आई माता

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>रोहित साव27 द्वारा परिवर्तित १९:०५, २८ मई २०२१ का अवतरण (टैग {{सिर्फ़ कहानी}} और {{निबंध}} टैग ({{Multiple issues}}) में लेख में जोड़ा जा रहा (ट्विंकल))
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

संवत 1472 में गुजरात के दांता राज्य अम्बापुर में श्री बीकाजी डाबी (राजपूत) रहते थे। बीकाजी डाबी जोगमाया के परम भक्त थे। बीकाजी डाबी के विवाह के 10-12 वर्ष बीतने पर भी सन्तान सुख की प्राप्ति नहीं हुई थी। अतः निःसतांन होने के कारण वे अत्यन्त दुःखी थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर जोगमाया ने उनको स्वप्न में दर्षन दिये और कहा बीका तुम्हारी भक्ति पुर्ण है वरदान मांग। बीकाजी ने सतांन प्राप्ति का वरदान मांगा, इस पर जोगमाया ने प्रसन्न होकर आर्षीवाद दिया कि मै तुम्हारे यहां अवतार लेकर तुम्हारा एवं जनसाधारण का दुःख दूर करुंगी। विक्रम संवत् 1472 भाद्रपद ष्षुक्ल द्वितिय वार शनिवार की ष्षुभ प्रातःवेला में एक नवजात कन्या बीकाजी डाबी को महकते हरे-भरे उद्यान में मिली। जिसका दिव्य तेज अनुपम था। बीकाजी एवं उनकी पत्नी प्रसन्न हुए एवं अपने आप को भग्यषाली समझने लगे कि मां के कहे अनुसार वरदान/वचन सिद्ध हुआ। बीकाजी को विष्वास हो गया कि मां जगदम्बा कन्या रुप में उनके घर पधारी (अवतार लिया) है। पति-पत्नि दोनों ही कन्या का पालन- पोषण करने लगे। खुषी-खुषी दिन बीतने लगे। एक दि नही कन्या जोषीजी को नामकरण करने के लिए बुलाया गया। जोषीजी ने कुण्डली बनाई तो आष्चर्यचकित रह गये। उन्होने कहा ‘‘यह कन्या साक्षात् मां जगदम्बा का रुप है तथा बड़े ही प्यार से कन्या का नाम ‘‘जीजी’’ रखा। अपने पिता की भांति जीजी की भी ईष्वर भक्ति में गहरी आस्था थी। जीजी बाल्यकाल से ही प्रखर बुद्धि एवं रुप लावण्य में अद्वितिय थीं। वह नित्य अपने पिता के साथ अम्बा मन्दिर दर्षन हेतु जाती थी। उनकी धर्म में बड़ी रुची थी। जीजी में असीम बुद्विबल व तेज था। वह अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलती और प्रत्येक का दुःख दर्द सुनकर सांत्वना देती थी। जीजी (श्री आईमाता जी) के बाल्यकाल के चमत्कार बचपन में ही जीजी ने अपने चमत्कारिक व देवी स्वरुप को प्रकट करना आरम्भ कर दिया था। एक समय की बात है अम्बापुर के षिव मंदिर में षिवरात्री पर्व मनाया जा रहा था। ऐसे में षिव मंदिर के पास ही एक भंयकर नाग दिखाई दिया। जिससे लोगो में भगदड़ मच गई । सांप के भय से लोग चिलाने लगे ‘भागो-भागो’ काला नाग आया सारे लोगो को इस तरह भयभीत होकर भगते देखकर जीजी ने कहा ठहरो। नाग तो देवता तुल्य है। यदि इन्हें छेड़ा नहीं जाये तो ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते है। आप सब भय को छोड़कर मन में धैर्य और साहस को धारण करो। फिर जीजी ने हाथ जोड़कर नाग देवता से विनती की है-कि नाग देवता आप अपने यथा स्थान पर पधारकर लोगों के मन में समाए हुए भय को दूर करो। यही आपसे मेरी प्रार्थना है। जीजी की वाणी में दिव्य मिठास,जादुई ष्षक्ति व श्रद्धा थी। जीजी की विनती सुनकर नाग देवता अपने यथा स्थान की ओर लौटते हुए एकदम अदृष्य हो गए। सभी लोग जीजी के धैर्य, साहस और चमत्कार की मुक्त कठं से प्रषंसा करने लगे और जीजी के पास जाकर नमन करके चमत्कार की चर्चा करते हुए अपने-अपने घरों को लौट गए। ‘जीजी’ के नित नये चमत्कार लोगों के मन में यह विष्वास पैदा करने लगा कि यह बालिका कोई साधारण बालिका न होकर मां दुर्गा का ही साक्षात् अवतार है। स्त्री पुरुष ‘जीजी’ को श्रद्धा पुर्वक नमन करने लगे। वर्षा ऋतु का मौसम था। अचानक अम्बापुर में खबर फैली कि एक बैल आपे से बाहर होकर पागल की भांति भागा दौड़ा आ रहा है तथा लोगों की जान लेने पर उतारु है। वह पागल बना, लोगों पर झपट रहा था। अम्बापुर में भय का वातावरण छा गया। भयभीत लोगों ने अपने घरों के दरवाजे बन्द कर दिये ऐसे विपत्ति के समय में जीजी कैसे चुप रह सकती थी लोगों के लाख मना करने पर भी बैल को काबू करने के लिए निडर होकर उसके पास गई। जीजी की दिव्य दृष्टि का तेज एवं हाथों में ऐसा चमत्कार था, कि बैल को छूते ही वह ष्षान्त हो गया और सिर झुकाकर अपने रास्ते पर चल पड़ा। उपस्थित जन समुदाय जीजी की वाह-वाह करने लगे