दिल्ली षड्यंत्र मामला
लॉर्ड हार्डिंग पर हुए हमले का एक चित्र। | |
तिथि | १२ दिसम्बर 1912 |
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स्थान | चाँदनी चौक, दिल्ली |
निर्देशांक | साँचा:coord |
प्रतिभागी (पार्टिसिपेंट्स) | बसन्त कुमार विश्वास |
मृत्यु | १ |
घायल | १ |
दिल्ली षडयन्त्र मामला (अंग्रेजी: Delhi conspiracy case ), जिसे दिल्ली-लाहौर षडयन्त्र के नाम से भी जाना जाता है, 1912 में भारत के तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड हार्डिंग की हत्या के लिए रचे गए एक षड्यन्त्र के सन्दर्भ में प्रयोग होता है, जब ब्रिटिश भारत की राजधानी के कलकत्ता से नई दिल्ली में स्थानान्तरित होने के अवसर पर वह दिल्ली पधारे थे। रासबिहारी बोस को इस षड्यन्त्र का प्रणेता माना जाता है। लॉर्ड हार्डिंग पर 23 दिसम्बर 1912 को चाँदनी चौक में एक जुलूस के दौरान एक बम फेंका गया था, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गए थे।[१] इस घटनाक्रम में हार्डिंग के महावत की मृत्यु हो गयी थी। इस अपराध के आरोप में बसन्त कुमार विश्वास, बाल मुकुन्द, अवध बिहारी व मास्टर अमीर चन्द को फाँसी की सजा दे दी गयी, जबकि रासबिहारी बोस गिरफ्तारी से बचते हुए जापान फरार हो गए थे।
पृष्ठभूमि
इस षड्यंत्र का प्रणेता रासबिहारी बोस को माना जाता है। देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान में कुछ समय तक हेड क्लर्क के रूप में काम करने के दौरान ही बोस का परिचय क्रान्तिकारी जतिन मुखर्जी की अगुआई वाले युगान्तर नामक क्रान्तिकारी संगठन के अमरेन्द्र चटर्जी से हुआ, और वह बंगाल के क्रान्तिकारियों के साथ जुड़ गये थे। इसके कुछ समय बाद वह अरबिंदो घोष के राजनीतिक शिष्य रहे जतीन्द्रनाथ बनर्जी उर्फ निरालम्ब स्वामी के सम्पर्क में आने पर संयुक्त प्रान्त, (वर्तमान उत्तर प्रदेश) और पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी क्रान्तिकारियों के भी निकट आये।
दिल्ली में जार्ज पंचम के १२ दिसंबर १९११ को होने वाले दिल्ली दरबार के बाद वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की दिल्ली में सवारी निकाली जा रही थी। इस शोभायात्रा की सुरक्षा में अंग्रेज़ों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। सादे कपड़ों में सीआईडी के कई आदमी यात्रा से हफ्तों पहले ही पूरी दिल्ली में फ़ैल गए थे।साँचा:sfn यात्रा वाले दिन भी सुरक्षा इंतज़ाम सख्त थे। दो सुपरिंटेंडेंट, दो डिप्टी-सुपरिंटेंडेंट, पांच सार्जेंट और ७५ हेड कांस्टेबल और ३४ माउंटेड कांस्टेबल सुरक्षा पंक्ति में लगे थे।साँचा:sfn इनके अतिरिक्त इलेवेंथ लैंसर्स की पूरी कम्पनी को भी तैनात किया गया था।साँचा:sfn
बोस की योजना इसी शोभायात्रा में हार्डिंग पर बम फेंकने की थी।[२] अमरेन्द्र चटर्जी के एक शिष्य बसन्त कुमार विश्वास को बम फेंकने के लिए चुना गया, जो देहरादून में बोस का नौकर था।साँचा:sfn बालमुकुंद गुप्त, अवध बिहारी व मास्टर अमीर चंद ने भी इस हमले में सक्रिय रूप से भूमिका निभाई थी।
घटना
