प्रवेशद्वार:स्वास्थ और आयुर्विज्ञान/परिचय

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प्राचीन स्वास्थ-आध्यात्मिक पद्यति: योग, के मूलग्रन्थ योगसूत्र के रचैता पतंजलि की आदिशेष के अवतार रुपी प्रतिमा

आयुर्विज्ञान, विज्ञान अर्थात (आयु +र् + विज्ञान ) आयु का विज्ञान है। यह वह विज्ञान व कला है जिसका संबंध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु (निरोगी जीवन) बढ़ाने से है। प्राचीन सभ्यताओं मनुष्य ने होने वाले रोगों के निदान की कोशिश करती रहे हैं। इससे कई चिकित्सा (आयुर्विज्ञान) पद्धतियाँ विकसित हुई। इसी प्रकार भारत में भी आयुर्विज्ञान पर विकास हुआ जिसमें आयुर्वेद पद्धति सबसे ज्यादा जानी जाती है अन्य पद्धतियाँ जैसे कि सिद्ध भी भारत में विकसित हुई। प्रारम्भिक समय में आयुर्विज्ञान का अध्ययन जीव विज्ञान की एक शाखा के समान ही किया गया था, बाद में 'शरीर रचना' तथा 'शरीर क्रिया विज्ञान' आदि को इसका आधार बनाया गया।लेकिन पाश्चात्य में औद्योगीकरण के समय जैसे अन्य विज्ञानों का आविष्कार व उद्धरण हुआ उसी प्रकार आधुनिक आयुर्विज्ञान एलोपैथी का भी विकास हुआ जो कि तथ्य आधारित चिकित्सा पद्धति के रूप में उभरी।

आयुर्विज्ञान का कई हजार वर्षों से इंसानों द्वारा विकास व उन्नयन किया जाता रहा है । पुरा काल से चली आ रही चिकित्सा पद्धतियों को पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के रूप में जाना जाता है वहीं पाश्चात्य में 'पुनर्जागरण' के बाद जिस चिकित्सा पद्धति जिसका सिद्धांत तथ्य आधारित निदान है उसको आधुनिक चिकित्सा पद्धति कहा जाता है। प्राचीन भारत आयुर्विज्ञान के विकास में अग्रणी भूमिका निभाता रहा है, महर्षि चरक को आयुर्वेद एवं भारत में चिकित्सा का जनक माना जाता है वहीं महर्षि सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है । सन् 600 ई०पू० में महर्षि सुश्रुत ने विश्व की पहली प्लास्टिक शल्य क्रिया करी।पाश्चात्य में हिपोक्रेट को आयुर्विज्ञान का जनक माना जाता है और हिपोक्रेटिक शपथ हर आधुनिक चिकित्सा पद्धिति के चिकित्सक द्वारा ली जाती है। अधिक पढ़ें...

संकीर्ण अर्थ में, रोगों से आक्रांत होने पर रोगों से मुक्त होने के लिये जो उपचार किया जाता है वह चिकित्सा (Therapy) कहलाता है। पर व्यापक अर्थ में वे सभी उपचार 'चिकित्सा' के अंतर्गत आ जाते हैं जिनसे स्वास्थ्य की रक्षा और रोगों का निवारण होता है।