कान सिंह परिहार

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न्यायमूर्ति श्री कान सिंह परिहार

कान सिंह परिहार

श्री कान सिंह परिहार




जन्म 30 अगस्त 1913
सूरसागर, जोधपुर, राजस्थान
मृत्यु 28 अक्टूबर 2011 (aged 98)
जोधपुर, राजस्थान, भारत
जीवन संगी श्रीमती कमला देवी
संतान 4 बेटे and 2 बेटियाँ
धर्म हिन्दू / सनातन धर्म
वेबसाइट web.archive.org/web/20071006084412/http://www.justicekansingh.org/index.htm

श्री कान सिंह परिहार (३० अगस्त १९१३ -- २८ अक्टूबर २०११) राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायधीश व जोधपुर विश्वविद्यालय के कुलपति थे।

प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा

श्री कान सिंह परिहार (जन्म ३० अगस्त १९१३) का जन्म जोधपुर के पास सूरसागर, राजस्थान में, सार्वजनिक निर्माण विभाग के जानेमाने ए क्लास ठेकेदार श्री छोगसिंह जी परिहार व श्रीमती मुरली देवी जी के यहां जन्माष्टमी के दिन हुआ था। 

जब वह छह साल के थे, तब उनके पिता श्री छोगसिंह जी परिहार का १९१९ में निधन हो गया और उनका लालन-पालन उनकी माताजी श्रीमती मुरली देवी जी ने किया। श्री कानसिंह जी परिहार ने अपनी प्राथमिक शिक्षा सूरसागर में की थी। वर्ष १९२८ में उन्होंने दरबार हाई स्कूल में दाखिला लिया। उन्होंने १९३३ में जसवंत कॉलेज, जोधपुर से बी.ए. किया। १९३६ में उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से कानून (एलएल.बी.) की डिग्री प्रथम श्रेणी मॅ प्राप्त की।

सन १९३९, में आप का विवाह  उदयपुर के  महाराणा श्री भूपाल सिंह जी के धाभाई ठाकुर श्री अमर सिंह जी तंवर की पोत्री चतर कंवर जी से हुआ। लेकिन विवाह के एक साल बाद ही  दुर्भाग्यवश श्रीमती चतर कंवर जी का आकस्मिक निधन उदयपुर में हो गया,  उस समय श्री परिहार २७  वर्ष के थे। तत्पश्चात सन १९४२,  में आप का दूसरा विवाह नागोरी बैरा, गढ़ मंडोर, जोधपुर के जाने-माने ए क्लास ठेकेदार  श्री पुरखासिंह जी  कछवाहा की सुपुत्री कमला देवी जी से हुआ। आपके चार पुत्र व दो पुत्रियां है।

व्यावसायिक जीवन

वर्ष १९३६  में, वह जोधपुर में बार में शामिल हुए और उन्होंने वरिष्ठ फौजदारी वकील सरदार श्री अमोलक सिंह जी के साथ वकालत शुरु की। २३ वर्ष की आयु में वे मारवाड़ के सभी किसान समुदाय के पहले वकील थे। १९३८  की शुरुआत में उन्होंने राजस्थान के नागौर में अपनी वकालत स्थापित की। सात वर्षों तक नागौर में सफलतापूर्वक वकालत करने के बाद, उन्होंने १९४४  में हाकिम (न्यायाधीश) के रूप में मारवाड़ राज्य न्यायिक सेवा में प्रवेश लिया। इसके बाद, उन्हें जोधपुर में मारवाड़ राज्य के विधि विभाग में विधि परामर्शी  के रूप में नियुक्त किया गया। इस पद पर काम करते हुए, उन्होंने मारवाड टेनेंसी एक्ट १९४९  और मारवाड़ लैंड रेवेन्यू एक्ट १९४९  का मसौदा तैयार किया। इन अधिनियमों ने सभी किरायेदारों को कृषि भूमि धारक (भूमि मालिक) घोषित किया।

