थोक मूल्य सूचकांक

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थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) एक मूल्य सूचकांक है जो कुछ चुनी हुई वस्तुओं के सामूहिक औसत मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है। भारत और फिलीपिन्स आदि देश थोक मूल्य सूचकांक में परिवर्तन को महंगाई में परिवर्तन के सूचक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। किन्तु भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका अब उत्पादक मूल्य सूचकांक (producer price index) का प्रयोग करने लगे हैं।

भारत में थोक मूल्य सूचकांक

भारत में थोक मूल्य सूचकांक को आधार मान कर महँगाई दर की गणना होती है। हालाँकि थोक मूल्य और ख़ुदरा मूल्य में काफी अंतर होने के कारण इस विधि को कुछ लोग सही नहीं मानते हैं।

थोक मूल्य सूचकांक के लिये एक आधार वर्ष होता है। भारत में अभी 2011-12 के आधार वर्ष के मुताबिक थोक मूल्य सूचकांक की गणना हो रही है। इसके अलावा वस्तुओं का एक समूह होता है जिनके औसत मूल्य का उतार-चढ़ाव थोक मूल्य सूचकांक के उतार-चढ़ाव को निर्धारित करता है। अगर भारत की बात करें तो यहाँ थोक मूल्य सूचकांक में (697) पदार्थों को शामिल किया गया है जिनमें खाद्यान्न, धातु, ईंधन, रसायन आदि हर तरह के पदार्थ हैं और इनके चयन में कोशिश की जाती है कि ये अर्थव्यवस्था के हर पहलू का प्रतिनिधित्व करें। आधार वर्ष के लिए सभी (697)

सामानों का सूचकांक १००(100) मान लिया जाता है।

उदाहरण

मान लीजिए हमें वर्ष २००४(2004) के लिए गेहूँ का थोक मूल्य सूचकांक निकालना हैो त अगर १९९४(1994) में गेहूँ की क़ीमत ८(8) रूपए प्रति किलो थी और वर्ष २००४(2004) में यह १०(10) रूपए प्रति किलो है तो क़ीमत में अंतर हुआ २ रूपए का.

अब यही अंतर अगर प्रतिशत में निकालें तो २५ प्रतिशत बैठता है। आधार वर्ष (2004-05) के लिए सूचकांक १००(100) माना जाता है, इसलिए वर्ष २००४(2004) में गेहूँ का थोक मूल्य सूचकांक होगा १००+२५(100+25) यानी १२५(125).

इसी तरह सभी (697) पदार्थों के अलग-अलग थोक मूल्य सूचकांक निकाल कर उन्हें जोड़ दिया जाता है। लेकिन ऐसा करते समय अगर ये लगता है कि अर्थव्यवस्था में किसी ख़ास सामान की उपयोगिता अधिक है तो सूचकांक में उसकी हिस्सेदारी का भारांक (वेटेज) को कृत्रिम तौर पर बढ़ाया जा सकता है।

थोक मूल्य सूचकांक की गणना हर हफ़्ते होती है

सामानों के थोक भाव लेने और सूचकांक तैयार करने में समय लगता है, इसलिए मुद्रास्फ़ीति की दर हमेशा दो हफ़्ते पहले की होती है। भारत में हर हफ़्ते थोक मूल्य सूचकांक का आकलन किया जाता है। इसलिए महँगाई दर का आकलन भी हफ़्ते के दौरान क़ीमतों में हुए परिवर्तन दिखाता है।

अब मान लीजिए १३(13) जून को ख़त्म हुए हफ़्ते में थोक मूल्य सूचकांक १२० है और यह बढ कर बीस जून को १२२(122) हो गई। तो प्रतिशत में अंतर हुआ लगभग १.६(1.6) प्रतिशत और यही महंगाई दर मानी जाती है।

थोक मूल्य सूचकांक की कमियां

अमरीका, ब्रिटेन, जापान, फ़्रांस, कनाडा, सिंगापुर, चीन जैसे देशों में महँगाई की दर खुदरा मूल्य सूचकांक के आधार पर तय की जाती है। इस सूचकांक में आम उपभोक्ता जो सामान या सेवा ख़रीदते हैं उसकी क़ीमतें शामिल होती हैं। इसलिए अर्थशास्त्रियों के एक तबके का कहना है कि भारत को भी इसी आधार पर महँगाई दर की गणना करनी चाहिए जो आम लोगों के लिहाज़ से ज़्यादा सटीक होगी।

भारत में ख़ुदरा मूल्य सूचकांक औद्योगिक कामगारों, शहरी मज़दूरों, कृषि मज़दूरों और ग्रामीण मज़दूरों के लिए अलग-अलग निकाली जाती है लेकिन ये आँकड़ा हमेशा लगभग एक साल पुराना होता है।

महँगाई दर

गणित के हिसाब से थोक या ख़ुदरा मूल्य सूचकांक में निश्चित अंतराल पर होने वाले बदलाव को जब हम प्रतिशत के रूप में निकालते हैं, तो उसे ही महँगाई दर या मुद्रा स्फीति कहते हैं।

आधार वर्ष:-(Base year)

एक आधार वर्ष एक आर्थिक या वित्तीय सूचकांक में वर्षों की श्रृंखला की पहली श्रृंखला है। यह आम तौर पर 100 के मनमाने स्तर पर सेट किया जाता है। नया, अप-टू-डेट आधार वर्ष समय-समय पर एक विशेष सूचकांक में डेटा को चालू रखने के लिए पेश किया जाता है। कोई भी वर्ष आधार वर्ष के रूप में कार्य कर सकता है, लेकिन विश्लेषक आमतौर पर हाल के वर्षों का चयन करते हैं।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