योगशास्त्र

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हेमचंद्राचार्यने योगशास्त्र पर बडा ही महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा है। ईसकी शैली पतंजलि के योगसूत्र के अनुसार ही है। किंतु विषय और वर्णन क्रम में मौलिकता एवं भिन्नता है।[किसके अनुसार?]

विशद् टीका सहित प्रथम चार परिच्छेदों में जैन दर्शन का विस्तृत और स्पष्ट वर्णन दिया ग्या है। योगशास्त्र नीति विषयक उपदेशात्मक काव्य की कोटि में आता है। योगशास्त्र जैन संप्रदाय का धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रंथ है। वह अध्यात्मोपनिषद् है।

आचार प्रधान है तथा धर्म और दर्शन दोनो से प्रभावित है। योग शाश्त्र ने नीतिकाव्यों या उपदेश काव्यों की प्ररम्परा को समृद्व एवं समुन्नत किया है। योगशास्त्र विशुद्व धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रंथ है। इसमें १२ प्रकाश तथा १०१८ श्लोक है।

इसके अंतर्गत मदिरा दोष, मांस दोष, नवनीत भक्षण दोष, मधु दोष, उदुम्बर दोष, रात्रि भोजन दोष का वर्णन है।

अंतिम १२ वें प्रकाश के प्रारम्भ में श्रुत समुद्र और गुरु के मुखसे जो कुछ मैं ने जाना है उसका वर्णन कर चुका हुं, अब निर्मल अनुभव सिद्व तत्वको प्रकाशित करता हुं ऐसा निदेश कर के विक्षिप्त, यातायात, इन चित-भेंदो के स्वरुपका कथन करते बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा का स्वरुप कहा गया है।

  • सदाचार ही ईश्र्वर प्रणिधान नियम है।
  • निर्मल चित ही मनुष्य का धर्म है।
  • संवेदन ही मोक्ष है जिसके सामने सुख कुछ नहीं है ऐसा प्रतीत होता है।

संवेदन के लिये पातच्जल योगसूत्र तथा हेमचंद्र योगशास्त्र में पर्याप्त साम्य है। योग से शरीर और मन शुद्व होता है। योग का अर्थ चित्रवृतिका निरोध। मन को सबल बनाने के लिये शरीर सबल बनाना अत्यावश्यक है।

योगसूत्र और योगशास्त्र में अत्यंत सात्विक आहार की उपादेयता बतलाकर अभक्ष्य भक्षणका निषेध किया गया है।

आचार्य हेमचंद्र सब से प्रथम 'नमो अरि हन्ताणं' से राग -द्वेषादि आन्तरिक शत्रुओं का नाश करने वाले को नमस्कार कहा है।

योगसूत्र तथा योगशास्त्र पास-पास है।

संसार के सभी वाद, संप्रदाय, मत, द्दष्टिराग के परिणाम है। द्दष्टिराग के कारण अशांति और दु:ख है। अतः विश्वशांति के लिये, द्दष्टिराग उच्छेदन के लिये हेमचंद्रका योगशास्त्र आज भी अत्यंत उपादेय ग्रंथ है।[किसके अनुसार?]

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