सुधीर अग्रवाल

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>InternetArchiveBot द्वारा परिवर्तित ०९:३८, २४ दिसम्बर २०२१ का अवतरण (Rescuing 1 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.8.5)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सुधीर अग्रवाल (जन्म : 24 अप्रैल 1958 को शिकोहाबाद) इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक वरिष्ट न्यायधीश हैं। उन्होने मुकदमों के निस्तारण के मामले में नया कीर्तिमान बनाया है। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने 15 साल के कार्यकाल में 31 अक्टूबर 2019 तक कुल 1,30,418 मुकदमों का निपटारा किया है। उन्होने कई चर्चित मामलों में निर्णय देकर उदाहरण प्रस्तुत किया है। न्यायमूर्ति अग्रवाल अपने सख्त फैसलों के लिए जाने जाते हैं।

मूलरूप से फिरोजाबाद के निवासी न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक किया। इसके बाद मेरठ विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की। 5 अक्टूबर 1980 से उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करके करियर की शुरुआत की। उन्होंने टैक्स मामलों में वकालत शुरू की, लेकिन जल्द ही उनकी विशेषज्ञता सर्विस और इलेक्ट्रिसिटी मामलों में भी हो गई। वे उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के स्टैंडिंग काउंसिल (वकील) भी रहे। 19 सितम्बर 2003 को उत्तर प्रदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता नियुक्त किए गए। फिर अप्रैल 2004 को उनको वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया।[१]

अग्रवाल ने 5 अक्टूबर 2005 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अपर न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। इसके बाद 10 अगस्त 2007 को वह उच्च न्यायालय के नियमित न्यायधीश नियुक्त किए गए। उनका कार्यकाल 23 अप्रैल 2020 तक है।

चर्चित निर्णय

  1. शंकरगढ़ की रानी से 45 गांव मुक्त कराने का आदेश,
  2. ज्योतिष पीठ में शंकराचार्य पद के विवाद पर निर्णय,[२]
  3. धरना-प्रदर्शन के दौरान सम्पत्ति के नुकसान की वसूली का आदेश,
  4. सरकारी कर्मियों को सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराने का निर्देश,
  5. श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर निर्णय,
  6. अवैध कब्जे वाली नजूल भूमि को मुक्त कराकर सरकार के कब्जे में देने का निर्देश,
  7. मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के बच्चों को सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने का निर्देश,
  8. विभागों में जातिगत प्रतिनिधित्व के आधार पर आरक्षण जारी रखने का आदेश,
  9. कानून के विपरीत अधिसूचना से फंडामेंटल रूल्स 56 में संशोधन कर सरकारी सेवको की सेवानिवृत्ति आयु 58 से बढ़कर 60 वर्ष करने के फैसले को विधिविरुद्ध करार देना।[३]

सन्दर्भ

  1. देश के एकमात्र न्यायाधीश जिसने 15 साल में निपटाए 1.25 लाख मुकदमे
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।