जीजी तो प्रेम,स्नेह,दया और सन्तोष की प्रतिमूर्ति थी। इस कारण क्रूर व हिंसक जीव भी उनके वष में थे। बाल्यकाल में जीजी के ऐसे चमत्कार देखकर लोग नमन करने लगे तथा उनके चमत्कारों की बातें सर्वत्र फैलने लगी। जीजी ने आजीवन ब्रहाचर्य रहने का दृढ संकल्प किया था। जीजी (श्री आईमाता जी) का बादषाह को चमत्कार जीजी के अद्वितीय रुप एवं लावण्य की चर्चा मांडू (मांडल) के बादषाह महमूद खिलजी के कानों तक पहुंची जीजी की प्रषंसा सुनकर मन ही मन उसने ‘जीजी’ से विवाह करने का निष्चय किया। उसने अपने कनीजो को जीजी को देखने के लिए भेजा कनीजो ने आकर जीजी के रुप और लावण्य की बादषाह के समक्ष भूरि-भूरि प्रषंसा की जिससे बादषाह ‘जीजी’ को पाने के लिए और ज्यादा आतुर एवं बैचेन हो गया। बादषाह ने षीघ्र बीकाजी डाबी को मांडू बुलवाया और बोले ‘‘बीका मुझे तेरी जीजी पसंद है, मैं उससे ब्याह करना चाहता हूं।’’ बीकाजी मन ही मन क्रोध से लाल हो गए, पर मजबूर थे। उन्होने बादषाह से कहा-मगर ‘‘जीजी’’ ने तो आजीवन ब्रह्राचर्य रहने का दृढ़ संकल्प ले रखा है, वह आपके साथ षादी कैसे करेगी। तब बादषाह ने गरज कर बीकाजी से कहा बीका तुम अपनी औकात भूल रहे हो, तुम्हें मालूम नही हम मांडू के बादषाह हैं, पता है तुम्हें, तुम्हारे इन्कार का मतलब तुम्हारे परिवार का सर्वनाष। बादषाह की धमकी भरे षब्द सुनकर बीकाजी डर के मारे थर-थर कांपने लगे। लाचार होकर बीकाजी ने बादषाह से कहा एक बार मुझे जीजी को पूछने का अवसर दो,बाद में आप चाहें जैसा करना। मुरझााये चेहरे,चिन्ता में डूबे,डगमगाते कदम एवं आंसू भरी आंखों जब बीकाजी की पत्नी ने देखा,तो वे भी गहरी चिन्ता में डूब गई। साहस कर पति से पूछा, पतिदेव! आप पर ऐसी कौन सी विपत्ति आ पड़ी है,जिसके कारण आपकी यह हालत हो गयी है। तब बीकाजी ने कहा-मांडू के बादषाह ने जीजी से विवाह का प्रस्ताव भेजा है। मैं धर्म की रक्षा के खातिर आखिरी दम तक लडूंगा। भले ही माता-पिता लाख छिपायें, परन्तु जगदम्बा स्वरुप जीजी को वर्तमान तो क्या भूत-भविष्य एंव होनी-अनहोनी सब का पता था। फिर भी अनजान बनकर माता एवं पिता से उनकी चिन्ता का कारण पूछा-तब बीकाजी ने बादषाह का प्रस्ताव कह सुनाया। परन्तुं जीजी बोली-इसमें चिन्ता की क्या बात है पिताजी? मैं तो इसी दिन के इन्तजार में थी, आप तुरन्त बादषाह को विवाह की तैयारियां करने सन्देष भिजवाये, परन्तु मेरी षर्त बता देना कि ‘विवाह हिन्दू रीति-रिवाज से ही होगा और वस्त्र आभूषण षाही हरम से न भिजवाएं। बादषाह ने जीजी का षर्त सहित प्रस्ताव सुना तो फूला न समाया। वह जोर-षेार से विवाह की तैयारियां करने लगा। बीकाजी ने जीजी से विवाह की तैयारियां के बारे में पूछा जीजी ने कहा, पिताजी ! आप चिन्ता न करें,मेरे लिए एकान्त जगह पर मात्र एक कुटिया बना दें। बाद में सारी व्यवस्था मां जगदम्बा अपने आप कर देंगी। जीजी भी बडे़ उत्साह से बादषाह की बारात का इन्तजार करने लगी,क्योंकि जीजी ने अवतार ही इसी दिन के लिए लिया था,ताकि बादषाह के बढ़ते हुए अत्याचार एवं अन्याय से हिन्दू प्रजा को मुक्त करा सके। मांडू का बादषाह दूल्हा बन, हाथी पर बैठकर अपने सारे लाव-लष्कर के साथ षाही ठाठ-बाठ से बारात लेकर अम्बापुर आ पहुंचा। जीजी ने बारात के ठहरने की उत्तम व्यवस्था की। उसने अपनी कुटियां में से ही सोने व चान्दी के थाल में व्यंजन भेजकर बारात में आये हजारों लोगों को खाना खिलाया। बादषाह इस चमत्कार से आष्चर्यचकित हो गया। बादषाह ने सच्चाई जानने के लिए फकीर का वेष धारण कर कुटिया के पास पहुंचा और खिड़की से झांकने लगा। जगदम्बा स्वरुप ‘जीजी’ ने फकीर के वेष में बादषाह को पहचान लिया। जीजी ने अपना प्रचण्ड स्वरुप प्रकट किया और बादषाह को अपने त्रिषूल से नीचे गिराया। भयभीत बादषाह ‘जीजी’ के पैरों में गिरकर अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। मां जगदम्बा मुझे माफ करो और गिड़गिड़ाने लगा। तब जीजी ने कहा-बोल अत्याचारी ! क्या मुझसे षादी करेगा ? दीन दुखियों पर अत्याचार करेगा ? मूर्तियां तोडे़गा एवं मन्दिर गिरवायेगा ? हिन्दुओं से जजिया कर लेगा ? बादषाह ने भविष्य में ऐसा करने की कसम खायी एवं वचन दिया। इस तरह जीजी ने बादषाह का मान-मर्दन कर हिन्दू प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया।


