मिट्टी की बारात (काव्य)

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'मिट्टी की बारात' शिवमंगल सिंह 'सुमन'कृत हिंदी साहित्य का निरालाकृत 'सरोज-स्मृति' के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध एवं बड़ा 'शोकगीत' है। वर्ष 1974 के साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित 'मिट्टी की बारात' हिंदी के ओजस्वी कवि डॉ– शिवमंगल सिंह सुमन का सातवाँ कविता–संग्रह है, सूरज के सातवें घोड़े की तरह । इसमें सन् 1961 से 1970 तक की अधिकांश रचनाएँ संग्रहीत हैं, जो इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं कि प्रशासन की एकरसता के बावजूद सुमनजी अपने रचनाकार का धर्म पूरी मुस्तैदी से निबाहते रहे हैं। मिट्टी की बारात एक काव्य–रूपक है, जिसके आधार पर इस संग्रह का नामकरण किया गया है। यह रूपक जवाहरलाल नेहरू और कमला के फूलों (अंतिम अवशेषों) के सम्मिलित प्रयाण की गौरव–गाथा है। यह इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना ही कही जायेगी कि किसी महापुरुष ने अपनी प्रियतमा के अंतिम अवशेष इसलिए सुरक्षित रख छोड़े हों कि संसार से अंतिम यात्रा के समय दोनों की मिट्टी साथ–साथ महाप्रयाण करेगी, साथ–साथ गंगा में प्रवाहित होगी और अविराम जीवन–क्रम में साथ–साथ सिन्धु में लय होगी। हमारे युग की एक ज्वलंत घटना के आधार पर कवि ने यह रूपक प्रस्तुत किया है, परंतु प्रतीक के रूप में मानव–संवेदना की इस भूमिका को सार्वकालिक और सार्वभौमिक ही समझना चाहिए। पूरे संग्रह के लिए मिटटी की बारात शीर्षक एक प्रतीक है- ऐसा प्रतीक जो संग्रह की सम्पूर्ण कविताओं का प्रतिनिधित्व करता है। इन कविताओं में जीवन की धड़कन है, मिटटी की सोंधी गंध है, जो पढनेवाले की चेतना को अनायास छू लेती है। ये कविताएँ मिटटी की महिमा का गीत हैं, जिनमें कवि की प्रतिबद्धता, सांस्कृतिक दृष्टि और प्रगतिशीलता मुखरित हुई है।

मिट्टी की बारात शिवमंगल सिंह सुमन की रचना है।