राकेश सिन्हा

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राकेश सिन्हा
Dr Rakesh Sinha.jpg

पदस्थ
कार्यालय ग्रहण 
14 July 2018
पूर्वा धिकारी Sachin Tendulkar
चुनाव-क्षेत्र Nominated

जन्म साँचा:br separated entries
राजनीतिक दल Bharatiya Janata Party
जीवन संगी साँचा:trim (साँचा:abbr साँचा:abbr)
बच्चे 2
शैक्षिक सम्बद्धता दिल्ली विश्वविद्यालय (BA, MA, MPhil, PhD)
जालस्थल www.sinharakesh.in
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राकेश सिन्हा (जन्म 5 सितंबर 1964) भारतीय संसद के उच्च सदन ,राज्यसभा, के सदस्य हैं। ये तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम्स ट्रस्ट बोर्ड [१] के सदस्य के रूप में काम कर चुके है(2019-2021), साथ-साथ गृह मामलों की संसदीय समिति के सदस्य भी हैं। इन्होने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक के बी हेडगेवार [२] की जीवनी सहित कई पुस्तकें लिखी हैं।ये दिल्ली विश्वविद्यालय [३] के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में प्रोफेसर भी हैं।

यह अक्सर राष्ट्रीय समाचार चैनलों [४] पर सार्वजनिक बहसों में दिखाई देते हैं । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर उनकी विशेषज्ञता और कार्यों ने इन्हे भारतीय संस्कृति [५] के भीतर आरएसएस के विचारक के रूप में स्थापित किया है। इनका सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में गहरा विश्वास है और ये देश की दक्षिणपंथी राजनीति से जुड़े हैं। इन्होने विभिन्न मंचों से नव उदारवादी विचारों के खिलाफ आवाज भी बुलंद की है [६]

इन्हे 30 मई को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से दीनदयाल उपाध्याय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और इन्होने पुरस्कार की सम्पूर्ण राशि दान स्वरुप वितरित कर दी। [७][८]

प्रारंभिक जीवन

डॉ राकेश सिन्हा का जन्म 5 सितंबर 1964 को बिहार के बेगूसराय जिले के ग्राम मानसेरपुर में हुआ था। डॉ सिन्हा एक अतिसाधारण आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से आते हैं। इनके पिता स्वर्गीय बंगाली सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ -साथ शिक्षाविद थे, जिनके निस्वार्थ और ईमानदार जीवन -शैली का इनके बचपन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनकी मां स्वर्गीय द्रौपदी देवी ने भी इनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डाला। मानसेरपुर और नौबतपुर (पटना के प्राथमिक विद्यालय) में प्रारंभिक प्राथमिक शिक्षा के बाद इनका चयन नेतरहाट स्कूल, रांची (अब झारखंड में) के लिए हुआ। इन्होने बिहार (1981) में स्टेट मेरिट लिस्ट में छठा स्थान हासिल किया और इन्हे गोल्ड मेडल से नवाजा गया। इन्होने मेधावी छात्रों के बीच बिहार विद्यालय परीक्षा बोर्ड (बीएसईबी) द्वारा आयोजित व्यक्तित्व परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल कर एक और स्वर्ण पदक जीता।

इन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से स्नातक किया और यूनिवर्सिटी इन पॉलिटिकल साइंस (ऑनर्स) में दूसरा स्थान हासिल किया। डॉक्टर सिन्हा 1989 में हुई पोस्ट ग्रेजुएशन की परीक्षा में दिल्ली यूनिवर्सिटी के टॉपर रहे थे।इन्हे दीक्षांत समारोह में स्वर्ण पदक और विशेष सी जे चाको पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसका श्रेय प्रो. सिन्हा के डॉ. के बी हेडगेवार (आरएसएस संस्थापक) के राजनीतिक विचारों पर किये गए एम ए शोध प्रबंध प्रस्तुतीकरण को जाता है।