नारलाई

कुछ समय गुजरात में निवास करने के बाद जीजी ने अपने पिता से आज्ञा ले मेवाड़ की ओर प्रस्थान किया। वह अपने साथ कुछ धार्मिक ग्रन्थ एवं साहित्य को एक नन्दी पर लाद कर मेवाड़ के गावं-गाव में अपने सदविचारों का प्रचार करती रही। अपने योग साधना से वृद्धा का रुप धारण किया। जीजी (श्री आईमाताजी) के नारलाई में चमत्कार 6 माह तक मेवाड़ में भ्रमण के बाद मां जीजी ने गोडवाड़ क्षेत्र में प्रवेष किया प्राचीन तीर्थ स्थान नारलाई में ‘मां जीजी’ ने सर्व प्रथम जग्गा परिहार के वहां आकर रात्रि विश्राम किया। जीजी ने अपना नन्दी ईष्वर भक्त जग्गा परिहार के घर पर एक खंूटे से बाधंकर स्वंय जैकलेष्वर महादेव मन्दिर के दर्षनार्थ पहाड़ी की चोटी पर गई। जीजी जैसे ही चोटी पर पहुंची,तब पुजारी ने मन्दिर के दरवाजे बन्द कर दिये थे तब जीजी ने पुजारी से आग्रह किया कि मैं वृद्धा हूं। बार-बार पहाड़ी पर नहीं चढ सकती। मै षिव के दर्षन करने आयी हूं। अतः तुम पुःन मन्दिर के द्वार खोल दो, मुझे दर्षन करने दो। पुजारी ने कड़कते हुए कहा, ‘अब मन्दिर के पट बन्द हो गए है,आज दर्षन नहीं हो सकते। दर्षन करने हैं तो कल आ जाना। जीजी ने बहुत समझाया,लेकिन पुजारी नहीं माना। तब जीजी ने अपने चिटिये (चिमटा) से मन्दिर के पट को छुआ। छूते ही मन्दिर के पट अपने आप खुल गये।पुजारी यह चमत्कार देखकर भौंचक्का रह गया। जैसे ही जीजी ने दूसरी तरफ अपना चिटिया घुमाया,वैसे ही पहाड़ी के बीच में एक गुफा प्रकट हो गयी,गुफा प्रकट होते ही देवी के चमत्कार से एक षिला अधर ही रह गई। जैकलेष्वर पहाड़ पर स्थित इसी गुफा में मां जीजी ने तपस्या की एवं अखण्ड ज्योत की स्थापना की जो आज तक मौजूद है। जहां आज भी केसर प्रकट होता है। ऐसा कहा जाता है कि आज भी इस गुफा के आस-पास देवी का सिंह नजर आता है। जिसे कुछ लोगों ने अपनी आंखों से देखा है। आज भी आई पंथ के डोरा बन्ध लोग विवाह के अवसर पर मौर बंध जात देते है। हर मास की चांदनी बीज को यहां भक्त मन्नत चढाने आते है। इस पावन स्थल पर प्रतिवर्ष भाद्रपद बीज को विषाल मेला लगता है। श्री आईमाता के इस मंदिर के लिए सीरवी समाज एवं सभी धर्मों के लोगों में अटूट श्रद्धा एवं आस्था दिनों दिन बढ़ रही है। जीजी (श्री आईमाताजी) द्वारा स्थापित खूंटिया देव श्री आई माता जैकलेष्वर पर्वत पर महादेवजी के दर्षन कर पुःन जग्गाजी परिहार के यहां लौटकर आई तब उन्हें ‘आई पंथ’ के बारे धर्मापदेष दिया। जग्गा परिहार के घर पर मां ने अपना नन्दी जिस खूंटे से बांधा था वह भी साधारण खुंटा न रह कर चमत्कारी खूटंा हो गया। षताब्दियां बीत जाने के पष्चात् जग्गाजी परिहार का परिवार काफी बड़ा हो गया,तो परिवार वालों ने इस घर का बटंवारा करने का तय किया। उस समय मकान के बीच स्थित खूंटे को व्यर्थ समझकर निकालने का निष्चय किया और उस स्थान को खोदना षुरु किया। आई माता के चमत्कार स्वरुप यह खूंटा जितना गहरा खोदा गया उतना खूंटा बढता गया। वहां पर पानी निकलने लगा। खूंटे को हटाने की सभी कोषिषे व्यर्थ गई और खूंटे को आंच तक नहीं आई। जग्गा परिहार के परिवार वाले डर के मारे तालाब पर स्थित संुधा माताजी के मंदिर के भोपाजी किषनसिंह जी राजपूत के पास पहुंचें बिना पूजा-धूप के ही देवी का तेज हुआ और भोपाजी ने कहा कि तुम्हारें यहां जो खूंटा है,वह ऐसा वैसा खंूटा नहीं है बल्कि आईमाताजी के द्वारा स्थापित किया हुआ है। इस खूंटे को निकालने की कोषिष भी मत करना ओर उस स्थान पर आईमाताजी का स्थान स्थापित कर पूजा अर्चना करो, उस समय परिहार परिवार के सदस्यों ने मिलकर खूंटिया आई माताजी मन्दिर का निर्माण करवाकर प्राण प्रतिष्ठा करवाई। यहां पर आज भी अखण्ड ज्योत प्रज्जवलित है और आज भी ‘खूंटिया बाबा’ के नाम से प्रसिद्ध है। मां जीजी ने कुछ महिने नारलाई में रहकर अपने उपदेषों से आस पास के लोगों को लाभान्वित किया। लोग उनके उपदेषों से प्रभावित होकर उनके डोराबन्ध अनुयायी बने और आई पंथ से जुड़ते गए।


