छत्तीसगढ़ का नाम
छत्तीसगढ़ के गढ़ों को हैहय वंशी शासकों ने ही बनाया था या फिर वे यहाँ पर पहले से ही मौजूद थे और जैसे ब्रिटिश शासकों ने अपने पूर्ववर्ती मुगल सूबों को प्रान्तों और जिलों का रूप दे दिया। वैसे ही हैहय वंशी शासकों ने भी यहाँ के पहले से ही मौजूद गढ़ों को नया रूप दिया।
शोधकर्ताओं के अनुसार
अंग्रेज शोधकर्ता मैकफॉर्सन ने इस पर विचार किया है। उनके अनुसार 'हैहय वंशी आर्य शासकों के आगमन से पूर्व भी यहाँ गढ़ थे'। यह भी सत्य है कि यहाँ पर गोण्ड शासक हुआ करते थे। गोण्ड शासकों की व्यवस्था यह थी कि जाति का मुखिया प्रमुख शासक होता था और राज्य रिश्तेदारों में बाँट दिया जाता था जो कि प्रमुख शासक के अधीन होते थे। हैहय वंशी शासको ने भी उनकी ही इस व्यवस्था को अपना लिया। ध्यान देने योग्य बात है कि 'गढ़' संस्कृत का शब्द नहीं है, यह अनार्य भाषा का शब्द है। छत्तीसगढ़ में व्यापक रूप से प्रचलित 'दाई', 'माई', 'दाऊ' आदि भी गोण्डी शब्द हैं, संस्कृत के नहीं जो सिद्ध करते हैं कि हैहय वंशी शासकों के पूर्व यहाँ गोण्ड शासकों का राज्य था और उनके गढ़ भी थे जिन्हें हैहय वंशी शासकों ने जीत लिया। इससे सिद्ध होता है कि 'छत्तीसगढ़' नाम 1000 वर्षों से भी अधिक पुराना है।
तालिकाएं
छत्तीसगढ़ नाम सूचित करने वाली कई प्राचीन तालिकाएँ उपलब्ध हैं जिनमें से अनेक तालिकाएँ रतनपुर में सुरक्षित रही हैं। ब्रिटिश शासन काल में सेटिलमेण्ट आफीसर चिशोलम ने सन् 1869 में उनमें से एक ताकिका प्रकाशित की थी जिसके अनुसार पूरा छत्तीसगढ़ राज्य दो प्रधान भागों में विभाजित था - शिवनाथ के उत्तर में 'रतनपुर राज' और दक्षिण में 'रायपुर राज'। प्रत्येक राज के अठारह अठारह अर्थात् पूरे छत्तीस गढ़ थे जो इस प्रकार हैं:
रतनपुर राज | रायपुर राज |
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रतनपुर | रायपुर |
मारो | पाटन |
बिजयपुर | सिमगा |
खरोद | सिंगारपुर |
कोटागढ़ | लवन |
नवागढ़ | अमेरा |
सोन्दी | दुर्ग |
मल्हारगढ़ | सारडा |
मुंगेली सहित पँडरभट्ठा | सिरसा |
सेमरिया | मोहदी |
चाँपा | खल्लारी |
बाफा | सिरपुर |
छुरी | फिंगेश्वर |
केण्डा | राजिम |
मातिन | सिंगनगढ़ |
उपरौरा | सुअरमाल |
पेण्ड्रा | टेंगनागढ़ |
कुरकुट्टी | अकल वारा |
छत्तीसगढ़ की सदा से अपनी विशेषता और संस्कृति रही है। जब छत्तीसगढ़ अंग्रजों के आधिपत्य में आया तब वे यहाँ की विलक्षणता को देख कर आश्चर्य-चकित रह गये। सी.यू. विल्स ने लिखा है कि महानदी के कछार में स्थित छत्तीसगढ़ का अपना स्वयं का व्यक्तित्व है। यहाँ की भाषा, पोशाक और व्यवहार में अपनी निजी विशेषताएँ हैं।