इन्होने देश में नागरिक स्वतंत्रता आंदोलन (आंध्र प्रदेश के विशेष संदर्भ के साथ) पर अपना एमफिल किया है और इनकी पीएचडी थीसिस देश में वामपंथी आंदोलन पर आधारित है,जो विशेषतः भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के संगठनात्मक और वैचारिक परिवर्तनों पर ध्यान आकृष्ट करने के साथ ही पार्टी और आंदोलन में अन्तर्निहित वैचारिक और संगठनात्मक दोनों विरोधाभासों के कारणों का पता लगाती है ।

डॉ राकेश सिन्हा दिल्ली स्थित थिंक टैंक इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन (आईपीएफ) के संस्थापक और मानद निदेशक रहे हैं और सीएसडीएस, दिल्ली [९][१०] के लिए आईसीएसएसआर द्वारा नामांकित भी हुए हैं। इन्होने गूढ़ बौद्धिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर फाउंडेशन को राष्ट्रीय छवि और प्रतिष्ठा देने का कार्य किया और अपने मार्गदर्शन में आईपीएफ के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आपसी समझ और चर्चा के लिए विभिन्न वर्ग के लोगों को एक मंच पर लाकर वैचारिक मतभेदों को कम करने की कोशिश भी की।

राजनीतिक जीवन

Dडॉ राकेश सिन्हा जुलाई 2018 से भारत की संसद के उच्च सदन, राज्यसभा के मनोनीत सदस्य हैं। [११][१२]. वह भारत के समावेशी विकास, समतावाद और सामाजिक न्याय के अग्रणी नायकों में से एक हैं ।

सांसद के रूप में अपने छोटे से कार्यकाल में इन्होने महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाकर और भारतीय नागरिकों के सामने आने वाली मूलभूत समस्याओं का समाधान करके जनमानस पर अमिट छाप छोड़ा है । राज्यसभा में अपने एक भाषण में डॉ सिन्हा ने घुमंतू जनजातियों की समस्याओं और मुद्दों की ओर सदन और राष्ट्र का ध्यान आकृष्ट किया,जिनकी संख्या लगभग दस करोड़ (100 मिलियन) है। डॉक्टर सिन्हा ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक महत्व के कई मुद्दों पर प्रकाश डालते रहे हैं,और इनके ज्यादातर सवाल आदिवासी, किसानों, प्रवासी कामगारों, सार्वजनिक क्षेत्रों की इकाइयों आदि की समस्याओं से जुड़े रहे हैं। इनके तीन निजी सदस्य विधेयक, जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019, [१३], पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री ऑफ़ इंडिया बिल , [१४], और नौकरी से निकले गए कर्मचारी (कल्याण) विधेयक, 2020 [१५] जो निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की नौकरी, सुरक्षा और कल्याण को सुनिश्चित करता है,आम जीवन में उनके भविष्य पर प्रभाव के कारण सार्वजनिक बहस को आकर्षित करता है।

अपनी अकादमिक पृष्ठभूमि और बहुआयामी सामाजिक आर्थिक मुद्दों के ज्ञान और समझ के कारण, डॉ सिन्हा को वाणिज्य समिति जैसी कई संसदीय समितियों में नामित किया गया है; गृह मामलों की समिति; विशेषाधिकार समिति; और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के लिए सलाहकार समिति अन्य हैं । डॉ सिन्हा को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के सदस्य, अंजुमन (कोर्ट) जैसे कई सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक निकायों में भी नामित किया गया है यथा ; सदस्य, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ; सदस्य, उत्तर-पूर्वी हिल विश्वविद्यालय की अदालत; सदस्य, भारतीय प्रेस परिषद; सदस्य, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट बोर्ड।

पुस्तकें और पुरस्कार

प्रख्यात राजनीतिक वैज्ञानिक डॉ सिन्हा ने कई पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की जीवनी लिखी जो सामान्य रूप से हिंदुत्व आंदोलन की इनकी गहरी विश्लेषणात्मक समझ और विशेष रूप से आरएसएस के इतिहास और विचारधारा को दर्शाती है ।अकादमिक हलकों में इस पुस्तक की बहुत प्रशंसा की गई और बाद में कई अन्य भारतीय भाषाओं में इसका अनुवाद भी किया गया । डॉ सिन्हा की शानदार और तार्किक अभिव्यक्ति इन्हे पार्टी लाइन से ऊपर उठाकर सभी के प्रसंशा का पात्र तो बनाती ही है,साथ की जनता से जुड़े कई महत्वपूर्ण विषयों को मुख्य धारा से जोड़ने में भी इनकी अहम् भूमिका है।