डायलाणा

जीजी (श्री आई माताजी) के डायलाणा में चमत्कार जेठ आषाढ का महीना था सूर्य की तेज गर्मी षरीर को झुलसा रही थी। ऐसे में मां जीजी नारलाई से भयंकर गर्मी में अपने नन्दी को साथ लेकर आई पंथ के प्रचार के लिए गांव-गांव उपदेष देती घूम रही थी। मां जीजी घूमती-घूमती गांव डायलाना आ पहुंची। भंयकर गर्मी एवं प्यास लगने के कारण मां जीजी थक गई थी। वह खेतों में हल चला रहे किसान मां जीजी के पास एकत्र हो गये और उनकी कुषलक्षेम पूछी। खेतों के आस-पास कोई वृक्ष नहीं था। किसानों ने बड़ की लड़की के बने हुए अपने हलों को इकट्ठा कर मां जीजी के विश्राम के लिये छाया की। मां जीजी ने किसानों से कहा-मुझे एवं नन्दी को बड़ी प्यास लगी है। किसान बोले माताजी आपके पीने के लिए तो हमारे पास जल है,परन्तु नन्दी को पानी पिलाने बहुत दूर ले जाना पड़ेगा। क्योंकि यहां आस-पास के तालाब में पानी नहीं है। जीजी ने हंसते हुए कहा-यहां पानी की कोई कमी नहीं है। आप लोग झूंठ क्यों बोल रहे हैं? किसानों ने हाथ जोड़कर कहा, माताजी हम सच कह रहे हैं। यहां पानी की बड़ी भारी कमी है। आस-पास के कुओं एवं तालाब में पानी सूख गया है। हम बड़े दुःखी है। जीजी ने कहा नन्दी को साथ ले जाकर देखो मुझे तो तुम्हारे तालाब में खूब पानी दिखाई दे रहा है। किसानों को मां जीजी के षब्दों पर विष्वास नहीं हुआ लेकिन नन्दी को साथ लेकर पानी पिलाने गये तो देखा कि तालाब पानी से लबालब भरा हुआ था। वे खुषी से झूम उठे,वे दौड़कर मां जीजी के चरणों में प्रणाम करने लगे। जीजी के चमत्कारों के बारे में पहले से चर्चा सुन रखी थी,परन्तु डायलाणा में जीजी के चमत्कार की बात जंगल में आग की भांति षीघ्र ही सारे गांव में फैल गई। लोग मां जीजी के दर्षन करने के लिए खेत में आने लगे। किसानों ने मां जीजी को गावं में चलने की प्रार्थना की। जीजी ने कहा मैं यहीं पर रात्री विश्राम करुंगी। तुम लोग अपने घर जाओ। देर रात्री तक जीजी के उपदेष सुनकर सभी लोग अपने-अपने घर लौट गए। प्रातः जल्दी ही स्त्री-पुरुष एवं बालक मां जीजी के दर्षनार्थ उमड़ पड़े,तो उन्होंने जो चमत्कार देखा तो देखते ही आंखें खुली रह गई। जिस स्थान पर किसान लोंगो ने अपने हल खड़े कर जीजी के विश्राम के लिये छाया की थी उस स्थान पर एक बड़ा छायादार बड़ का वृक्ष खड़ा था। उस बड़ के वृक्ष पर रोहिण का भी छोटा सा पेड़ खड़ा था। सभी के मस्तक श्रद्धा पूर्वक मां जीजी के चरणों में झुक गए। डायलाणा में आज भी सदारण बेरा पर एक बड़ का वृक्ष खड़ा है। यहां पर मां जीजी द्वारा स्थापित अखण्ड ज्योत आज भी जलती है। मां जीजी ने यहां कई दिनों तक विश्राम किया एवं यहां के लोगों को अपने उपदेषों से लाभान्वित कर अपना अनुयायी बनाया।

