चतरा का युद्ध
चतरा का युद्ध, १८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय ईस्ट इंडिया कम्पनी और विद्रोही सिपाहियों के बीच हुआ एक संघर्ष था। विद्रोहियों ने ३००० लोगों की एक सेना तैयार करके चतरा नगर पर अपना अधिकार कर लिया था। चतरा, छोटा नागपुर क्षेत्र में है।[१]
पृष्ठभूमि
हजारीबाग में तैनात रामगढ़ बटालियन की दो कंपनियों ने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इन सिपाहियों ने जयमंगल पांडे और ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव सहित स्थानीय विद्रोही नेताओं के साथ मिल गए और एक मुक्ति वाहिनी (लोगों की सेना) का गठन किया और ब्रिटिश अधिकारियों को उखाड़ फेंकने का इरादा बनाया। विद्रोही उत्तर की ओर रोहतास जाने की योजना बना रहे थे एवं अपनी सेनाओं को उत्तर बिहार के बागी नेता कुंवर सिंह के साथ जोड़ना चाहते थे।[२]
युद्ध
विभिन्न ब्रिटिश सेनाओं को विद्रोहियों का पीछा करने के लिए भेजा गया था। विद्रोहियों को पता चला की एक झड़प के दौरान उनके लोग शहर में घुस गे थे और उन्होंने स्थानिय लोगों को परेशान किया था जिसके चलते कुछ लोग अंग्रेजों का साथ देने लगे। जिसके कारण विद्रोहियों पर खतरा मंडराने लगा।[३] मेजर स्मिथ ने शहर मे एक योजना बनाई और दक्षिण से हमला करने का फैसला किया। जैसे-जैसे समय बीता, पूरे शहर में कई झड़पें होने लगीं और दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। अंत में, ब्रिटिश सेना ने शहर के सभी क्षेत्रों से हमला करना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने शहर के बाहरी इलाके में भारी वृक्षों के आच्छादन का लाभ उठाया। दो विद्रोही नेताओं, जयमंगल पांडे और नादिर अली को पकड़ लिया गया और उन्हें तुरंत फांसी दे दी गई एवं दो प्रमुख विद्रोही नेता, विश्वनाथ शाहदेव और गणपत राय भागने में कामयाब रहे और 1858 में पकड़े जाने से पहले ब्रिटिश सेना को परेशान करना जारी रखा और फांसी दे दी।[४]