उनके अन्य महत्वपूर्ण प्रकाशनों में शामिल हैं: अंडरस्टैंडिंग आरएसएस ; स्वराज इन आइडियाज :विचारों में स्वराज: भारतीय मन का विच्छेदन; धर्मनिरपेक्ष भारत: अल्पसंख्यकवाद की राजनीति; सामाजिक क्रांति का दर्शन; भ्रामक समानता; आतंकवाद और भारतीय मीडिया; संघ और राजनीती (हिंदी); धर्मनिप्रांत और राजनीती (हिंदी); रजनीकांत पत्राकरिता; सच्चर आयोग की रिपोर्ट के महत्वपूर्ण विश्लेषण पर मोनोग्राफ; समान अवसर आयोग; सांप्रदायिक हिंसा विधेयक-2011

डॉ सिन्हा एक मुखर लेखक रहे हैं और अपने उदारवादी-राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते रहे हैं ।इन्होने अपने छात्र जीवन के दौरान संडे मेल और द ऑनलुकर में काम किया और विभिन्न हिंदी, अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र और पत्रिकाओं में सैकड़ों लेख और समाचार रिपोर्ट लिखी। गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए उनकी चिंताएं उनके सामाजिक दर्शन का मूल है जो उनके शब्दों और कार्यों से स्पष्ट है ।इन्होने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा मिले सामाजिक विज्ञान में योगदान के लिए पांच लाख रुपये की दीन दयाल उपाध्याय पुरस्कार राशि भारत की गरीब जनता में दान कर दी।

इससे पहले उन्हें 2000 में राष्ट्रवादी लेखन के लिए बिपिन चंद्र पाल पुरस्कार [१६] से भी सम्मानित किया गया था। डॉक्टर सिन्हा एक जातिविहीन समाज और लाखों किसानों और मेहनतकश जनता के अधिकारों और गरिमा हेतु प्रतिज्ञा करते है और इनका मानना है कि हमारे समाज और राजनीति को बदलने के लिए सार्वजनिक संस्थाओं और सार्वजनिक आंकड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।

लेखक और संपादक

लेखक

  • आतंकवाद और भारतीय मीडिया- आतंकवाद के प्रति अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू अखबारों के दृष्टिकोण का तुलनात्मकअध्ययन,नई दिल्ली: इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन, 2009, 163 पी।
  • भ्रामक समानता: समान अवसर आयोग का निर्माण, नई दिल्ली: इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन, 2009, 70 पी।
  • बाल्टी में छेद - सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा की रोकथाम विधेयक-2011, नई दिल्ली: इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन, 2011, 29 पी।
  • डॉ केशव बलिरामहेडगेवार, , नई दिल्ली: प्रकाशन प्रभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, 2015, 220 पी।
  • विचारों में स्वराज: भारतीय मन के विच्छेदन कीखोज, नई दिल्ली: इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन, 2017, 42 पी।
  • आरएसएस, ,नई दिल्ली: हर-आनंद प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड , 2019, 228 पी।

संपादक

  • धर्मनिरपेक्ष भारत: अल्पसंख्यकवाद की राजनीति, नई दिल्ली: विटास्टा पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड, 2012, 250 पी सिन्हा द्वारा संपादित विभिन्न लेखकों द्वारा लेखों का योगदान।
  • क्या हिंदू एक मरती हुई दौड़ है: 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में हिंदू सुधारकों का एक सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य, नई दिल्ली: कौटिल्य पुस्तकें, 2016, 291 पी। कर्नल संयुक्त राष्ट्र मुखर्जी, स्वामी श्रद्धानंद और आरबी लालचंद के तीन निबंध।
  • सांप्रदायिक फासीवाद- बंगाल की संस्कृति और बहुलता कीघेराबंदी, नई दिल्ली: इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन, 2017, 50 पी।

संदर्भ

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