मंगल की जलवायु
मंगल की जलवायु सदियों से वैज्ञानिक जिज्ञासा का विषय रहा है जिसका एक कारण यह भी है कि पृथ्वी से दूरदर्शी की सहायता से जिस स्थलीय ग्रह की सतह को अच्छे से प्रेक्षित किया जा सकता है, वह एकमात्र ग्रह मंगल है।
यद्यपि मंगल ग्रह पृथ्वी से छोटा है, इसका द्रव्यामन पृथ्वी के द्रव्यमान का 11% है और सूर्य से पृथ्वी की तुलना में 50% दूरी पर है लेकिन इसकी जलवायु पृथ्वी के साथ विभिन्न समानतायें रखता है जैसे ध्रुवीय बर्फ टोपी, मौसमी परिवर्तन और प्रेक्षणीय मौसम चक्र। इसने पुरातत्वविज्ञानियों और जलवायु विज्ञानियों के अनवरत अध्ययन के लिए आकर्षित करके रखा। चूँकि मंगल की जलवायु आवर्ती हिमयुगों सहित पृथ्वी से विभिन्न समान्नतायें रखता है लेकिन इसमें महत्त्वपूर्ण अन्तर भी हैं जैसे निम्न तापीय जड़त्व। मंगल के वायुमंडल की मापक्रम ऊंचाई लगभग साँचा:convert है जो पृथ्वी से 60% अधिक है। ग्रह पर कभी जीवन रहा है या नहीं यह इसकी जलवायु के लिए काफ़ी प्रासंगिक प्रश्न रहा है। इसकी जलवायु को नासा के एक प्रेक्षण ने समाचारों में कुछ रुचिकर बनाया जिसके अनुसार ध्रुवों के निकट क्षेत्र में उर्ध्वपातन प्रेक्षित किया गया और इसे समानान्तर ग्लोबल वार्मिंग के रूप में देखा गया[१] यद्यपि मंगल का औसत तापमान हाल ही के दशकों में ठंडा पाया गया है और इसकी ध्रुवीय बर्फ को बढ़ता हुआ पाया जा रहा है।
मंगल का अध्ययन 17वीं सदी से ही पृथ्वी पर स्थित उपकरणों से किया जा रहा है लेकिन 1960 के दशक के मध्य से मंगल का अन्वेषण आरम्भ हुआ जिसमें इसके लघु परास में प्रेक्षण सम्भव हो पाया। निकट उड़ान और कक्षीय अंतरिक्षयान कुछ अधिक आँकड़े उपलब्ध करवाये जबकि लैंडर (भूमि पर उतरने वाले उपकरण) और रोवर (सतह पर चलने वाले रोबोट) ने सीधे वायुमंडलीय सम्भावनाओं का मापन किया। पृथ्वी की कक्षा के कुछ उन्नत उपकरण आज अनवरत आँकड़े उपलब्ध करवा रहे हैं जिससे वहाँ की मौसमी घटनाओं को विस्तृत रूप से अध्ययन किया जा रहा है।
मंगल के लिए उड़ान भरने वाला पहला प्रयोग मेरिनर 4 था जो 1965 को पहुँचा। इसका दो दिन का लघु (जुलाई 14–15, 1965) प्रेक्षण समय रहा जिसमें इसके अपरिष्कृत उपकरणों ने मंगल की जलवायु के बारे में थोड़ा सा अध्ययन करने का मौका दिया। बाद में मैरीनर 6 और मैरीनर 7 ने मंगल की जलवायु के बारे में मूलभूत सूचना उपलब्ध करवायी। आँकड़ो पर आधारित जलवायु का अध्ययन 1975 में विकिंग प्रोग्राम के लैंडर से आरम्भ हुआ जो मार्स रिकोनैसेन्स ऑर्बिटर जैसे अनुसंधान के साथ जारी है।
यह प्रेक्षण कार्य मार्स जनरल सर्क्यूलेशन मॉडल (एमजीसीएम) नामक वैज्ञानिक कंप्यूटर सिम्यूलेशन की सहायता से पूर्ण किया जाता है।[२] एमजीसीएम की विभिन्न अलग-अलग पुनर्रावृत्ति ने मंगल की जलवायु के बारे में वृहत समझ विकसित की।
जलवायु का ऐतिहासिक अवलोकन
जियाकोमो माराल्डी ने 1704 में ज्ञात किया कि दक्षिणी बर्फ़ क्षेत्र का केन्द्र मंगल की घूर्णन अक्ष पर स्थित नहीं है।[३] दूसरी तरफ के प्रेक्षण में वर्ष 1719 में माराल्डी ने पाया कि दोनों ध्रुवीय बर्फ टोपियाँ अपनी सीमा में सामयिक परिवर्तनशीलता रखता है।
विलियम हरशॅल वो प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने वर्ष 1784 के अपने एक पेपर में मंगल के वायुमंडल के निम्न घनत्व का उल्लेख किया। इस पेपर का शीर्षक मंगल ग्रह के ध्रुवीय क्षेत्र, अक्ष का झुकाव, इसके ध्रुवों की स्थिति और इसकी गोलाकार आकृति से सम्बंधित था जिसमें इसके वास्तविक व्यास और वायुमंडल का भी अनुमान था। हरशॅल ने मंगल पर दो तारों की चमक के निष्प्रभावी रहने को इसपर कमजोर वायुमंडल होने के रूप में उल्लिखीत किया था।[३]
ऑनर फ़्लैगरग्यूज़ ने वर्ष 1809 में मंगल की सतह पर "पीले बादलों" की खोज की जो मंगल पर धूल के चक्रवातों का पहला प्रेक्षण था।[४] उन्होंने वर्ष 1813 में मंगल के ग्रीष्मकालीन समय में ध्रुवीय बर्फ के कम होने को भी प्रेक्षित किया। इससे उन्होंने यह परिणाम निकाला कि मंगल पृथ्वी से गर्म हो सकता है जो कि एक गलत परिणाम था।
मंगल ग्रह का पुराजलवायु विज्ञान
मंगल ग्रह जे भूगर्भिक समय के लिए आज दो तरह की तिथि-निर्धारण विधियाँ उपलब्ध हैं। इनमें पहली विधि क्रेटर घनत्व पर आधारित है और इसकी तीन आयु हैं: नोएकिआई, हेस्पेरियन और एमोज़ोनियन। दूसरा खनिजीय समयरेखा है जिसमें भी तीन आयु निर्धारित हैं: फिलोसियन, थीकियन और सिडेरिकियन।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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