसेज के जरिए पूरे सौदे का तीन प्रतिशत यानी करीब सत्तर लाख डॉलर दिए गए। प्रमाणों के पेश नहीं किए जाने के कारण क्वात्रोची के प्रत्यर्पण के प्रयास असफल रहे और 2003 में क्वात्रोची इटली लौट गया। खबर ऐसी भी आई कि इटली सरकार ने क्वात्रोची के प्रत्यर्पण की मांग को ठुकरा दी और कहा कि पर्याप्त सबूत पेश किए जाने के बाद उसके खिलाफ इटली की अदालतों में मुकदमे चलाए जाएंगे। पांच फरवरी 2004 को दिल्ली हाईकोर्ट ने राजीव गांधी और अन्य के खिलाफ लगे घूसखोरी के आरोपों को खारिज कर दिया।

अदालत के फैसले पर सोनिया गांधी ने खुशी जताते हुए कहा, सत्रह सालों के कलंक और अपमान के बाद मेरे और मेरे बच्चों के लिए ये खास मौका है। हालांकि मामला खत्म नहीं हुआ, धोखाधड़ी और सरकार को नुकसान पहुंचाने के दो मामले चलते रहे। इसी बीच मामले का एक अभियुक्त विन चड्ढा मर गया। 31 मई 2005 को दिल्ली हाईकोर्ट ने उचित दस्तावेज के अभाव में ब्रिटिश व्यवसायियों, श्रीचंद्र, गोपीचंद और प्रकाश हिंदुजा के खिलाप लगे आरोपों को खारिज कर दिया।

बैंक खातों पर रोक

जून, 2003 में स्वीस बैंक बीएसआईएजी की लंदन स्थित एक शाखा ने क्वात्रोची और उसकी पत्नी मारिया के खाते में तीस लाख और एक दस लाख यूरो जमा होने का खुलासा किया। सीबीआई के अनुरोध पर बैंक ने इन दोनों खातों से लेन-देन पर रोक लगा दी। हालांकि क्वात्रोची ने खातों पर से रोक हटाने की बार-बार अपील की, लेकिन कोर्ट ने उसकी अपील को खारिज कर दिया 22 दिसम्बर 2005 को अचानक भारत सरकार का रुख बदल गया गया, कानूनमंत्री हंसराज भारद्वाज ने इन खातों पर लगी रोक को हटाने की अपील की। इस मामले में कानूनमंत्रालय ने सीबीआई को जानकारी भी नहीं दी।

16 मई 2006, को सुप्रीमकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। कोर्ट ने सीबीआई से यह सुनिश्चित करने को कहा कि खातों से तब तक धन की निकासी नहीं हो, जब तक सरकार इस मामले में सफाई ने पेश करे। हालांकि सुप्रीमकोर्ट के आदेश तक इन बैंक खातों से चालीस लाख डॉलर निकाल लिए गए। जिस पर संसद में भारी हंगामा हुआ और इस पर सोनिया गांधी का पक्ष कमजोर पड़ गया।

अर्जेंटीना में गिरफ्तारी

इंटरपोल के वारंट पर 6 फ़रवरी 2007 को अर्जेंटीना पुलिस ने क्वात्रोची को गिरफ्तार कर लिया। 8 फ़रवरी को इंटरपोल ने क्वात्रोची की गिरफ्तारी के बारे में सीबीआई को जानकारी दी। सीबीआई ने लंदन बैंकों से क्वात्रोची द्वारा पैसा निकाले जाने के बारे में सुप्रीमकोर्ट को जानकारी दी, हालांकि उसने क्वात्रोची की गिरफ्तारी के बारे में कोर्ट को नहीं बताया, बाद में सीबीआई ने बताया कि उसे इसकी जानकारी थी। इस मामले में सीबीआई के निदेशक विजय शंकर पर कोर्ट की अवमानना का मामला चल रहा है। 23 फ़रवरी को सीबीआई ने एक बयान में कहा कि अर्जेंटीना में क्वात्रोची को गिरफ्तार कर लिया गया है। अर्जेंटीना के अधिकारियों ने राजनयिक माध्यमों से भारत को जानकारी दी कि बोफोर्स मामले में सीबीआई केस संख्या RC.1(A)/90-ACU.IV/SIG के आरोपी इतालवी नागिरक ओतावियो क्वात्रोची को इंटरपोल के रेडकॉर्नर नोटिस संख्या- A-44/2/1997 के आधार पर गिरफ्तार किया गया है। इस मामले में विपक्षी पार्टी भाजपा ने आरोप लगाया कि पंजाब और उत्तराखंड चुनाव में सोनिया को बचाने के लिए कांग्रेस सरकार ने देर से गिरफ्तारी की सूचना देने का ड्रामा किया। 26 फ़रवरी को उचित दस्तावेजों के अभाव में क्वात्रोची को बरी कर दिया गया। हालांकि इस मामले में इटली की सरकार ने भी क्वात्रोची की मदद की। 7 मार्च को सीबीआई ने अर्जेटीना कोर्ट में क्वात्रोची के प्रत्यर्पण के लिए अर्जी दी। जिसे कोर्ट ने नामंजूर कर दिया। इतना ही नहीं, भारत को क्वात्रोची का कानून खर्च भी चुकाना पड़ा।