भैसाणा

यहां प्रतिवर्ष जेठ महीने में भव्य मेला लगता है। जीजी (श्री आई माताजी) के भैंसाणा में चमत्कार श्री जीजी माता ने डायलाणा में काफी दिन रहकर अपनी यात्रा पुनः प्रारम्भ की । तब वे घूमती-घूमती भैसाणा ग्राम जा पहुंची। अपने नन्दी के साथ तालाब के पास से गुजर रही थी। तब सामने से कुछ ग्वाले अपनी भैसों को लेकर आ रहे थे तो आपस में कहने लगे देखो ! सामने एक वृद्धा कैसा स्वांग बना कर अ रही है। वे चिल्लाकर बोले ऐ डोकरी ! जरा दूर रहना कहीं हमारे जानवर को भडकायेगी। मां जीजी ने समझाया,तुम अपने जानवरों को लेकर चले जाओ वे नहीं भडकगें। फिर भी ग्वाले जीजी को भला-बुरा कहने लगे। वे ग्वाले बड़े ही अभिमानी,निर्दयी थे। लोगों की खड़ी फसलों में अपने जानवर चराना उनकी दिनचर्या थी। आस पास के गांवों के किसान उनके आंतक से दुखी थे। जीजी का अवतार तो दीन दुखियों की सहायता करने एवं अत्याचारी,अन्यायी एवं घमण्डियों का विनाष करने के लिए ही हुआ था। मां जीजी ने ग्वालों को श्राप दिया-‘‘जाओ तुम्हारी भैसें पत्थर की बन जायेंगी।’’ इतना कह कर जीजी आगे चल पड़ी। जब ग्वालों ने तालाब पर जाकर देखा तो उनकी भैसें पत्थर की हो गयी थीं। तब उन्हें चिन्ता हुई। उनमें से एक ग्वाला बोला हमनें व्यर्थ ही उस वृद्धा को छेड़ा व सताया था। हमें उस वृद्धा से माफी मांगनी चाहिए। हो सकता है,वह हमें क्षमा कर दें। नही ंतो हमारा सर्वनाष हो जायेगा। ग्वाले मां जीजी के पद चिन्हों को देखते हुए उनके पीछे भागे। वे जाकर मां जीजी के चरणों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगे-मां जीजी हमें माफ कर दो। हम पापी हैं,दोषी हैं। मां हम बर्बाद हो जायेंगे। ये हमारी आजीविका का एक मात्र सहारा है। हमारे बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे। दया करो मां। मां जीजी ने उन्हें समझाया कभी घमण्ड मत करो। कभी भी अबला,वृद्धा और जानवरों को मत सताओ। खेतों में खड़ी फसलों को कभी नुकसान मत पहुंचाओं। ग्वालों ने मां जीजी के सामने प्रण लिया एवं वचन दिया कि भविष्य में ऐसा नहीं करेंगे। फिर जीजी ने उन्हें अपना अनुयायी बनाया। मां जीजी के चमत्कारों से पत्थर बनी हुई भैसों के निषान आज भी गांव भैसाणा के तालाब पर मौजूद हैं। जीजी (श्री आईमाताजी) का राजा को चमत्कार मेवाड़ राज्य पर एक बार विपत्ति के बादल मंडराये। राणा कुम्भा के बाद उसके उत्तराधिकारी को लेकर झगड़ा षुरु हो गया। राजा रायमल भी अपनी गद्दी छोड़कर सोजत क्षेत्र में दर-दर भटक रहे थे। मां जीजी के चमत्कारों की चर्चा चारों दिषाओं में फैली हुई थी। राजा रायमल ने भी मां जीजी के चमत्कारों के बारे में सुना था। उनकी भी इच्छा हुई कि मां जीजी के दर्षन करने के लिए जाऊं। मां जीजी जहां पर भक्तों को उपदेष देती थीं वहां रायमलजी मां जीजी का आर्षीवाद लेने पधारे। जैसे ही रायमलजी मां जीजी के चरणों में झुके और प्रणाम किया तब मां जीजी ने कहा-पुत्र तुम्हारा भला हो और राजगद्दी पाओ तथा जन साधारण का भला करो। मां जीजी का आर्षीवाद सुनकर रायमल जी आष्चर्य में पड़ गये। उन्होने कहा-मां मेरा तो राज्य ही छीन लिया गया है,लोग मेरे खून के प्यासे हैं। मैं षरणागत की भांति दर-दर भटक रहा हूं। कैसे राजगद्दी मिलेगी ? धैर्य धारण करो,विष्वास करो सब ठीक होगा। तुम यहां से मेवाड़ राज्य के सांमत अपने आप आकर आपको ले जायेंगे और मेवाड़ राज्य के सिंहासन पर बैठायेंगे। रायमल ने मां को प्रणाम कर कहा आप के वचन फलीभूत हुए तो मै आपका भक्त बना रहूंगा तथा आपके उपदेषों का सदैव पालन करुंगा। रायमलजी मेवाड़ भक्त बना रहूंगा तथा आपके उपदेषों का सदैव पालन करुंगा। रायमलजी मेवाड़ प्रस्थान कर गए। वे मेवाड़ में रहने लगे। ठीक एक माह बाद मेवाड़ के सामंत पधारे और रायमलजी से बोले आप षीघ्र मेवाड़ पधार कर राजगद्दी संभालें। रायमलजी ने मेवाड़ आकर पुःन राज्य की बागडोर अपने हाथों में संभाली । वे षीध्र मां जीजी के पास पहुंचें और उनके चरणों में षीष नवाया। मां जीजी आपका यह सेवक आपकी सेवा में हाजीर है। हुक्म करें,आपकी आज्ञा का पालन करुंगा। रायमलजी को मां जीजी ने अपने पास बैठाया और अपने मुख से उपदेष देते हुए कहा-निर्भय होकर आनन्दपूर्वक राज करो। गरीबों,असहायों,अबलाओं एवं दीन दुःखियों की सेवा करो। किसानों की मदद करो झूंठ कभी मत बोलो। माता पिता की सेवा करो। यह मेरी सेवा है। राजा ने मां जीजी के सद्वचनों को ध्यानपूर्वक सुना एवं उनको अपने जीवन में अपनाने का वचन दिया। उन्होने जीजी से कहा आपकी कृपा से मुझे पुनः मेवाड़ का राज सिंहासन मिला आप मेरे राज्य में से 10 गांव भेंट स्वरुप स्वीकार करें तथा मेवाड़ पधारकर विराजें ताकि मै आपकी सेवा कर सकूं। मां जीजी ने मेवाड़ जाने का आग्रह स्वीकार कर दिया। रायमलजी मां जीजी को कुछ न कुछ भेंट सच्चे मन से देना चाह रहे थे। मेवाड़ राज्य की सीमा में डायलाणा ग्राम जहां पर मां जीजी ने बड़ प्रकट कर अखण्ड ज्योत की स्थापना की थी। इसी मन्दिर की देख रेख भाल एवं अखण्ड ज्योत की आय हेतु 500 बीघा जमीन मां जीजी को भेंट स्वरुप दी तथा रायमलजी ने वचन दिया कि मेरे वंषज जो भी राजगद्दी पर विराजमान होंगे। वो भी श्री आईमाताजी को 50 बीघा जमीन भेंट करेंगे। इस प्रकार मां जीजी ने रायमलजी को परचा देकर अपने आई पंथ का भक्त बनाया।

