वीर बिग्गाजी
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वीर बिग्गाजी का जन्म जाट जाति के जाखड़ गौत्र मैं जन्म हुआ बिग्गाजी गायो कि रक्षा करते वीर गति को प्राप्त हुआ बिग्गा जी जाखड़ गौत्र के कुल देवता के रूप मे पूजे जाते हैं
वीर बिग्गाजी | |
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संबंध | लोक देवता |
अस्त्र | भाला |
जीवनसाथी | साँचा:if empty |
माता-पिता |
राव मेहंदजी (पिता) सुलतानी (माता) |
संतान | साँचा:if empty |
सवारी | घोड़ी |
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प्रारंभिक जीवन
बिग्गाजी का जन्म सन 1301 ईस्वी में रिडी मे हुआ था। इनके पिता जी का नाम राव मेहंदजी और दादा जी का नाम राव लाखड जी चुहड़ था। इनकी माता जी का नाम सुलतानी था इनकी माता गांव कपुरीसर के ग्राम प्रधान चुहड़ जी गोदारा पुत्री थी। बिग्गाजी जब थोडे बडे हुए तो उनको धनुष विद्या और अस्त्र शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। जब वह युवा हुए तो उनको युद्ध लड़ने की शिक्षा दी गई। उस समय मे गाये को पवित्र माना जाता था। उस समय गाये को पालना और उनकी सुरक्षा करना क्षत्रियों का धर्म और प्रतिष्ठा मानी जाती थी।
महान गौरक्षक
बिग्गाजी ने गाये की रक्षा करते हुए अपने प्राण दांव पर लगा दिये। बिग्गाजी अपने ससुराल मे अपने साले की शादी मे गये हुए थे। वह अपने साथी साथी सावलदास पहलवान, हेमा बागडवा ढाढी, गुमानाराम तावणिया, को साथ लेकर गये थे। सुबह के समय ब्राह्मणों की कुछ औरते आई और बिग्गाजी से सहायता मांगी। ब्राहमणियो ने बताया की राठ मुसलमानों ने हमारी सारी गाये छीन ली है। वह उनकी गाये को जंगल मे लेकर गये है कृपा करके हमारी गाये को बचाये कोई भी हमारी सहायता नही कर रहा। इस बात पर बिग्गाजी का खून खोल उथा। उन्होने अपने अपने अस्त्र-सस्त्र उठाये और साथी सावलदास पहलवान, हेमा बागडवा ढाढी, गुमानाराम तावणिया, राधो व बाधो दो बेगारी व अन्य साथियों सहित गायों के रक्षार्थ सफ़ेद घोडी पर सवार होकर मालासर से रवाना हुये। मालासर वर्तमान में बिकानेर जिले की बिकानेर तह्सील में स्थित है। बिग्गाजी अपने मित्रो के साथ गाये को छुडाने गये बिग्गाजी का राठो से मुकाबला हुआ राठे अधिक संख्या मे थे दोनो मे घमासान युद्ध हुआ बिग्गाजी युद्ध जीत गये वह गायो को वापस लेकर जा रहे थे लेकिन एक बछडी के पीछे रह जाने के कारण जैसे ही बिग्गाजी पीछे मुडे एक राठे ने उनका सिर धर से अलग कर दिया और सन 1336 को विग्गाजी जी गाये की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये। ऐसी लोक कथा प्रचलित है कि सर के धड़ से अलग होने के बाद भी धड़ अपना काम करती रही। दोनों बाजुओं से उसी प्रकार हथियार चलते रहे जैसे जीवित के चलते हैं। सब राठों को मार कर बिग्गाजी की शीश विहीन देह ने असीम वेग से व ताकत के साथ शस्त्र साफ़ किए। सर विहीन देह के आदेश से गायें और घोड़ी वापिस अपने मूल स्थान की और चल पड़े। बिग्गा जी ने गायों को अपने ससुराल पहुँचा दिया तथा फ़िर घोडी बिग्गाजी का शीश लेकर जाखड राज्य की और चल पड़ी।
