चौधरी दिलीप सिंह चतुर्वेदी

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चौधरी दिलीप सिंह चतुर्वेदी
Chaudhary Dilip Singh Chaturvedi.jpg

जन्म साँचा:br separated entries
मृत्यु साँचा:br separated entries
राष्ट्रीयता भारतीय
राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी
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अन्य राजनीतिक
संबद्धताऐं
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी साँचा:nowrap
जीवन संगी साँचा:trim (साँचा:abbr साँचा:abbr)
बच्चे 3 बेटी और 2 बेटे
चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी
शैक्षिक सम्बद्धता लखनऊ विश्वविद्यालय
(एम.ए., एलएलबी)
पेशा राजनेता, अभिभाषक एवं कृषक
साँचा:center

चौधरी दिलीप सिंह चतुर्वेदी (११ जनवरी १ ९ ३२ - ० ९ फरवरी १ ९९ ०) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और मध्य भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के एक प्रतिष्ठित वकील थे। वे 1980 के चुनावों में भिंड विधान सभा क्षेत्र के लिए भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए।[१][२][३] वे एक समाजवादी नेता थे।[४]

आचार्य नरेंद्र देव (तत्कालीन कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय) और जयप्रकाश नारायण जैसे निष्ठावान, मज़बूत समाजवादी नेता उनके संरक्षक थे। उनका चौधरी की राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा पर एक बड़ा प्रभाव था।[५] वे समाजवादी आंदोलन में छात्र राजनीति से ही शामिल हो गए और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में सक्रिय रहे। उन्होंने अपने छात्र राजनीतिक जीवन की शुरुआत चंद्र शेखर और डॉ राममनोहर लोहिया के साथ की।

चौधरी दो राजनेता पुत्रों के पिता थे, चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी और चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी।[६][७]

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

चौधरी का जन्म 11 जनवरी 1932 को ग्राम शहब्दा, तहसील औरैया, जिला इटावा, उत्तर प्रदेश में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।[६] उन्होंने शहब्दा से अपनी प्राथमिक शिक्षा, मुरादगंज से माध्यमिक शिक्षा, भिंड से उच्चतर शिक्षा और इटावा के एसडी इंटर कॉलेज से उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के पश्चात 1953 में लखनऊ विश्वविद्यालय से बी.ए. स्नातक की उपाधि प्राप्त की।[१] 1955 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में मास्टर ऑफ आर्ट्स (एम.ए.) और बैचलर ऑफ लॉज़ (एलएल॰बी॰) की उपाधि प्राप्त की।

उन्होंने श्रीमती शारदा देवी से 1947 में शादी की और दंपति की तीन बेटी और दो बेटे हुए। चौधरी का वंशानुगत शीर्षक - संरक्षक आधिपत्य को मान्यता देते हुए उनके दादा को सम्मानित किया गया था।[६][८][९]

राजनीतिक पृस्ठभूमि

समाजवाद और छात्र राजनीति

चौधरी 1955-56 में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष थे।[५] उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान संघ के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। लखनऊ विश्वविद्यालय में वे कबड्डी टीम के कप्तान भी रहे।

लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति राधाकमल मुखर्जी ने चौधरी के नेतृत्व की क्षमता को पहचाना और उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रोत्साहित किया।[४] चौधरी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र संघ के वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में समाजवादी विचारक और नेता जयप्रकाश नारायण (छपरा, बिहार) को आमंत्रित किया था। विश्वविद्यालय में उनका छात्रावास कक्ष, कक्ष 51, सुभाष छात्रावास में चंद्रशेखर और डॉ राम मनोहर लोहिया अपनी लखनऊ की यात्राओं में अक्सर ठहरा करते थे।[५]

चौधरी 1956 में इंडोनेशिया के बांडुंग में आयोजित ऐतिहासिक एफ्रो-एशियाई छात्र सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे।[१०][११][१२] प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल में उनके सहयोगी प्राण नाथ सभरवाल (अध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय), चंद्र भाल त्रिपाठी (अध्यक्ष, जी.आइ.सी. लखनऊ), समरेंद्र कुंडू और राजेंद्र नाथ मदान थे।[४]

प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और राज्य की राजनीति

सोशलिस्ट मूव्मेंट, समाजवादी आंदोलन में चौधरी ने कई बार जेल यात्राएँ की। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के विघटन के बाद, चौधरी भारतीय जनता पार्टी में राजमाता विजया राजे सिंधिया जी के संरक्षण में शामिल हो गए। चौधरी भारतीय जनता पार्टी के मुंबई में आयोजित प्रथम अधिवेशन में शामिल हुए थे।

1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद, चौधरी 2 जून, 1980 को 7वीं मध्य प्रदेश विधान सभा के सदस्य के रूप में भिंड विधान सभा क्षेत्र के निर्वाचित हुए।[२][१३][१४][१५] चौधरी अपने कार्यकाल में मध्यप्रदेश विधान सभा के सभापति तालिका एवं विधि आयोग के सदस्य भी रहे।

चौधरी जिला बार एसोसिएशन, भिंड के उपाध्यक्ष रहे। वे भिंड मार्केटिंग सोसायटी और सहकारी बैंक के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद पर रहे। 1972 से 1980 तक चौधरी लगातार दो बार भिंड जनपद पंचायत के अध्यक्ष रहे।[५]

चंबल संभाग में प्रतिष्ठापूर्ण वकालत के साथ-साथ अंचल में बेहतर शिक्षा हेतु चौधरी ने 1967 में जनता विद्यालय शिक्षा समिति की स्थापना की। भिंड में पहला ऑल-गर्ल्स स्कूल, जनता स्कूल भी स्थापित किया और संभाग में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए विभिन्न, बेहतर शैक्षणिक संस्थानों को बढ़ावा दिया।[१६][१७]

मृत्यु और विरासत

चौधरी का स्वर्गवास 58 वर्ष की उम्र में 9 फरवरी, 1990 को नई दिल्ली के गोविंद वल्लभ पंत अस्पताल में कार्डियक अरेस्ट के कारण हुआ।

अपने पिता की विरासत को आगे ले जाते हुए, उनके बेटे चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी, चौधरी दिलीप सिंह फाउंडेशन का संचालन करते हैं।[७][१७][१६]

यह सभी देखें

संदर्भ

 

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  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  5. Sayeed, S. M. (1973). "POLITICIZATION OF THE STUDENT LEADERS—A STUDY OF THE LEADERS OF THE LUCKNOW UNIVERSITY UNION SINCE INDEPENDENCE". The Indian Journal of Political Science. 34 (1): 86–101. ISSN 0019-5510.
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