दिष्टकारी

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कुछ आधुनिक दिष्टकारी, चित्र में + और - दिखायी दे रहे हैं जो डीसी आउटपुट के धनात्मक और ऋणात्मक सिरे हैं। अन्य सिरे, ए.सी. इनपुट के हैं।

दिष्टकारी या ऋजुकारी या रेक्टिफायर (rectifier) ऐसी युक्ति है जो आवर्ती धारा (alternating current या AC) को दिष्टधारा (DC) में बदलने का कार्य करती है। अर्थात रेक्टिफायर, ए.सी. से डी.सी. परिवर्तक है। दिष्टकारी बहुत उपयोगी है क्योंकि आजकल के बहुत से उपकरण (जैसे, रेडियो, टीवी, माइक्रोवेव भट्ठी आदि) डीसी से ही चलते हैं जबकि बाहर से उन्हें ए-सी ही दी जाती है। दिष्टकारी बनाने के लिये ठोस अवस्था डायोड (जैस, सिलिकॉन डायोड), निर्वात्-ट्यूब डायोड, मर्करी-आर्क-वाल्व, सेलेनियम डायोड और एस.सी.आर. आदि प्रयोग किये जाते हैं। अर्धचालक डायोड के आने के पहले निर्वात-नलिका डायोड या कॉपर-ऑक्साइड या सेलेनिय-स्टैक दिष्टकारी प्रयोग में आते थे।

दिष्टकारी के कार्य के उल्टा कार्य (अर्थात डीसी को एसी में बदलना) करने वाली युक्ति को इन्वर्टर (अर्थात उल्टा करने वाला) कहते हैं।

विभिन्न प्रकार के दिष्टकारी

प्रायः सभी दिष्टकारी एक या अधिक डायोडों को विशेष क्रम में जोडकर बनाये जाते हैं। अधिक डायोड के प्रयोग से प्रायः डीसी अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध होती है अर्थात इसमें (रिपिल कम होती है)

अर्ध-तरंग दिष्टकारी (Half-wave rectification)

इस तरह के दिष्टकारी में ए-सी का आधा भाग (या तो धनात्मक या ऋणात्मक हिस्सा) ही लोड में भेजा जाता है जबकि बाकी आधा हिस्सा लोड में जाने से रोक (ब्लॉक) दिया जाता है। यह बहुत कम शक्ति के आउटपुट के लिये ही प्रयोग में लिया जाता है, अधिक शक्ति के लिये नहीं। क्योंकि यह बहुत कम दक्षता से विद्युत-शक्ति का हस्तान्तरण (सोर्स से लोड को) करता है। एक फेज के परिपथों में हाफ-वेव रेक्टिफायर केवल एक डायोड का इस्तेमाल करके बनाया जा सकता है। (चित्र देखिये)। तीन-फेजी सप्लाई में इसके लिये तीन डायोड लगते हैं।

वोल्टेज रेगुलेशन = अच्छा

एवरेज वोल्टेज = वी मैक्स/ पाई

औसत धारा = आई मैक्स/ पाई

आरएमएस वोल्टेज या प्रभावी वोल्टेज = वी मैक्सिमम / 2

आरएमएस धारा या प्रभावी धारा = आई मैक्सिमम /2

दक्षता = 40. 6%

रिपल फैक्टर या उर्मिका गुणांक = 1.2 1%

फॉर्म फैक्टर या आकृति गुणांक या रूपक * = 1.57

Peak factor = 2

TUF = 0.286

PIV = Vmax

Output frequency = f_in

पूर्ण-तरंग दिष्टकारी (Full-wave rectification)

सेतु ऋजुकारी, संधारित्र फिल्टर, लोड, लोड का वोल्टेज

इस तरह का दिष्टकारी इनपुट एसी के दोनो भागों (धनात्मक व ऋणात्मक) को लोड में भेजता है और लोड में एक ही दिशा में धारा सुनिश्चित करता है। स्पष्ट है कि यह अर्ध-तरंग दिष्टकारी से अधिक दक्ष है।

एक-फेज परिपथों में दो तरह के पूर्ण-तरंग दिष्टकारी प्रयोग किये जाते हैं:

  • १) ब्रिज रेक्टिफायर
  • २) सेन्टर-टैप रेक्टिफायर

सेतु-रेक्टिफायर (bridge rectifier)

सेन्टर-टैप रेक्टिफायर के लिये दो ही डायोड लगाने पडते हैं किन्तु इसके लिये एक सेन्टर-टैप युक्त ट्रांसफार्मर की जरुरत पड़ती है Centre tap / midpoint rectifier- सप्लाई के पॉजिटिव साइकिल के दौरान डायोड D1 फारवर्ड बायस हो जाता है और बंद कुंजी की तरह व्यवहार करता है इस डायोड D2 रिवर्स बाय सो जाता है तथा खुली कुंजी की तरह व्यवहार करता है सप्लाई के नेगेटिव साइकिल के दौरान डायोड D2 फारवर्ड बायस सो जाता है बंद कुंजी की तरह व्यवहार करता है इस दौरान डायोड D1 रिवर्स बायस हो जाता है तथा खुली कुंजी की तरह व्यवहार करता है! Average voltage =2Vmax/ fhai एवरेज करंट = दो आईमैक्स /

