लक्ष्मी नारायण गौड़ ‘विनोद’

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लक्ष्मी नारायण गौड़ ‘विनोद’ प्रमुख हैं। गौड़ जी प्रारम्भ में श्री हरि के नाम से कविता लिखते थे। ‘विनोद’ उपनाम कालाकांकर नरेश श्री अवधेश सिंह जू ने दिया था। आप सफल संपादक भी थे। बचनेश जी के साथ ‘दरिद्र नारायण’ और ‘रसिक’ नाम के दो पत्रों का संपादन भी बहुत दिनों तक करते रहे। आपकी कविता स्फुट रूप में मिलती है- कलिका, दुखिया माता, परिवर्तन, हार, प्रभात, माँझी, ज्योत्सना, वसन्त वैभव और दैन्य तथा सरिता शीर्षक की बड़ी-बड़ी कविताएँ हैं। ‘शान्तनु’ नाम का एक खण्ड-काव्य भी लिखा जो अपूर्ण है। गौड़ जी के समसामयिक कवियों में रघुवर दयाल मिश्र, रघुराज सिंह उपनाम प्रोफेसर रंजन, भजनलाल जी पाण्डेय ‘हरीश’, राजेन्द्र प्रकाश शुक्ल, रामाधीन त्रिवेदी ‘प्रचण्ड’, कालका प्रसाद बाजपेई ‘ब्रह्म कालका’, विश्वम्भर प्रसाद तिवारी ‘संजय’, भी महत्वपूर्ण हैं। श्रीनाथ प्रसाद मेहरोत्रा ‘श्रान्त’, फर्रुखाबाद के कवियों में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपका प्रबंध काव्य- ‘अर्जुनोर्वशी’ महाकाव्य- ‘भीष्म पितामह’, गीत संग्रह- ‘गीत पारिजात’ और ‘शत्रुघ्न’ नामक काव्य कृतियाँ अपना मौलिक महत्व रखती हैं। ‘अजुनोर्वशी’ आपका सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें आपने अर्जन के भोग-परित्याग मूलक रूप की स्थापना की है। उर्वशी की प्रणय-याचना को स्वीकार कीजिए-
गंगाजल की शपथ मुझे,
मैं तेरी चिर दासी हूँ।
तेरे उदग्र यौवन की मैं,
मानों युग से प्यासी हूँ।
अब तक मैं युग युग से याचित थी,
मम प्रथम याचना तुम हो।
मुझ पर पुष्प चढ़े अब तक थे,
मम प्रथम अर्चना तुम हो।।
[१]

सन्दर्भ