सखी ललिताजी
This article describes a work or element of fiction in a primarily in-universe style. Please help rewrite it to explain the fiction more clearly and provide non-fictional perspective. (अगस्त 2019) |
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ललिता सखी राधा जी की 'अष्टसखियों' में से एक थीं। इन्हें सभी सखियों में प्रधान स्थान प्राप्त था। ये राधा-कृष्ण की निकुंज लीलाओं की भी साक्षी थीं। ललिता राधा को सुख प्रदान कराने वाली प्रमुख सखी और उनकी विविध लीलाओं में सहगामी थीं। स्वंय भगवान शिव ने भी ललिता से 'सखीभाव' की दीक्षा प्राप्त की थी।
सूरदास का उल्लेख
सूरदास ने राधा के अतिरिक्त ललिता का विशेष रूप से उल्लेख किया है और साथ ही चन्द्रावली का भी। ललिता को राधा की परम प्रिय, घनिष्ठ सखियों के रूप में 'मान' और 'खण्डिता' के प्रकरणों में चित्रित किया गया है। 'खण्डिता' प्रकरणों में इन दो के अतिरिक्त सूरदास ने 'शीला', 'सुखमा', 'कामा', 'वृन्दा', 'कुमुदा' और 'प्रमदा' का भी उल्लेख किया है। गोपियों में कृष्ण के प्रेम की अधिकारिणी इन्हें ही माना गया है। परन्तु इनमें से किसी का राधा से ईर्ष्याभाव नहीं था। नित्य बिहारी राधा-कृष्ण की ललिता अभिन्न सहचरी हैं।
अवतार
'सखीभाव' की उपासना में इनके व्यक्तित्व को आदर्श रूप में स्वीकार किया गया है। माना जाता है कि आज से लगभग पांच शताब्दी पूर्व राधा रानी की सखी ललिता ने स्वामी हरिदास के रूप में अवतार लिया था। स्वामी हरिदास वृन्दावन के निधिवन के एकांत में अपने दिव्य संगीत से प्रिया-प्रियतम (राधा-कृष्ण) को रिझाते थे। साँचा:mbox