दिल्ली में जार्ज पंचम के १२ दिसंबर १९११ को होने वाले दिल्ली दरबार के बाद वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की दिल्ली में सवारी निकाली जा रही थी।साँचा:sfn लार्ड हार्डिंग रत्नजड़ित पोशाक पहनकर एक हाथी पर बैठे हुए थे। उनके ठीक आगे उनकी पत्नी, लेडी हार्डिंग बैठी थी। हाथी चलाने वाले एक महावत के अतिरिक्त उस हाथी पर सबसे पीछे लार्ड हार्डिंग का एक अंगरक्षक भी सवार था। हज़ारों की संख्या में घोड़े, हाथी, तथा बन्दूकों और राइफलों से सुसज्जित कई सैनिक उनके इस काफिले का हिस्सा थे।साँचा:sfn
जब यह काफिला चाँदनी चौक पहुंचा, तो वहां ये दृश्य देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी। कई महिलाएं चौक पर स्थित पंजाब नेशनल बैंक की छत से यह दृश्य देख रही थी। बसन्त कुमार विश्वास ने भी एक महिला का वेश धारण किया और इन्हीं महिलाओं की भीड़ में शामिल हो गया। उसने अपने आस-पास बैठी महिलाओं का ध्यान भटकाने के लिए लेडी हार्डिंग के मोतियों के हार की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करवाया, और मौक़ा पाते ही वायसराय पर बम फेंक दिया।साँचा:sfn बम फटते ही वहां ज़ोरदार धमाका हुआ, और पूरा इलाका धुंए से भर गया। वाइसराय बेहोश होकर एक तरफ को जा गिरे।साँचा:sfn घबराकर भीड़ तितर-बितर हो गयी, और इसी का फायदा उठाकर विश्वाश वहां से बच निकले। पुलिस ने इलाके की घेराबन्दी कर कई लोगों के घरों की तलाशी भी ली, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।साँचा:sfn
हालाँकि, इस बात की पुष्टि काफी बाद में हुई कि विश्वास का निशाना चूक गया था। बम के छर्रे लगने की वजह से लॉर्ड हार्डिंग की पीठ, पैर और सिर पर काफी चोटें आयी थी।[३] उनके कंधों पर भी मांस फट गया था।[३] लेकिन, घायल होने के बावजूद, वाइसराय जीवित बच गए थे, हालांकि इस हमले में उनका महावत मारा गया था। लेडी हार्डिंग भी सुरक्षित थी।[३]
परिणाम
गिरफ्तारियां
बिस्वास पुलिस से बचकर बंगाल पहुँच गए थे। इसके बाद ब्रिटिश पुलिस रासबिहारी बोस के पीछे लग गयी और वह बचने के लिये रातों-रात रेलगाडी से देहरादून खिसक लिये,[४] और आफिस में इस तरह काम करने लगे मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। अगले दिन उन्होंने देहरादून के नागरिकों की एक सभा बुलायी, जिसमें उन्होंने वायसराय पर हुए हमले की निन्दा भी की। इस प्रकार उन पर इस षडयन्त्र और काण्ड का प्रमुख सरगना होने का किंचितमात्र भी सन्देह किसी को न हुआ।[५]
२६ फ़रवरी १९१४ को अपने पैतृक गाँव परगाछा में अपने पिता की अंत्येष्टि करने आये बसंत को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।साँचा:sfn इसके बाद कलकत्ता के राजा बाजार इलाके में एक घर की तलाशी लेते हुए ब्रिटिश अधिकारियों को अन्य क्रांतिकारियों से संबंधित कुछ सुराग हाथ लगे। इन्हीं सुरागों के आधार पर मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी और भाई बालमुकुंद को भी गिरफ्तार कर लिया गया।साँचा:sfn कुल १३ लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। इन अभियुक्तों में से एक, दीनानाथ सरकारी गवाह बन गया था।साँचा:sfn
मुकदमा
१६ मार्च १९१४ को मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी और बालमुकुंद गुप्त और सात अन्य लोगों पर दिल्ली की न्यायलय में देशद्रोह और ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का मुकदमा दायर किया गया। यह भी पाया गया कि १७ मई १९१३ को लाहौर में हुए एक अन्य बम हमला भी बसंत कुमार बिस्वास और उसके इन साथियों ने ही किया था।साँचा:sfn "दिल्ली षड्यंत्र केस" या "दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र केस" नामक इस मुकदमे की सुनवाई २१ मई १९१४ को शुरू होकर १ सितम्बर १९१४ तक चली थी।साँचा:sfn ५ अक्टूबर १९१४ को न्यायलय ने इस मुक़दमे का फैसला सुनाया; सभी अभियुक्तों को काला पानी में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी।साँचा:sfn