आरोप

जिस समय क्वात्रोची क्वात्रोची अर्जेंटीना में गिरफ्तार हुआ था, उस समय उसका बेटा मासिमो क्वात्रोची भारत में था और वह पिछले सात महीनों से भारत में रह रहा था। वह 21 जुलाई 2006 को लुफ्थांसा फ्लाइट 760 से भारत आया था और 22 फ़रवरी 2007 को लुफ्थांसा फ्लाइट-761 से भारत से भाग गया। सीबीआई ने अर्जेंटीना में क्वात्रोची की गिरफ्तारी (7 फरवरी) की जानकारी 16 दिन बाद दी और जब उसने ये जानकारी दी (23 फरवरी) तब तक क्वोत्रोची का बेटा भारत छोड़ चुका था। सीबीआई इस देरी का कारण बताने में भी असफल रही।

सीबीआई के निदेशक विजय शंकर ने कहा कि दस्तावेजों को स्पेनिश से अनुवाद करने में ज्यादा समय लग गया, जो उस समय बहाना लगा। बाद में सीबीआई का यह बयान झूठ साबित हुआ, क्योंकि भारतीय दूतावास को दस्तावेज अंग्रेजी में मिले थे। यह देरी उसी तरह की देरी है, जैसा कि क्वात्रोची के खातों पर लगी रोक को हटाने के लेकर हुई। इस बारे में भी सीबीआई ने गलत बयानी की और इस बारे में तरह-तरह के कयास लगाए गए। 17 फ़रवरी को, कथित तौर मासिमो क्वात्रोची को एक पार्टी में देखा गया। ये पार्टी बीजू जनता दल के राज्यसभा सांसद बैजयंत जय पांडा ने दी थी और उस पार्टी में प्रियंका गांधी वाड्रा भी मौजूद थी। हालांकि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने प्रियंकां गांधी वाड्रा और मासिमो क्वात्रोची के बीच किसी भी तरह की मुलाकात की बात को खारिज कर दी। लेकिन जब करण थापर ने उनसे पूछा कि वो इस बात का दावा कैसे कर सकते हैं तो उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया। बाद में, इस पार्टी की जांच के लिए भी जांच एजेंसी को लगाया गया। विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती रही हैं कि मासिमों, जो प्रियंका और राहुल के साथ रहे, की भारत में उपस्थिति की वजह से सीबीआई पर दबाव डालकर क्वात्रोची को बचाया गया। हालांकि कांग्रेस सरकार ने इस इसके लिए पूर्ववर्ती एनडीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

कांग्रेस पार्टी को नुकसान

बोफोर्स घोटाला दो दशक पुराना है। इस मामले का मुख्य आरोपी ओतावियो क्वात्रोची रहा है। चूंकि क्वात्रोची गांधी-नेहरू परिवार के करीब रहा है, इसलिए ये बात सोनिया गांधी के लिए दुखदायी थी। विधिमंत्री हंसराज भारद्वाज के पद से समझौता किया गया और इससे प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की ईमानदारी पर भी सवाल उठे।

कुछ मिलाकर, इस मामले में कांग्रेस पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी। एक दशक पहले द हिंदू की संवाददाता चित्रा सुब्रह्मण्यम ने सवाल उठाया कि अगर गांधी परिवार दोषी नहीं है तो वे अपने दोस्त क्वात्रोची की जांच में मदद क्यों नहीं करते।

अगर राजीव गांधी इसमें शामिल नहीं हैं तो इसका पता किया जाना चाहिए कि अगर सीबीआई की जांच में रोक रोड़े अटका रहा है। ऐसे ही सवाल आज भी पूछे जा रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार केंद्र में आते ही क्यों विधि मंत्रालय ने क्वात्रोची के खातों पर लगी रोक को हटाने का आदेश दिया।

इंटरपोल ने रेड कॉर्नर नोटिस हटाया

इंटरपोल ने अप्रैल 2009 में क्वात्रोची के खिलाफ जारी रेडकॉर्नर नोटिस को सीबीआई के आग्रह पर हटा लिया।

सन्दर्भ

https://web.archive.org/web/20090502125507/http://en.wikipedia.org/wiki/Ottavio_Quattrocchi