घंटाई मन्दिर

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घण्टाई मन्दिर
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धर्म संबंधी जानकारी
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देवताऋषभनाथ
अवस्थिति जानकारी
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ज़िलाछतरपुर जिला
राज्यमध्य प्रदेश
देशभारत
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भौगोलिक निर्देशांकसाँचा:coord
वास्तु विवरण
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स्थापित१०वीं शताब्दी
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घण्टाई मन्दिर या घण्टी मन्दिर मध्य प्रदेश के खजुराहो में स्थित एक जैन मन्दिर है जो अब खण्डहर बन चुका है। यह जैन धर्म के तीर्थंकर]] ऋषभनाथ का मन्दिर था। यह मन्दिर युनेस्को विश्व धरोहर स्थल है जिसमें खजुराहो के अन्य मन्दिर भी सम्मिलित हैं। इस मन्दिर के स्तम्भों पर झुमते घंटों और क्षुद्र घंटिकाओं की मनोहर एवं जीवन्त संयोजना के कारण, स्थानीय लोग इसको 'घंटाई मंदिर' के नाम से पुकारते हैं। इस मंदिर का अधिकांश भाग वर्तमान समय में अनुपलब्ध है, जबकि छत और शानदार स्तम्भ, अब भी वर्तमान हैं।

परिचय

घंटाई मंदिर का निर्माण १०८५ ई. सन् में हुआ। ४५ फुट लंबे २५ फुट चौड़े अधिष्ठान पर १४ फुट ऊँचे १८ स्तम्भों वाला यह मंदिर, बुद्ध प्रकृति का मंदिर माना जाता है। यह मंदिर पूर्वी समूह के मंदिरों में प्रमुख है। जैन धर्म से संबंधित घंटाई मंदिर का अनुपम साज-सज्जा तथा उत्कृष्ट सौंदर्य इस समूह के दूसरे मंदिरों से अलग प्रकार का है।

मंदिर की पृष्ठ भूमि में महावीर स्वामी की माता श्री के सोलह स्वप्नों और नवग्रहों का विवरण है। स्तंभों को कीर्तिमुखों से सुसज्जित किया गया है। अष्टभुजा युक्त जैन देवी गरुड़ पर सवार अनेक अस्र- शस्र लिए द्वार शाखा पर उपस्थित हैं। मंदिर का मंडप गूढ़ मंडप प्रकृति का है, जिसपर वितान, सादा बना हुआ है। छत के बीम कलात्मक सज्जायुक्त हैं। इन धरणों पर घंटियों की मालाएँ बनाई गईं हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ शार्दूल और कीर्तिमुख भी रेखांकित हैं।

अर्धमंडप तथा महामंडप चार-चार स्तंभों पर आधारित है। स्तंभों के मध्य भाग तल में अष्टकोणीय, बीच में सोलह कोणीय तथा सबसे ऊपर वर्तुलाकार बना हुआ है। प्रत्येक स्तंभ के ऊपर एक गोल शीर्ष है, जिसमें दांतेदार आमलक और पद्य अंकित हैं। सभी कीचकों के पेट में छेद बनाए गए हैं, ताकि उसमें अप्सराओं के आलंबनबाहू को फंसाया जा सके। आलंबनबाहु पर एक सरदल है। इस सरदल पर अनेक भक्तों, संगीतकारों, नर्तकों तथा शोभायात्राओं में सम्मलित हाथियों से अंकित एक चित्रवल्लरी बनाई गई है। चित्रवल्लरी के ऊपर एक अलंकृत समतल और चौकोर वितान वर्तमान है। इस वितान के किनारों का अलंकरण कमल लताओं से किया गया है। वितान के फलकों की सज्जा नर्तकों, गायकों, मिथुनों तथा गजतालुओं से की गई है।

महामंडप, अर्धमंडप के आगे है। वर्तमान समय में इसमें दीवारें अनुपस्थित हैं। पार्श्वनाथ मंदिर के विपरीत, इसमें सामने की ओर एक आड़ी पंक्ति में तीन चतुष्कियाँ हैं। इन चतुष्कियों का वितान सादा है। महामंडप के द्वारपाश्वों की भित्तियों की आधार वेदियों पर आमने सामने मुख किए दो सशस्र द्वारपाल अंकित किए गए हैं। वे करंड मुकुट धारण किए हुए हैं तथा गदाधारी हैं। इसकी उपपीठ धार- शिला से बनी हैं। महामंडप के द्वार की सात शाखाएँ हैं -- शाखाएँ पुष्प, चक्र, व्याल, गण, मिथुन, कर्णिक, पद्य इत्यादि से सजाई गई है। इनमें प्रस्तर बेलबूटों को भी सजाया गया है। तृतीय तथा पंचम द्वार शाखा पर मिथुन हैं। पहली शाखा का अलंकरण फुल्लिकाओं से तथा दूसरी शाखा एवं छठी शाखा का व्यालों से किया गया है। चौथी शाखा में कर्णिका और कमल इसी स्तंभशाखा पर एक सरदल हैं, जिसके मध्य में गरुड़ासीन अष्टभुजी चक्रेश्वरी अंकित की गई

है। उनके हाथों में फल, बाण, चार चक्र, धनुष और शंख हैं। सरदल के दोनों किनारों पर तीथर्ंकर प्रतिमाएँ और नवग्रहों की प्रतिमाओं अंकित की गई है तथा द्वार मार्ग को आवृत करने वाली सातवीं शाखा में सर्पिल बेलबूटों तथा उसके पार्श्व में एक खड़ी चित्रवल्लरी का अंकन किया गया है।

द्वारमार्ग के अधिष्ठान पर सरितदेवियों गंगा तथा यमुना का आमलक है। महामण्डप का मध्यवर्ती वितान चार स्तंभों पर आधारित है।। प्रत्येक स्तंभ पर तीन दीवट आलंवनबाहु हैं। सरदल पर तीन सज्जा पट्टियाँ उपस्थित हैं। पहली पट्टी में एक दूसरे से आबद्ध शृंखलाएँ, दूसरी पट्टी में त्रिकोण और तीसरी पट्टी सादी है। इसके ऊपर समतल वितान उपस्थित है। रथिकाओं पर जिन प्रतिमाएँ अंकित है। अष्टधातु नवग्रह, वृषभमुखी देव, ऐरावत, हरित, शेर, श्रीदेवी, सूर्य इत्यादि की प्रतिमाएँ वर्तमान है। इसके अतिरिक्त, यहाँ नाग, अग्नि की प्रतिमाएँ भी अंकित है। गंगा-यमुना द्वार पर द्वारपाल, सरस्वती, जलदेवता, गजशार्दुल प्रतिमाएँ नृत्य और संगीत दृश्यों के साथ अंकित की गई है।