६-पल्स तथा बहु-पल्स ऋजुकारी

तीन-फेजी १२-पल्स वाला नियंत्रित सेतु दिष्टकारी जिसमें SCR का उपयोग हुआ है।

जब अधिक शक्ति का डीसी की आवश्यक होती है तो एक-फेजी विद्युत शक्ति के बजाय तीन-फेजी एसी को रेक्टिफाई करना अधिक उपयुक्त रहता है। इसके लिये ६-डायोड लगते हैं। उदाहरण के लिये आजकल के आटोमोबाइल्स (जैसे कार) में ३-फेजी अल्टरनेटर के साथ ३-फेजी ब्रिज दिष्टकारी लगा होता है जो बैटरी को चार्ज करने के लिये डीसी बनाता है।

तीन-फेजी ६-पल्स वाला सेतु दिष्टकारी
तीन-फेजी ६-पल्स दिष्टकारी के आउटपुट
गाड़ियों में अल्टरनेटर के साथ प्रयुक्त दिष्टकारी। इसमें 6 डायोड स्पष्ट दिख रहे हैं।

वोल्टेज द्विगुणक

उच्च वोल्टता (कई हजार वोल्ट) की डीसी प्राप्त करने के लिए वोल्टता-द्विगुणक (वोल्टेज डबलर) या 'वोल्टेज मल्टीप्लायर' का उप्योग किया जाता है। इससे कम ए.सी। वोल्टेज से भी बहुत अधिक डीसी वोल्टेज बनाने में मदद मिलती है।

वोल्टता द्विगुणक
वोल्टता बहुगुणक
यह दिष्टकारी दो तरह से काम कर सकता है।
स्विच के खुला होने पर यह सेतु-दिष्टकारी की तरह काम करता है,
जबकि स्विच के बन्द होने पर वोल्टता द्विगुणक (वोल्टेज डबलर) का

पी.डब्ल्यू.एम. ऋजुकारी

पी.डब्ल्यू.एम. ऋजुकारी (PWM Rectifier), इनपुट एसी को बहुत अधिक आवृत्ति पर बन्द-चालू करके डीसी बनाते हैं। इससे आउटपुट डीसी में रिपल की आवृत्ति बहुत अधिक (जैसे १०० किलोहर्ट्ज) होती है और इनपुट एसी से जो धारा ली जाती है वह भी लगभग साइन-आकार की होती है (हार्मोनिक्स बहुत कम होते हैं) । आजकल अधिक आवृत्ति पर बन्द-चालू किए जा सकने वाले मॉसफेट और आईजीबीटी आदि स्विचों की सुलभता के कारण इस प्रकार के ऋजुकारी उपयोग में आने लगे हैं।

ऋजुकारियों के आउटपुट वोल्टेज और रिपल आवृत्ति

250 kV and 2000 A वाला एक नियंत्रित दिष्टकारी; इसके प्रत्येक टॉवर में 96 SCR लगे हैं।
  • (१) अर्ध-तरंग ऋजुकारी - Vdc = 0.45 Vrms
  • (२) पूर्ण-तरंग सेतु ऋजुकारी (२-पल्स) -- Vdc = 0.90 Vrms (लोड की धारा सतत मानकर)
  • (३) तीन-फेजी सेतु ऋजुकारी (६-पल्स) -- Vdc = 1.35 Vrms (लोड की धारा सतत मानते हुए, यहाँ Vrms लाइन-से-लाइन वोल्टेज का rms है।)
  • (४) SCR द्वारा फायरिंग-कोण नियंत्रित तीन-फेजी सेतु ऋजुकारी (६-पल्स) -- Vdc = (1.35 Vrms) Cos x (x फायरिंग-कोण है।)
आउट्पुट डीसी में उपस्थित रिपल की आवृत्ति
  • (१) अर्ध-तरंग ऋजुकारी -- f0
  • (२) पूर्ण-तरंग ऋजुकारी तथा पूर्ण-तरंग सेतु ऋजुकारी -- 2f0
  • (३) तीन-फेजी सेतु ऋजुकारी -- 6f0

जिस ऋजुकारी के आउटपुट में रिपल की आवृत्ति अधिक होती है, उसको फिल्टर करने के लिए आवश्यक L और C का मान कम लगेगा (आकार छोटा होगा)। इसी लिए अधिक शक्ति की डीसी बनाने के लिए १२-पल्स, २४-पल्स या ४८-पल्स के ऋजुकारी उपयोग में लाये जाते हैं।

उपयोग

दिष्टकारी एक अत्यन्त उपयोगी विद्युत-परिवर्तक है। इसके कुछ उपयोग निम्नलिखित हैं-

  • बैटरी को आवेशित (चार्ज) करने के लिए
  • पीसी, रेडियो, टीवी, तथा बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों को चलाने के लिए डीसी की आवश्यकता होती है।

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ऋजुकरण की पुरानी प्रौद्योगिकी

दो एनोड से युक्त एक ही निर्वात-नलिका का प्रयोग करके बना पूर्ण-तरंग-दिष्टकारी

अर्धचालक प्रौद्योगिकी के आने के पहले, दिष्टकारी बनाने के लिये निर्वात-नलिका डायोड, मर्करी-आर्क-वाल्व, कॉपर-ऑक्साइड या सेलेनिय-स्टैक दिष्टकारी प्रयोग में आते थे।

इन्हें भी देखें