तारापुर शहीद दिवस

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तारापुर बिहार राज्य के मुंगेर जिले में एक नगर है जो 15 फरवरी 1932 तारापुर शहीद दिवस के लिये प्रसिद्ध है। [१]

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तारापुर शहीद दिवस प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी को मनाया जाता है जिसमें 15 फरवरी 1932 को बिहार राज्य के मुंगेर के तारापुर झंडा सत्याग्रह के दौरान तारापुर के ब्रिटिश थाना पर राष्ट्रीय झंडा फहराते के क्रम में बलिदान हुए 34 शहीदों को श्रंद्धाजलि दी जाती है। उस घटना की निशानी ब्रिटिशकालीन थाना भवन आज भी मौजूद है। आजादी मिलने तक हर साल 15 फरवरी को तारापुर दिवस मनाया जाता रहा है जबकि बाद में भुला दिया गया था। जब वर्ष 2022 में 31 जनवरी को प्रसारित पीएम मन की बात #MannKiBaat के 75वे एपिसोड में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंगेर के रहने वाले युवा 'जयराम विप्लव' द्वारा प्रेषित तारापुर शहीद दिवस की कहानी दुनिया से साझा किया था तब से तारापुर शहीद दिवस राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना हुआ है।

आइये जानते हैं क्या है तारापुर शहीद दिवस ?- भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अलग-अलग कालखंड में बिहार के राष्ट्रभक्तों ने अपने साहसिक और बलिदानी प्रयासों से अपनी अमिट छाप छोड़ी है | दरअसल 1931 में गांधी-इरविन समझौता भंग होते ही अंग्रेजी दमन के जबाव में युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर द्वारा जारी संकल्प पत्र कांग्रेसियों और क्रांतिकारियों में आजादी का उन्माद पैदा कर दिया था जिसकी स्पष्ट गूंज 15 फरवरी 1932 को तारापुर के जरिये लन्दन ने भी सुनी | युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर के आदेश को कार्यान्वित करने के लिए वर्तमान में संग्रामपुर प्रखंड के सुपोर-जमुआ गाँव के ‘श्री भवन‘ में इलाके भर के क्रांतिकारियों, कांग्रेसियों और अन्य देशभक्तों ने हिस्सा लिया | बैठक में मदन गोपाल सिंह (ग्राम – सुपोर-जमुआ), त्रिपुरारी कुमार सिंह (ग्राम-सुपोर-जमुआ), महावीर प्रसाद सिंह(ग्राम-महेशपुर), कार्तिक मंडल(ग्राम-चनकी)और परमानन्द झा (ग्राम-पसराहा) सहित दर्जनों सदस्यों का धावक दल चयनित किया गया |

15 फ़रवरी सन 1932 सोमवार को तारापुर थाना भवन पर राष्ट्रीय झंडा तिरंगा फहराने के कार्यक्रम की सूचना पुलिस को पूर्व में ही मिल गयी थी | इसी को लेकर ब्रिटिश कलेक्टर मिस्टर ई० ओ. ली डाकबंगले में और एसपी डब्ल्यू.एस. मैग्रेथ सशस्त्र बल के साथ थाना परिसर में मौजूद थे |

दोपहर 2 बजे धावक दल ने ब्रिटिश थाना पर धावा बोला और अंग्रेजी सिपाहियों की लाठी और बेत खाते हुए अंततः ध्वज वाहक दल के मदन गोपाल सिंह, त्रिपुरारी सिंह, महावीर सिंह, कार्तिक मंडल, परमानन्द झा ने तारापुर थाना पर तिरंगा फहरा दिया | उधर दूर खड़े होकर मनोबल बढ़ा रहे समर्थक धावक दल पर बरसती लाठियों से आक्रोशित हो उठे| गुस्से से उबलते नागरिकों और पुलिस बल के बीच संघर्ष और लाठीचार्ज हुआ जिसमें कलेक्टर ई० ओ० ली० घायल हो गये, पुलिस बल ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर कुल 75 चक्र गोलियाँ चलाई जिसमें कुल 34 क्रान्तिकारी शहीद हुए एवं सैंकडों क्रान्तिकारी घायल हुए | आजादी के दीवाने नौजवान वहां से हिले नहीं और सीने पर गोलियां खायीं।

अंग्रेजी हुकूमत की इस बर्बर कार्रवाई में 34 स्वतंत्रता प्रेमी शहीद हो गये थे. इनमें से 13 की तो पहचान हुई बाकी 21 अज्ञात ही रह गये थे. आनन—फानन में अंग्रेजों ने कायरतापूर्वक वीरगति को प्राप्त कई सेनानियों के शवों को वाहन में लदवाकर सुल्तानगंज भिजवाकर गंगा में बहवा दिया था.[३]


जिन 13 वीर सपूतों की पहचान हो पाई उनमें विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), महिपाल सिंह (रामचुआ), शीतल चमार (असरगंज), सुकुल सोनार (तारापुर), संता पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया), सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढिया), रामेश्वर मंडल (पढवारा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी) तथा चंडी महतो (चोरगाँव गाँव, असरगंज (मुंगेर)) शामिल थे. इस घटना ने अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग गोलीकांड की बर्बरता की याद ताजा कर दी थी। [४]

प्रधानमंत्री द्वारा “मन की बात“ में तारापुर शहीद दिवस की चर्चा

 साथियो, इस वर्ष से भारत, अपनी आजादी के, 75 वर्ष का समारोह – अमृत महोत्सव शुरू करने जा रहा है। ऐसे में यह हमारे उन महानायकों से जुड़ी स्थानीय जगहों का पता लगाने का बेहतरीन समय है, जिनकी वजह से हमें आजादी मिली। साथियो, हम आजादी के आंदोलन और बिहार की बात कर रहें हैं, तो, मैं, NaMo App पर ही की गई एक और टिपण्णी की भी चर्चा करना चाहूँगा। मुंगेर के रहने वाले "जयराम विप्लव" जी ने मुझे तारापुर शहीद दिवस के बारे में लिखा है। 15 फरवरी, 1932 को, देशभक्तों की एक टोली के कई वीर नौजवानों की अंग्रेजों ने बड़ी ही निर्ममता से हत्या कर दी थी। उनका एकमात्र अपराध यह था कि वे ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माँ की जय’ के नारे लगा रहे थे। मैं उन शहीदों को नमन करता हूँ और उनके साहस का श्रद्धापूर्वक स्मरण करता हूँ। मैं जयराम विप्लव जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ। वे, एक ऐसी घटना को देश के सामने लेकर आए, जिस पर उतनी चर्चा नहीं हो पाई, जितनी होनी चाहिए थी। [५] [६]