जीवाभाई ठाकोर
जीवाभाई ठाकोर गुजरात में महीसागर जिले के लुणावाडा मे खानपुर के कोली ठाकोर थे।[१] जिसने १८५७ की क्रांती के समय अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे एवं महीसागर क्षेत्र में वो ही पहले स्वतंत्रता सेनानी जागीरदार थे।
ठाकोर जीवाभाई | |
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जन्म |
जीवनसिंहजी कोली खानपुर, गुजरात |
मृत्यु |
1857 खानपुर, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु का कारण | फांसी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
अन्य नाम | कोली नो कालो |
जातीयता | कोली |
व्यवसाय | खानपुर के ठाकोर (राजा) |
पदवी | खानपुर के ठाकोर |
प्रसिद्धि कारण | भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन |
उत्तराधिकारी | ब्रिटिश साम्राज्य |
धार्मिक मान्यता | हिन्दू |
1857 की क्रांती के दौरान ब्रिटिश सरकार को ख़बर मिली के खानपुर के कोली तालुकदार जीवाभाई ठाकोर विद्रोह की योजना बना रहे हैं जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने लुणावाडा मे ब्रिटिश सेना तैनात कर दी लेकिन दिसंबर 1857 को ठाकोर के नेतृत्व में कोलीयों ने विद्रोह कर दिया और ब्रिटिश कैम्पों पर हमला कर दिया और पहाड़ी एवं नदी के पास चले गए।[२] जिसके पश्चात ब्रिटिश सरकार ने कैप्टन बक्ले को कोली विद्रोह को दबाने का आदेश दिया एवं कैप्टन बक्ले ने हमला कर दिया एवं खानपुर को जला दिया। जब कोलीयों को पता चला तो उन्होंने नदीपार कर रही ब्रिटिश सेना पर आक्रमण कर दिया जिसमे कुछ अंग्रेजी घुड़सवार एवं सिपाही मारे गए।[३]
ठाकोर जीवाभाई आणंद के गडबडदास पटेल के साथ मिल गया और फिर से 2000 कोली और भीलों की सेना बना ली।[४] इस बार ब्रिटिश सरकार ने बड़ोदा से सेना भेजी और विद्रोहियों पर हमला कर दिया एवं ठाकोर जीवाभाई को बंदी बना कर फांसी पर लटका दिया लेकिन जो लोग कोली नही थे उनको छोड़ दिया गया।[५]