फैसले से नाखुश ब्रिटिश सरकार ने लाहौर हाईकोर्ट में अपील की और अंततः पंजाब के गवर्नर, सर माइकल ओ'ड्वायर के हस्तक्षेप के बाद इन सभी की सजाओं को फांसी में बदल दिया गया था।साँचा:sfn ८ मई १९१५ को दिल्ली में दिल्ली गेट से आगे स्थित वर्तमान खूनी दरवाजे के पास स्थित एक जेल में बाल मुकुंद, अवध बिहारी और मास्टर अमीर चंद को फांसी पर लटका दिया गया।[६] ११ मई १९१५ को अम्बाला की सेंट्रल जेल में बसंत कुमार विश्वास को भी फांसी दे दी गयी।साँचा:sfn[७] रास बिहारी बोस, हालाँकि, पुलिस गिरफ़्तारी से बचते-बचाते घूमते रहे, और १९१६ में जापान पहुँचने में सफल हो गए थे।
प्रतिक्रियाएं
मुज़फ्फरनगर में किंग्सफोर्ड पर बम हमले के बाद यह उस वर्ष का दूसरा बम हमला था।साँचा:sfn जब इस धमाके की खबर अमेरिका में लाला हरदयाल के पास पहुंची, तो वह भी इससे काफी खुश हुए। उन्होंने इसकी प्रशंशा करते हुए एक न्यूज़ बुलेटिन भी जारी किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था
- "ये बम धमाका इस शाही दरबार को एक करारा जवाब है। अगर इस दरबार का आयोजन शाही इतिहास में एक स्मरणीय घटना है, तो फिर इस बम धमाके को भी क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जायेगा। ऐसे दरबार होने दो, और ऐसे बम धमाके भी होते रहेंगे। घटनाओं का यह क्रम तब तक जारी रहेगा, जब तक कि धरती से दरबारों के आयोजन की ये व्यवस्था ही खत्म नहीं हो जाती है।"साँचा:sfn
इस हमले ने ये स्पष्ट किया कि क्रान्तिकारी बंगाल, आसाम, बिहार और उड़ीसा के साथ साथ संयुक्त-प्रान्त, दिल्ली और पंजाब तक भी फैल चुके थे, हालांकि उन क्रांतिकारियों के केंद्र आज भी बंगाल ही था।साँचा:sfn इस हमले में प्रयोग हुआ बम भी बंगाल में ही बना था।साँचा:sfn ब्रिटिश सरकार भी अब पंजाब और बंगाल में पनप रहे इस क्रांतिकारी आन्दोलन को कुचलने का भरसक प्रयास करने लगी थी।
विरासत
दिल्ली में स्थित मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में सभी क्रांतिकारियों को समर्पित एक स्मारक उपस्थित है।[८][९]
बाहरी कड़ियाँ
- The revolutionary of Chandni Chowk The Hindu
- Sourced fromसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] Hindustan Times, 19 August 2007
- Indian National Congress
- St Stephens College, notable alumni
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite news
- ↑ सशस्त्र क्रांति के योद्धासाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]|पत्रिका। कोलकाता
- ↑ अ आ इ साँचा:cite news
- ↑ साँचा:cite news
- ↑ क्रांतिकारियों के मार्गदर्शक थे रासबिहारी बोस स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।। हिन्दुस्तान लाइव। २० जनवरी २०१०
- ↑ साँचा:cite news
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite news
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विस्तृत पठन
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