जीजी-पाल

जीजी (श्री आईमाताजी) का ‘‘जीजी-पाल’’ का चमत्कार मां जीजी ने सभी जगह अपना दिव्य चमत्कार देते हुए बिलोजी सीरवी (बिलावास) को मुंह मांगा वरदान देकर आगे भ्रमण करती हुई पतालियावास आई। जहां पर सीरवी जाति के लोग बड़ी संख्या में रहते थे। पतालियावास के आस पास छोटी मोटी पहाडि़यां के साथ बालू जमीन होने के कारण वर्षा के पानी के साथ मिट्टी बह जाने से भूमि पथरिली और बंजर सी हो गई थी। किसान अपने खेतों के चारों तरफ मेड़ बनाते थे लेकिन वर्षा से उनका प्रयास पल भर में ही बेकार हो जाता था। मो जीजी ने किसानों का अनुरोध स्वीकार करते हुए रात्रि विश्राम किया। किसानों ने अपना दंुःख मां जीजी को सुनाया। मां जीजी ने उनकी बात सुनकर किसानों को धैर्य दिलाया। दन्तकथा के अनुसार मां जीजी उबड़ खाबड़ रास्ते से अपने नन्दी के साथ आई तो उनकी मोजड़ी में रेत आ गई थी। एक किसान भक्त ने मोजड़ी में भरी हुई रेत को झाड़ा तो सुबह वहां पर लम्बी सी पाल बन गई। अचानक बनी पाल देखकर किसान खुषी से नाच उठे। मां जीजी के आर्षीवाद से यहां पानी की कोई समस्या नहीं रही। जीजी-पाल के अवषेष आज भी विद्यमान है।