बाद में, १९५५  में राजस्थान विधानसभा ने श्री कान सिंह परिहार के द्वारा ड्राफ्ट किए गए मारवाड टेनेंसी एक्ट १९४९ और मारवाड़ लैंड रेवेन्यू एक्ट १९४९ को आधार मानते हुए कानून बनाकर, इन धाराओं को पूरे राजस्थान में लागू कर दिया। जिससे  राजस्थान के सारे किसान जो जिस - जिस कृषिभूमि पर काबिज थे, उसके मालिक बन गए।

नए बनाए गए राजस्थान राज्य में परिहार को राजस्थान के विधि विभाग में विधि परामर्शी  के रूप में नियुक्त किया गया था। १९५३  में उन्हें राजस्थान उच्च न्यायालय में सरकारी अधिवक्ता नियुक्त किया गया। उन्हें १९६२ में राजस्थान एडवोकेट्स बार एसोसिएशन का सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया। बाद में उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया। अगस्त १ ९ ६४ में, उन्हें राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ में पदोन्नत किया गया, जहाँ उन्होंने अगस्त १ ९, १९७५ में सेवानिवृत्त होने तक ११ वर्षों तक न्याय किया। परिहार को सेवानिवृत्त होने के बाद जबलपुर में राष्ट्रीय न्यायाधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्हें भारत की प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा नई दिल्ली में एकाधिकार व्यापार आयोग की अध्यक्षता की भी पेशकश की गई थी। १९७७  में उन्हें राजस्थान सरकार द्वारा आपातकालीन ज्यादतियों जांच आयोग (द कान सिंह कमीशन) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और १९७९ में फिर से उन्हें जोधपुर विश्वविद्यालय (अब जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय) का कुलपति नियुक्त किया गया।

सार्वजनिक जीवन

सेवानिवृत्ति के बाद, श्री कान सिंह परिहार ने जोधपुर में विभिन्न सामाजिक, शैक्षणिक और धार्मिक संस्थानों के साथ काम किया। श्री परिहार १९६७ में लायंस क्लब जोधपुर के संस्थापक अध्यक्ष थे। उन्होंने जीवन पर्यंत लायंस क्लब के माध्यम से अपनी सेवाएं दी, जोधाणा (जोधपुर की नागरिक परिषद के वे संस्थापक अध्यक्ष थे), वीर दुर्गा दास समिति, भारतीय विद्या भवन, मानसिक अस्पताल जोधपुर जैसे कई संगठनों के संरक्षक और अध्यक्ष रहे हैं। वह थान चंद मेहता ट्रस्ट, जगदीश सिंह गहलोत अनुसंधान संस्थान, गीता भवन जोधपुर (वह १९७५  से १९९२  तक १७  वर्षों तक गीता भवन के अध्यक्ष रहे), विश्व संस्कृत प्रतिष्ठान, उम्मेद पार्क में भगवान शिव मंदिर और शिक्षा प्रचार संघ से जुड़े रहे हैं।

अगस्त १९८९ में, जोधपुर के नागरिकों ने श्री कान सिंह परिहार को समाज के लिए उनकी आजीवन उपलब्धियों और अनुकरणीय सेवाओं के लिए सम्मानित करने के लिए एक भव्य समारोह का आयोजन किया। समारोह की अध्यक्षता जोधपुर के महाराजा श्री गजसिंह जी ने की। यूनाइटेड किंगडम के उच्चायुक्त और न्यायविद डॉ. एल. एम. सिंघवी मुख्य अतिथि थे। श्री परिहार को "विधी रत्नाकर" (द ज्वेल ऑफ लॉ) की उपाधि से सम्मानित किया गया और उनके सम्मान में एक स्मरणोत्सव  पुस्तक प्रकाशित की गई। वे अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी, मारवाड़ी और कुछ अन्य भाषाओं में बहुत धाराप्रवाह थे, लेकिन वे १९५०  से हमेशा मारवाड़ी (राजस्थानी) भाषा की वकालत कर रहे थे।

श्री कान सिंह जी परिहार का स्वर्गवास ९८  वर्ष की आयु में २८  अक्टूबर २०११ में  व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला देवी जी का स्वर्गवास ९० वर्ष की आयु में ७  दिसंबर २०१२  में जोधपुर में हुआ।

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