परती परिकथा

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लुआ त्रुटि: expandTemplate: template "italic title" does not exist।साँचा:template other परती परिकथा एक उपन्यास है जिसके रचयिता फणीश्वर नाथ रेणु हैं। मैला आँचल के बाद यह रेणु का दूसरा आंचलिक उपन्यास है। इस उपन्यास के साथ ही हिंदी साहित्य जगत दो भागों में विभक्त हो गया: पहला वर्ग तो इसको मैला आँचल से भी बेहतर उपन्यास मानता था, वहीँ, दूसरा वर्ग इसे उपन्यास ही नहीं मानता था। सच में अगर उपन्यास के पारंपरिक मानकों से देखा जाये तो परती परिकथा में काफी अलगाव दिखेगा। यह मैला आँचल जैसा भी एकरेखीय धारा में नहीं चलता, वरन यह तो देश-काल का अतिक्रमण कर एक ही समय में सारे काल को प्रस्तुत और अप्रस्तुत दोनों करता है। यह जितना दिखाता है उससे भी ज्यादा छिपाता है। कभी यह पाठकों की परीक्षा लेता है तो कभी यह उसे बिलकुल भौचक ही कर देता है।साँचा:cn

जिस प्रकार मैला आँचल में पूरा का पूरा अंचल ही नायक था उसी प्रकार यहाँ भी नायकत्व किसी खास पात्र की बजाय अंचल को ही माना जायेगा किन्तु यहाँ पर कुछ पात्र जैसेकि-जीतेन्द्र मिश्र को नायकत्व के करीब माना जा सकता है। या यूँ कहें कि आंचलिकता को धारण करते हुए भी इस कहानी में मिसर परिवार ही केंद्रीय तत्त्व है।साँचा:cn

इसमें पारनपुर गांव कथा के केंद्र में है। गांव में जातियों और उपजातियों की स्थिति वैसे ही है। विभिन्न सरकारी योजनाओं, ग्राम समाज सुधार और विकास योजनाएं, जमींदारी उन्मूलन, लैंड सर्वे ऑपरेशन, कोसी योजना आदि के प्रति लोगों में अपार उत्साह है। उपन्यास का नायक जितेंद्र जित्तन अपने निजी अनुभव से राजनीति की कटुता और षड़यंत्र को बुरा समझता है और सदा उससे दूर रहता है, लेखक ने इसे ही एक आदर्श स्थिति मानकर प्रस्तुत किया है। परती परिकथा के कथा सूत्र जित्तन और उसके पिता शिवेंद्र नाथ मिश्र से जुड़कर ग्राम समाज के प्रतिनिधि अंकन को एक रोचक प्रेम कथा में परिवर्तित कर देते हैं। पूरी कथा को शिवेंद्र तथा ताजमनी और जीत्तन तथा इरावती की प्रेम कथा में सीमित कर दिया गया है।


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