बिलाड़ा

मां जीजी के इस दिव्य चमत्कार को आज भी लोग श्रद्धा से नमन करते हैं। जीजी (श्री आईमाताजी) का बेरा बड़ा अरट पर किसानों को चमत्कार बिलाड़ा से लगभग एक किलोमीटर दूर पष्चिम दिषा में दिवान रोहितदासजी के जोड़ जाने वाले सड़क मार्ग पर बेरा बड़ा अरट स्थित है। बेरा बड़ा अरट के किसानों ने माताजी से निवेदन किया कि मां जीजी आपकी आज्ञा हो तो हम इस बार बेरा बड़ा अरट पर ज्वार बोना चाहते है। किसानों का विनम्र निवेदन सुनकर मां जीजी ने हर्षित मन से कहा-‘किसानों भाईयों’ खेतों में बीज बोने की षुभ बेला आषाठ सुदी बीज षनिवार को प्रातः काल है। अतः आप सब अपने-अपने हल व बैलों को लेकर बेरा बड़ा अरट पर आ जाना और 100 बीघा जमीन की एक बार जुताई करके ज्वार बोना। समस्त बैलों के लिये चारा,किसान भाईयों के लिये भर पेट भोजन एवं अच्छे बीज की व्यवस्था मैं स्वंय करुंगी। माताजी के आदेषानुसार किसान अपने-अपने हल व बैलों सहित आषाठ सुदी बीज षनिवार को प्रातः काल बेरा बड़ा अरट पर पहुंच कर मां जीजी के आदेषानुसार 100 बीघा जमीन पर हल चलाकर अच्छी जुताई की। किसानों ने मां जीजी को एक छिबोलिया में सांगरी का साग व रोटियां,मुठृठी भर ज्वार और एक चारे का पुला लेकर आते हुए देखा कुछ किसानों ने मां जीजी का मजाक बनाना षुरु किया तो कुछ अचम्भित हुए। मां जीजी ने कहा आप सब अपनी अपनी झोलियां लेकर मेरे पास आओ और ज्वार का बीज ले लो। प्रत्येक किसान झोलियां लेकर आये और मां जीजी ने एक एक कर सबकी झोलियों में मुट्ठी भर ज्वार डाली,परन्तु माताजी के झोले में मुट्ठी ज्वार कम नहीं हुई। 100 बीघा खेत में बीज बोने पर भी प्रत्येक किसान के झोले में एक मुट्ठी ज्वार ज्यों की त्यों रही। तब चकित किसान एक साथ बोले जय अम्बेमैया,लीला थारी अपरम्पार है। मां जीजी ने कहा अपने झोले की एक मुट्ठी ज्वार को आप सब अपने घरों के धान के कोठार में डाल देना,सबके घरों में धान के भण्डार भरे रहेंगे और कभी भी धान की कमी नहीं होगी। फिर बैलों को चारा खिलाने की बात आई तो माताजी ने समस्त बैलों के लिए एक एक पुला घास (चारा) देना षुरु किया लेकिन माताजी के पास का एक पुला घास फिर भी बच गया। बैंलों ने भरपेट चारा खाया फिर भी एक पुला घास यूंक ा यूं बच गया। यह चमत्कार देखकर किसान दांतों तले अपनी अंगुली दबाने लगे। मेरा बड़ा अरट पर स्थित नीम के पेड़ की छाया में षान्त मुद्रा में विराजमान मां जीजी ने किसानों से कहा-अब आप समस्त लोग मेरे पास आकर बैठो और आराम से भोजन कर लो। लेकिन किसानों को षंका हुई एक छिबोलिया भर रोटियों से हमारी भूख कैसे मिटेगी ? फिर समस्त किसान बैठकर भोजन करने लगे किसानों ने आराम से भर पेट भोजन किया,परन्तु छिबालिये में रोटियां व सब्जी जितनी थी उतनी ही रही। किसानों ने मां जीजी का यह दिव्य चमत्कार देखा तो दांतों तले अंगुलियां दबाने लगे। मां जीजी द्वारा बेरा बड़ा अरट पर दिये गये दिव्य चमत्कार की चर्चा आज भी लोगों के जुबान पर हैं। जीजी (श्री आईमाताजी) भैल का इतिहास विक्रम संवत् 1521 भादवी बीज षनिवार को मां जीजी अपने नन्दी (बैल) के संग वृद्ध रुप में बिलाड़ा पधारी। बिलाड़ा आने पर ही मां जीजी का नाम आईमाताजी पड़ा। बिलाड़ा में माताजी जाणोजी राठौंड़ गवाड़ी में पधारी। जाणोजी की सेवा भाव से प्रसन्न होकर माता ने उनके खोए पुत्र माधव से मिलाया। जाणोजी की मृत्यु के बाद माधवजी दिन रात माताजी की सेवा करते और गांव-गांव घूमकर आई पंथ का प्रचार करते। जाति-पाति का भेद भाव किए बिना उन्हें माताजी का उपदेष देते और उन्हें डोरा बन्ध बनाकर ‘आई-पंथ’ में दीक्षित करते। एक बार माधवजी ने माताजी से अर्ज की मां आप मेरे साथ घूम-घूमकर आई पंथ का प्रचार करें। लोगों में आपके प्रति श्रद्धा है। आई माताजी ने कहा-माधवजी वृद्धावस्था के कारण मुझे चलने फिरने में कठिनाई होती है। मेरी भी इच्छा है कि गांव-गांव घूमकर लोगों का कष्ट दूर करुं। तुम एक काम करो मेरे लिये बैलगाड़ीनुमा एक रथ बनवाओ। मैं उसमें बैठकर तुम्हारें साथ गांव-गांव आई पंथ का प्रचार करुंगी। तब माधवजी ने आईमाताजी की आज्ञा से बैलगाड़ीनुमा एक रथ बनवाया। फिर आईमाता स्वंय बिराजमान होकर गांव-गांव घूमकर आई पंथ का प्रचार करने लगी जिसे माधवजी स्वंय हांकते थे। यही बैलगाडिनुमा रथ को आईमाताजी की भैल कहते है। बिलाडा में माताजी के अन्र्तध्यान होने के बाद अब आई माता की भैल (रथ) में श्री आई माताजी की तस्वीर, आत्म दर्षन हेतु दर्पण,अखण्ड ज्योत और माताजी के स्मृति चिन्ह रखे हुए हैं। यही भैल वर्ष भर घूम घूमकर आई पंथ का प्रचार करती है एवं जो लोग निज मन्दिर में आकर आईमाताजी के दर्षन नहीं कर पाते वे लोग इसी भैल के दर्षन कर लाभान्वित होते हैं। चार बड़ी बीज चैत्र सुदी बीज,वैषाख सुदी बीज,भ्दवा सुदी बीज एवं माघ सुदी बीज को यह धर्म रथ जहां कहीं भी हो बिलाड़ा आ जाती है। जीजी (श्री आईमाताजी) का अन्र्तध्यान होना मां आईजी ने दीन दुःखियों के दुःख दर्द दूर करने के लिए अवतार लिया था। यह कार्य लगभग पूर्ण हो चुका था तो माताजी ने अन्र्तध्यान होने का मन बना लिया। अपने श्रद्धालुओं,भक्तों और साधु-संतों को विक्रम संवत् 1561 चेत्र