लोक सहित्य में बिग्गाजी
लोक सहित्य में बिग्गाजी के सम्बन्ध में अनेक दोहे और छंद जनमानस मे प्रचलित हैं जिन्से अनेक जानकारी प्राप्त होती हैं:
- सौ ए कोसे रिच्छा करो हिंदवाणी रा सूर ।
- इगियारी संवतां तणो बरस इक्कीसो साल ।
- काती मास तिथी तेरसो वार शनिसर वार ।
- राजा तो रतन सिंघ सिरदार सिंघ राजकंवार ।
- धरसी बैठा पाठवी भली बताई वार ।
- बडो भाई सदा सुख पिता नांव श्रीराम ।
- सिंवर देवी सुळतानवी औ चंद कयो लछीराम ।
बिग्गाजी के छंद
- सिंवरू देवी सारदा लुळहर लागूं पाय ।
- बिगमल हुवो बीकाणगढ सोभा देवूं बताय ।
- कियो रड़ाको राड़ सूं लेसूं निजपत नांव ।
- सारद सीस नवाय कर करसूं कथणी काम ।
- बीदो बीको राजवी गढ बीकाणो गांव ।
- जूना खेड़ा प्रगट किया इडक बिगो है धाम ।
- रूघपत कुळ में ऊपन्यो भगीरथ वंश मांय ।
- मामा गोदारा भीम-सा, नानै चूहड़ का नांव ।
- रीड़ज गढ रो पाटवी परण्यो माला रै गांव ।
- धिन कर चाल्यौ सासरै नाईज लिया बुलाय ।
- कंगर कढाई कोरणी कपड़ा लिया सिलाय ।
- कचव कंठी सोवणी गळ झगबग मोती झाग ।
- मीमां जरी जड़ाव की माथै कसूमल पाग ।
- धिन कर चाल्यो सासरै मात-पिता अरु मेंहद ।
- कमेत घोड़ी बो धणी बण्यो पून्यूं को चंद ।
- उठै राठ की हुई चढाई, दिल्ली का तखत हजारो ।
- क्या मक्का बलखबुखारोचढ्यो राठकर हौकारो ।
- सिंवर मीर पीर पट्टाण ध्यान मैंमद का धर रे ।
- किसो मुलक लौ मार किसो अक छोड़ो थिर रे ।
- कहै राठ इक बात कयो थे हमरो करो ।
- मार जाट का लोग डेरा जसरसर धरो ।
- डावी छोड़दो जखड़ायण जींवणी नागौरी गउवों घेरो ।
- चढ्यो राठ को लोग सुगन ने बोल झडा़ऊ ।
- पिर्या सिंध सादूल सुगन बै हुया पलाऊ ।
श्री बिग्गाजी महाराज की आरती
- जय बिगमल देवा-देवा-जाखड़कुल के सूरज करूं मैं नित सेवा ।
- जाखड़ वंश उजागर, संतन हित कारी (प्रभु संतन)
- दुष्ट विदारण दु:ख जन तारण, विप्रन सुखकारी ॥ 1 ॥
- सत धर्म उजागर सब गुण सागर, मंदन पिता दानी ।
- सती धर्म निभावण सब गुण पावन, माता सुल्तानी ॥ 2 ॥
- सुन्दर पग शीश पग सोहे, भाल तिलक रूड़ो देवा-देवा ।
- भाल विशाल तेज अति भारी, मुख पाना बिड़ो ॥ 3 ॥
- कानन कुन्डल झिल मिल ज्योति, नेण नेह भर्यो ।
- गोधन कारन दुष्ट विदारन, जद रण कोप करयो ॥ 4 ॥
- अंग अंगरखी उज्जवल धोती, मोतीन माल गले ।
- कटि तलवार हाथ ले सेलो, अरि दल दलन चले ॥ 5 ॥
- रतन जडित काठी, सजी घोड़ी, आभाबीज जिसी ।
- हो असवार जगत के कारनै, निस दिन कमर कसी ॥ 6 ॥
- जब-जब भीड़ पड़ी दुनिया में , तब-तब सहाय करी ।
- अनन्त बार साचो दे परचो, बहु विध पीड़ हरी ॥ 7 ॥
- सम्वत दोय सहस के माही, तीस चार गिणियो ।
- मास आसोज तेरस उजली, मन्दिर रीड़ी बणियो ॥ 8 ॥
- दूजी धाम बिग्गा में सोहे, धड़ देवल साची ।
- मास आसोज सुदी तेरस को, मेला रंग राची ॥ 9 ॥
- या आरती बिगमल देवा की, जो जन नित गावे ।
- सुख सम्पति मोहन सब पावे, संकट हट जावै ॥ 10 ॥