चकराता

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Chakrata
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चकराता में टाइगर फ़ाल्स
चकराता में टाइगर फ़ाल्स
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ज़िलादेहरादून ज़िला
प्रान्तउत्तराखण्ड
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ऊँचाईसाँचा:infobox settlement/lengthdisp
जनसंख्या (2011)
 • कुल५,११७
 • घनत्वसाँचा:infobox settlement/densdisp
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी, गढ़वाली

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चकराता (Chakrata) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के देहरादून ज़िले में स्थित एक नगर है। 2118 मीटर (6949 फुट) पर बसा यह स्थान यह एक पर्वतीय पर्यटक स्थल होने के साथ-साथ एक छावनी भी है।[१][२][३]

विवरण

चकराता अपने शांत वातावरण और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के लिए जाना जाता है। यह नगर देहरादून 98 किलोमीटर दूर है। चकराता प्रकृति प्रेमियों और ट्रैकिंग में रुचि लेने वालों के लिए एकदम उपयुक्त स्थान है। यहाँ के सदाबहार शंकुवनों में दूर तक पैदल चलने का अपना ही मजा है। चकराता में दूर-दूर फैले घने जंगलों में जौनसारी जनजाति के आकर्षक गांव हैं। यह नगर उत्तर पश्चिम उत्तराखंड के जौनसर बावर क्षेत्र के अंतर्गत आता है। चकराता का स्थापना कर्नल ह्यूम और उनके सहयोगी अधिकारियों ने की थी। उनका सम्बंध ब्रिटिश सेना के 55 रेजिमेंट से था। यहां के वातावरण को देखते हुए अंग्रेजों ने इस स्थान को समर आर्मी बेस के रूप में इस्तेमाल किया। वर्तमान में यहां सेना के जवानों को कमांडों की ट्रैनिंग दी जाती है।

पर्यटन

टाइगर फॉल

चकराता से 5 किमी पैदल चलने पर 50 मीटर ऊंचा टाइगर फॉल है। उंचें जगह से एक छोटे तालाब में गिरता हुआ झरने का दृश्‍य बडा खूबसूरत लगता है। समुद्र तल से 1395 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह झरना चकराता के उत्तर पूर्व में है।

लाखामंडल

मसूरी-यमुनोत्री रोड़ पर स्थित लाखामंडल का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। लाखामंडल यमुना नदी के उत्तरी छोर पर यमुना नदी के तट पर स्थित बर्नीगाड़ नामक स्थान से 3-4 किलोमीटर की दूरी पर है।[४] लाखामंडल समुद्र तल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है, लाखामण्डल चकराता से 60 किमी, मसूरी से 75 वह देहरादून से 128 किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ है।[५] लाखमंडल विशेषरूप से महाभारत काल से संबधित माना जाता है। यहां पुरातत्व विभाग द्वारा करवायी गयी खुदाई में लाखों मूर्तियों के अवशेष मिले है, यह भी एक कारण है की इसका नाम लाखामंडल पड़ा। माना जाता है कि कौरवों ने पाड़ंवों को जलाने के लिए लाक्षागृह बनवाया था, और जहां उन्हें माता कुंती के साथ जिन्दा जलाने का षड़यंत्र रचा था। लाखामंडल में वह गुफा आज भी मौजूद है, जिससे होकर पांडव सकुशल बाहर आये थे, और इसके बाद पांडव द्वारा चक्रनगरी में एक महीने तक निवास किया गया था, जिसे आज चकराता नाम से जाना जाता है।[६] यहां पांडवों, परशुराम, केदार और दिवा को समर्पित अनेक मंदिर भी बने हुए हैं। भीम और अर्जुन की आकृति को यहां बेहद खूबसूरती से पत्थर पर उकेरा गया है।

मोईगड झरना

देहरादून से 69 किलोमीटर दूर दिल्ली-यमुनोत्री मार्ग पर यह शांत और स्वच्छ झरना स्थित है। यमुनोत्री जाते वक्त यहां स्नान करके तरोताजा हुआ जा सकता है।

कानासर

ऊंची पहाड़ियों और घने बरसाती वनों से घिरा यह स्थान पर्यटकों के लिए आदर्श जगह है। यहां ठहरने के लिए फोरेस्ट रेस्ट हाउस की व्यवस्था है जिसके चारों ओर के नजारे काफी आर्कषक हैं। कानासर चकराता से 26 किलोमीटर दूर चकराता-ट्यूनी मार्ग पर स्थित है।

रामताल गार्डन

चकराता से 9 किलोमीटरदूर चकराता-मसूरी मार्ग पर रामताल गार्डन है। यह गार्डन 30 मीटर लंबा और 20 मीटर चौड़ा है। सुंदर और हरा भरा यह गार्डन पिकनिक मनाने के लिए बेहतरीन जगह है।

देव वन

चकराता से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान घने जंगलों से घिरा हुआ है। देव वन समुद्र तल से 9500 फीट की ऊंचाई पर है। यहां से हिमालय की विशाल पर्वत श्रृंखलाएं देखी जा सकतीं हैं।

आवागमन

  • वायुमार्ग - नजदीकी एयरपोर्ट जौली ग्रान्ट एयरपोर्ट है जो देहरादून से 25 किलोमीटर दूर स्थित है। यह एयरपोर्ट चकराता से तकरीबन 123 किलोमीटर दूर है। चकराता जाने के लिए यहां से बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं।
  • रेलमार्ग - देहरादून रेलवे स्टेशन से चकराता राज्य परिवहन या निजी वाहन के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।
  • सड़क मार्ग - मसूरी से चकराता जाने के लिए राज्य राजमार्ग से केम्पटी फॉल, यमुना पुल और लखवाड़ होते हुए चकराता पहुंचा जा सकता है। देहरादून से राष्ट्रीय राजमार्ग 72 से हरबर्टपुर, राष्ट्रीय राजमार्ग 123 से कालसी और वहां से राज्य मार्ग की सड़क के माध्यम से चकराता पहुंचा जा सकता है।

भ्रमण समय

मार्च से जून और अक्टूबर से दिसंबर में यहां जाना उपयुक्त होगा। जून के अंत और सिंतबर के मध्य यहां बरसात होती है। सर्दियों में यहां बहुत ठंड पड़ती है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियां

सन्दर्भ

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  2. https://travelsunlife.com/chakrata-all-tourist-places-in-hindi/
  3. "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994
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