सुदी बीज षनिवार को अन्र्तध्यान होने की बात कही। आखिर वह दिन आ गया जब अपने हजारों भक्तों को अपना अन्तिम उपदेष सुनाकर कहा कि मैं अन्र्तध्यान होने जा रही हूं। आप 7 दिन तक कोटड़ी मत खोलना। तब उपस्थित श्रद्धालु भक्तों और साधु संतों ने माताजी से प्रार्थना की कि माताजी आपके दर्षन के बिना तो हम और हमारे बच्चे अन्न जल तक ग्रहण नहीं करते हैं। अतः 7 दिन तक हम और हमारे बच्चे आपके बिना अन्न जल के कैसे रहेंगे ? तब माताजी ने कहा आप लोग दीवान गोयन्ददास जी को ही मेरा रुप समझना। इनके दर्षन को मेरे दर्षन तुल्य समझना। प्रातःकाल कणामूंठ (मूट्ठी भर अनाज) चढ़ाना जिसे मेरी पूजा समझना। रोटी बनाते समय पहली रोटी को मेरी गादी के आगे प्रसाद स्वरुप चढाना। ऐसा करने से आपके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। दूसरों के बहकावे में मत आना। जो मेरी बेल बांधे रखेगा। मेरे बताए आई पंथ के ग्यारह नियमों का पालन करेगा। और मेरा ध्यान करने वाले को कभी भी कोई विपत्ति नहीं आयेगी। मैंहर पल,हर क्षण उसके साथ रहूंगी। इस प्रकार अपनी बात कहकर आईमाताजी ने अपने साल के किंवाड़ बन्द कर दिये। ये अमृतवाणी श्री आईमाता के अन्तिम उपदेष ही नहीं अपितु मां जगदम्बा के वचन सिद्ध थे। जिसका पालन करने पर हर प्रकार की विपत्ति से बचा जा सकता है। सभी भक्त गण साल के बाहर श्री आईमाता की भक्ति भावना में लीन थे। सभी को सात दिनों का इतंजार था। वे मां आईजी के वियोग से परम दुःखी थे। लोग आपस में तरह तरह की बातें करने लगे। वे बार बार गोयन्ददासजी से साल के किंवाड़ खोलने का आग्रह कर रहे थे। चार दिन बीतने के बाद आखिर पांचवें दिन लोगों का धैर्य टूट गया। मां आईमाता के वचनों की परवाह किये बगैर गोयन्ददासजी पर किंवाड खोलने के लिए दबाव डालना षुरु किया। गोयन्ददासजी ने समझाया मां आईमाता ने 7 दिन तक किंवाड नहीं खोलने का आदेष दिया है और सात दिन बाद मै इसी गादी पर मिलूंगी कहा है इसलिए यह उचित नहीं है। आखिर लोगों ने उनकी बात न मानते हुए पांचवें दि नही कोटड़ी के किंवाड खोल दिए। जैसे ही साल के द्वार खोले लोगों ने एक प्रज्जवलित ज्योत को आकाष की ओर जाते हुए देखा। गादी पर आईमाता का भगवा चोला,मोजड़ी,ग्रन्थ,पांच नारियल व माला ही मिली। श्री आईमाता अन्र्तध्यान हो गई थीं। यह देखकर लोगों को भारी दुःख हुआ। गोयन्ददासजी ने सबको समझाया होनी को कौन टाल सकता है ? अब पछताने से क्या होगा ? आपने आईमाता का कहना न मानकर पांचवें दिन ही कोटड़ी का दरवाजा खुलवा दिया। अब आप लोग रोने एवं पछताने की बजाय सच्चे मन से श्री आईमाता के बताए नियमों का स्मरण कर सदैव पालन करो। वो सदैव हमारे साथ रहेगी। बेल क्या है ? कांकण काचो सूत रो,तार ग्यारह ताम। गांठ ईग्यारह फाबता,बांधिजे मां आई नाम।। हाथ जीमणो पुरुष रे,स्त्री गले अनूप। देवी अवतार नौ,अत हित चित चूप।। डोरो आई माता रो,साचो बांधे जोय। मन चाहा कारज सरे,विध्न न व्यापे कोय।। जीजी (श्री आईमाताजी) बेल के ग्यारह नियम बेल आई री बांधों भाई,नेम धर्म सब पालो भाई। परथम झूठ तजो सुख पाई,दूजो तो मद मांस छुड़ाई।। तीजो ब्याज पर धन न लेवो,चैथेे जुआ कभी नहीं खेलों। पंचम माता-पिता री सेवा,छठे अभ्यागत हो देवा। सात गुरु की आज्ञा पालो,आठों पर-हित मार्ग चालो। नव पर नारी माता जाणो,दस कन्या को धरम परणाओ। स्वार्थ काज न अकरम करना,गांठ इग्यारह सत्मारग चलना। हाथ पुरुष और गले लुगाई,बांधों बेल कहो जय आई। जय आई श्री अम्बे माई,देव दनुज सब तेरो यष गाई। बेल आइ्र्र री बांधों भाई,नेम धरम सब पालो भाई। जीजी (श्री आईमाताजी) द्वारा बताए गए नियम एवं उपदेष श्री आई माताजी ने कहा-जो इन नियमों का पालन करेगा,वो मेरा अनन्य भक्त होगा ओर मैं सदैव उसके साथ रहूंगा। 01 . किसी भी धर्म की निन्दा मत करना। 02 . चोरी जारी जीव हिंसा मत करना। 03 . दूसरी आत्मा को कष्ट मत पहुंचाना। 04 . षराब,मांस,अफीम आदि से सदा दूर रहना। 05 . समर्पण व एकनिष्ठ भाव से माता-पिता की सेवा करना। 06 . रुपया-पैसा लेकर बेटी की षादी मत करना। (कन्या को धरम परणाओ) 07 . साधु,सन्तों की सेवा करना और उनकी आज्ञा का पालन करना। 08 . वेद षास्त्र की निन्दा मत करना व निन्दा करने वालों के पास मत बैठना। 09 . झूठ वचन कभी नहीं बोलना। 10 . पराई स्त्री को मां-बहिन समान समझना। 11 . पाखण्ड मत करना व सदा पाखण्डियों से दूर रहना। 12 . किसी से ब्याज पर धन मत लेना। 13 . प्रातःउठकर धरती माता को तीन बार प्रणाम करना। 14 . पारोपकार करना व सदाचार का पालन करना। 15 . जुआ कभी भी नहीं खेलना। 16 . संध्या एकाग्रचित श्रद्धा भाव से ध्यान करना। घर में घी का दीपक जलाना और आई माता के दर्षन करना। 17 . धर्म का मार्ग मत छोड़ना। 18 . भोजन बनाकर मेरा स्माण कर प्रथम भोग लगाकर,भेाजन ग्रहण करना। 19 . चांदनी बीज का व्रत रखना। 20 . गुरु की आज्ञा का पालन करो। 21 . आई री बेल पुरुष के जीमणे हाथ एवं स्त्री के गले में बाधनें से मन चाहा कार्य पूर्ण होगा। आईमाता द्वारा बताए गए उपरोक्त नियमों का पालन करने से निष्चित रुप से कल्याण होगा।


[१]

[२]

[३]

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।